80 साल के रामनाथ कर रहे शिक्षा दान
सिमरी प्रखंड के बड़का ¨सहनपुरा गांव में प्रवेश करते ही एक पाठशाला है, जिसमें एक बुजुर्ग बच्चों को संस्कृत के श्लोक कंठस्त कराते नजर आते हैं।
बक्सर : सिमरी प्रखंड के बड़का ¨सहनपुरा गांव में प्रवेश करते ही एक पाठशाला है, जिसमें एक बुजुर्ग बच्चों को संस्कृत के श्लोक कंठस्त कराते नजर आते हैं। दरअसल, आज के दौर में जब शिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है, बड़का ¨सहनपुरा के 80 साल के रामनाथ ओझा बच्चों को मुफ्त संस्कृत पढ़ाते हैं। प्रखंड के सैकड़ों बच्चे इनकी पाठशाला में संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करते हैं।
रामनाथ उन शिक्षकों में से नहीं हैं, जो सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद शिक्षा दान के अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लेते हैं। 34 वर्षो तक शिक्षक के रूप मे संस्कृत भाषा का व्यापक प्रचार-प्रसार करने के बाद भी श्री ओझा ने अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ा। जनवरी 1998 में जिले के केपी उच्च विद्यालय से सेवा निवृत होने के बाद लगातार बच्चों संस्कृत पढ़ा रहे हैं।
देते हैं कर्मकांड की शिक्षा
बड़का ¨सहनपुरा, डुमरी, काजीपुर, महरौली, दुबौली, निमौवा, खरहाटाड़, चकनी, रमधनपुर, एकौना, नगरपुरा, छोटका ¨सहनपुरा आदि गॉवों के सैकड़ों छात्रों का अल सुबह से ही श्री ओझा के दरवाजे पर जमावड़ा लगने लगता है। सुबह से शुरू होने वाली पढ़ाई का सिलसिला दिन के ग्यारह बजे तक चलता है। जिसमें वे संस्कृत के मूल विषय बच्चों को पढ़ाते हैं। जबकि, दोपहर तीन बजे से बच्चों को कर्मकांड की शिक्षा दी जाती है।
कहते हैं छात्र
इनके यहां शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र मुकेश कुमार, रेशमी कुमारी, प्रियंका कुमारी, अवधेश कुमार, रमेश कुमार, सुधीर कुमार, प्रफूल्ल रंजन, विकास पाण्डेय, सुमीत ओझा, विशाल ओझा व पंकज दूबे ने बताया कि उनकी पढ़ाई में सबसे बड़ी समस्या संस्कृत विषय की तैयारी को लेकर थी। इस विषय के न तो स्कूल में शिक्षक हैं और न ही को¨चग में इसकी पढ़ाई होती है। गुरू जी की कृपा से उनकी इस समस्या का समाधान हो गया। स्थानीय, धीरेन्द्र ओझा कहते हैं कि रामनाथ ओझा के यहां से लगभग चालीस हजार छात्र-छात्राएं संस्कृत एवं कर्मकांड का ज्ञान अर्जित कर चुके हैं।
बयान :
संस्कृत भाषा के शिक्षकों की कमी के चलते छात्रों का भविष्य बर्बाद न हो और हमारी प्राचीन गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हो सके, इस उदेश्य से मैनें रिटायरमेंट के बाद भी शिक्षादान जारी रखने का फैसला लिया। अब तो यही जीवन का उद्देश्य बन चुका है।
रामनाथ ओझा, शिक्षक।