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दिल की समस्‍या से जुड़ा है आर्टियल फिब्रिलेशन, असामयिक मौत का बन सकता है कारण!

बता दें कि हृदय की ज्यादातर परेशानी अलिंद विकंपन (आर्टियल फिब्रिलेशन) के कारण होती हैं। यह विकंपन हृदयाघात और असामयिक मृत्यु का कारण बन सकता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 27 Aug 2018 12:34 PM (IST)Updated: Mon, 27 Aug 2018 12:37 PM (IST)
दिल की समस्‍या से जुड़ा है आर्टियल फिब्रिलेशन, असामयिक मौत का बन सकता है कारण!
दिल की समस्‍या से जुड़ा है आर्टियल फिब्रिलेशन, असामयिक मौत का बन सकता है कारण!

लंदन [प्रेट्र]। स्मार्टफोन एप हृदय की गति के असामान्य होने का आसानी से पता लगा सकता है। एक शोध में यह बात सामने आई है। बता दें कि हृदय की ज्यादातर परेशानी अलिंद विकंपन (आर्टियल फिब्रिलेशन) के कारण होती हैं। यह विकंपन हृदयाघात और असामयिक मृत्यु का कारण बन सकता है। सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोगों को जल्द इसकी जानकारी नहीं हो पाती और अधिकतर मरीज बिना उपचार के ही रह जाते हैं।

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65 वर्ष की उम्र के बाद इसकी जांच बहुत जरूरी है लेकिन इसके लिए रिसोर्स और सामान की आवश्यकता रहती है। बेल्जियम की यूनिवर्सिटी ऑफ हैसेल्ट के पीटर वांडरवूर्ट का कहना है कि वर्तमान में अधिकतर लोगों के पास कैमरे वाले स्मार्टफोन हैं। इसके अलिंद विकंपन का पता लगाया जा सकता है। यह सबसे आसान तरीका है जिसकी सहायता से आम हो चुकी इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।

शोध में एप के जरिए हृदय की इस बीमारी का पता लगाने के तरीके की वैधता और उपयोगिता की जांच की गई है। यह एप यूरोपियन यूनियन में मान्यता प्राप्त है। इसको एक समाचार पत्र में विज्ञापन के जरिए लोगों को फ्री में उपलब्ध कराया गया। 48 घंटे के अंदर करीब साढ़े 12 हजार वयस्कों ने इस एप को डाउनलोड किया और वे शोध का हिस्सा बने।

क्यों होता है आर्टियल फिब्रिलेशन

सामान्यतः हृदय की गति हृदय में विद्युत संकेतों द्वारा नियंत्रित होती है। और साइनस नोड बाकी हृदय को विद्युत संकेत भेजता है। इन संकेतों से ही हृदय सिकुड़ता है और रक्त को पंप भी करता है। सामान्य रूप से, हृदय एक नियमित दर से सिकुड़ता और फैलता है। लेकिन आर्टियल फिब होने से, साइनस नोड विद्युत संकेत शुरू नहीं करता। जिस वजह से संकेत दाएं या बाएं एट्रियम में अन्य जगहों से आते हैं। इससे हृदय की धड़कन अनियमित और कभी-कभी बहुत तेज हो जाती है।

किसको है अधिक जोखिम

आर्टियल फिब्रिलेशन का जोखिम आयु बढ़ने के साथ बढ़ जाता है। आमतौर पर यह 60 साल के बाद ही देखने को मिलता है, हालांकि इसके लगभग आधे मरीज 75 साल से कम आयु के ही होते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों को आर्टियल फिब्रिलेशन होने की आशंका अधिक होती है।

आर्टियल फिब्रिलेशन के प्रकार

आर्टियल फिब्रिलेशन के दो प्रकार होते हैं। यदि आर्टियल फिब्रिलेशन आता और जाता रहता है, तो इसे परोक्सिमल (आवेगीय) एट्रियल फिब्रिलेशन कहते हैं। परोक्सिमल आर्टियल फिब्रिलेशन मिनटों से लेकर दिनों तक रह सकता है। लेकिन यदि आर्टियल फिब्रिलेशन एक हफ्ते से ज्यादा समय तक रहता है, तो इसे परसिस्टेंट या क्रोनिक आर्टियल फिब्रिलेशन कहते हैं। जो कि उपचार से ही जाता है।

आर्टियल फिब्रिलेशन के लक्षण

आर्टियल फिब्रिलेशन के लक्षणों के तौर पर, हृदय की अनियमित धड़कन, छाती के भीतर तेजी से ठोंकने जैसे अहसास जिसे हृदय की धुकधुकी कहा जाता है, होना, सांस फूलना गतिविधि करने पर जल्द ही थक जाना, बेहोशी तथा चक्कर आना या सिर खाली जैसा महसूस होना आदि महसूस होते हैं।

अनियमित दिल की धड़कन

कभी-कभी तेजी से दिल धड़कना आर्टियल फिब्रिलेशन से ज्यादा आम होता है। ये भी दिल के ऊपरी भाग में होती हैं, लेकिन मामान्यतः इसके कोई लक्षण नहीं दिखते। ये जोखिम को कारण नहीं होती और जल्द ठीक भी हो जाती है। जबकि आर्टियल फिब्रिलेशन गंभीर होती है और इसे तत्काल चिकित्सा की जरूरत होती है।

आर्टियल फिब्रिलेशन का उपचार

आर्टियल फिब्रिलेशन के उपचार के लिए आपकी हृदय गति और दर को नियमित करने की दवा दे सकता है। या फिर आपको रक्त के थक्के जमने और दौरा पड़ने का जोखिम कम करने के लिए रक्त को पतला करने वाली दवा अर्थात प्रतिस्कंदक (एंटीकोएग्युलेंट) भी दी जा सकती है। दवाओं से लाभ न होने पर कार्डियोवर्ज़न किया जाता है। यह त्वचा के जरिए हृदय को दिया गया कम ऊर्जा का विद्युत झटका होता है।  


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