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नोबेल दिलाने में सहायक बॉयोकेमिस्ट्री तकनीक वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण घटाएगी

नोबेल पुरस्कार दिलाने में सहायक बनने वाली बॉयोकेमिस्ट्री की तकनीक से अब वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकेगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 10:29 AM (IST)Updated: Sat, 02 Feb 2019 10:29 AM (IST)
नोबेल दिलाने में सहायक बॉयोकेमिस्ट्री तकनीक वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण घटाएगी
नोबेल दिलाने में सहायक बॉयोकेमिस्ट्री तकनीक वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण घटाएगी

लंदन, प्रेट्र। नोबेल पुरस्कार दिलाने में सहायक बनने वाली बॉयोकेमिस्ट्री की तकनीक से अब वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकेगा। इसके साथ ही इलेक्ट्रिक कारों में ईधन कोशिकाओं की खपत में भी कमी लाई जा सकेगी। ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने उस बॉयोलॉजिकल तकनीक का अध्ययन किया जिसे 2017 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

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2017 का नोबेल पुरस्कार स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक जैक डुबोशे, जर्मनी के जोआकिम फ्रैंक और स्कॉटलैंड के रिचर्ड हैंडरसन को मिला था। इन्होंने बायोकेमिस्ट्री में क्रायो-इलेक्ट्रान माइक्रोस्कोपी विकसित की थी। यह एक हाईरेजोल्यूशन ढांचा है, जो साल्यूशन में बॉयोमोलिक्यूल्स का पता लगाता है। इस खोज के बाद से वैज्ञानिक बॉयोमोलिक्यूल्स को गति के दौरान ही रोक सकते हैं और उन प्रक्रियाओं को देख सकते हैं जो पहले कभी नहीं देखी गईं। इससे प्रोटीन की थ्री-डी इमेज भी देखी जा सकती है। साथ ही किसी अणु का दोबारा निर्माण भी किया जा सकता है। इस माइक्रोस्कोपी से वायरस और प्रोटीन की गूढ़ संरचनाओं के बारे में पता चला है।

जर्नल नैनो लेटर्स में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का उपयोग धातुओं के नैनोपार्टिकल में परमाणुओं की केमिस्ट्री को समझने के लिए किया। ब्रिटेन की आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और आस्ट्रेलिया की मैक्बेरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मात्र कुछ हजार परमाणु से बने धातुओं के नैनोपार्टिकल की थ्री-डी इमेज बनाई।

इसके माध्यम से पता चला कि छोटे-छोटे कणों में एक जटिल प्रकार की संरचना होती है। इनका आकार सितारे जैसा होता है, जिसके किनारों और कोनों में अलगअलग प्रकार की केमिस्ट्री होती है। इसको ट्यून करके बैटरी और उत्प्रेरक कनवर्टर की लागत को कम किया जा सकता है। धातु के नैनोपार्टिकल कई उत्प्रेरक में प्राथमिक घटक होते हैं, जो ऊर्जा प्रदान करते हैं। इनके बेहतर उपयोग से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को बढ़ाया जा सकता है और उत्सर्जन कम किया जा सकता है।

थ्री-डी इमेज बनाने में थी दिक्कत
वैज्ञानिकों ने बताया कि किसी भी अध्ययन के लिए थ्री-डी माडल बहुत जरूरी हो गया है। इससे अध्ययन में पारदर्शिता आती है तो नतीज सटीक भी मिलते हैं। किसी भी वस्तु की थ्री-डी इमेज बनाने के लिए विभिन्न दिशाओं से उसकी फोटो लेनी पड़ती है। नैनोपार्टिकल के अध्ययन के दौरान उसकी थ्री-डी इमेज बहुत जरूरी थी। नैनोपार्टिकल की एक तरफ से तस्वीर लेने के बाद उसे घुमाने पर वह टूट जाता था, जिससे काम में मुश्किल हुई, लेकिन बॉयोकेमिस्ट्री की तकनीक के बाद नैनोपार्टिकल को दोबारा बनाना संभव हुआ, जिसके बाद उसकी थ्री-डी इमेज बनाई जा सकी। थ्री-डी इमेज बनाने के बाद अध्ययन किया गया।


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