Move to Jagran APP

अब बंदूकों के लिए नहीं... पढ़ाई के लिए गिरवी रखे जाते हैं गहने, जानें जहानाबाद के सिकरिया गांव की कहानी

जहानाबाद जिले के सिकरिया गांव का नाम प्रमुख रूप से नक्सली आंदोलन को लेकर लिया जाता है। 80-90 के दशक में इस गांव में किसान और मजदूरों के बीच खूनी खेल में रक्तरंजित हुआ था। यहा गांव जहानाबाद और पटना जिले के सीमा पर स्थित है लेकिन मौजूदा समय में गांव की पूरी तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है। पढ़ें सिकरिया गांव की कहानी।

By dheeraj kumar Edited By: Shoyeb Ahmed Published: Tue, 09 Apr 2024 03:47 PM (IST)Updated: Tue, 09 Apr 2024 03:47 PM (IST)
जानें जहानाबाद के सिकरिया गांव की कहानी

जागरण संवाददाता, जहानाबाद। Jehanabad Sikariya Village Story: प्रदेश में जब भी नक्सली आंदोलन की बात आती है तो जहानाबाद जिले के सिकरिया गांव का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। जहानाबाद और पटना जिले के सीमा पर स्थित यह गांव किसान और मजदूर के बीच खूनी संघर्ष में 80-90 के दशक तक रक्तरंजित रहा।

loksabha election banner

अब गांव की पूरी तस्वीर बदल चुकी है। विकास की बयार में पुराने सभी दाग मिट गए। पत्नी का आभूषण बेचकर या गिरवी रखकर हथियार खरीदने वाले लोग अब अपने बेटों की पढ़ाई के लिए नौबत आने पर गहने बेचते या गिरवी रखते हैं। यही वजह है कि गांव के 50 से ज्यादा युवा इस समय नौकरीपेशा में हैं।

80 के दशक के हालात

80 के दशक की शुरुआत में यहां किसान और मजदूरों के बीच नफरत की खाई बढ़ने लगी थी, जो 1986 तक हिंसक हो गई। उसके बाद हत्याओं का दौर शुरू हो गया, जो 1992- 93 तक चला। इस अवधि में दोनों पक्ष से हिंसा प्रति हिंसा में क्रमवार कुल 34 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

खूनी संघर्ष में लोग अपने घर की महिलाओं के जेवरात बेचकर हथियार खरीदने लगे थे। 600 घर की आबादी वाले इस गांव से लोगों का पलायन शुरू हो गया था। किसी भी चुनाव में आम लोग डर से मत देने बूथों पर नहीं जाते थे। घरों में दुबके रहते थे।

इसी गांव से हुई थी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम की शुरुआत

कुछ वर्ष बाद सरकार बदली तो गांव की तस्वीर भी बदलने लगी। सूबे में आपकी सरकार आपके द्वार कार्यक्रम की शुरुआत इसी गांव से हुई थी। इसी गांव के विकास के माध्यम से पूरे प्रदेश में संदेश देने की पहल शुरू हुई। जिला प्रशासन की कई योजनाएं धरातल पर उतरी।

सबसे पहले युवाओं में भटकाव रोकने के लिए कंप्यूटर शिक्षा केंद्र का संचालन किया गया। गांव के पुराने होम्योपैथिक अस्पताल को आधुनिक रूप देते हुए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के रूप में विकसित किया गया। थाना खुला। गांव में बाजार समिति के गठन की प्रक्रिया शुरू हुई।

धीरे-धीरे गांव के लोग भी इस बात को महसूस करने लगे कि हिंसा प्रतिहिंसा समस्या का समाधान नहीं है। सुरक्षा का एहसास हुआ तो लोग बढ़ चढ़कर मतदान में हिस्सा लेने लगे। गांव में तीन बूथ है और वोटरों की संख्या 2800 है।

विकास की पटरी पर गांव, 50 से ज्यादा युवा इंजीनियर

बदलते समय के अनुसार हथियार की अहमियत समाप्त होने लगी। लोग अपने बच्चों के हाथों में कलम थमाने लगे। ग्रामीण व समाजसेवी प्रभात कुमार बताते हैं कि वर्तमान समय में उनके गांव के तकरीबन 30 युवक कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में देश के विभिन्न शहरों में अपनी सेवा दे रहे हैं।

25 की संख्या में सिविल इंजीनियर भी हैं। इसके अलावा अन्य विभिन्न नौकरियों में भी युवाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। पुरानी बातें अब किस्से कहानियों में सिमट कर रह गई है। अब इस गांव ने शिक्षा और प्रगति के रूप में अपनी पहचान बना ली है।

ये भी पढे़ं-

Bhagalpur Smart City: नए भागलपुर का जल्द दिखेगा 'नया लुक', अंतिम चरण में काम; चमकेगी लोगों की किस्मत!

काम नहीं केवल नाम ही काफी है! इन पार्टियों के बारे में कभी नहीं सुना होगा, इनके नेता भी लड़ रहे हैं चुनाव


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.