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ब्रिटेन में ब्रेक्जिट पर महासंग्राम: PM टेरीजा की कुर्सी तो बच गई लेकिन आगे की राह आसान नहीं

टेरीज़ा मे के पक्ष में 200 जबकि विपक्ष में 117 वोट पड़े। टेरीज़ा के नेतृत्व को लेकर ये अविश्वास मत ऐसे समय आया है, जब ब्रेक्जिट फ़ैसले को लागू होने में तीन महीने का वक़्त बचा है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Thu, 13 Dec 2018 11:30 AM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 02:53 PM (IST)
ब्रिटेन में ब्रेक्जिट पर महासंग्राम:  PM टेरीजा की कुर्सी तो बच गई लेकिन आगे की राह आसान नहीं
ब्रिटेन में ब्रेक्जिट पर महासंग्राम: PM टेरीजा की कुर्सी तो बच गई लेकिन आगे की राह आसान नहीं

लंदन [ जागरण स्‍पेशल ]। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे ने ब्रेक्जिट मुद्दे पर एक बड़ी बाधा को पार कर लिया है। टेरीज़ा ने कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता के तौर पर विश्वास मत हासिल कर लिया है। बुधवार को हुए मतदान में टेरीज़ा के पक्ष में 200 जबकि विपक्ष में 117 वोट पड़े। टेरीज़ा के नेतृत्व को लेकर ये अविश्वास मत ऐसे समय आया है, जब ब्रेक्जिट फ़ैसले को लागू होने में तीन महीने का वक़्त बचा है। उधर, इस संकट को देखते हुए टेरीज़ा ने अपनी आयरलैंड की यात्रा को ऐन मौके पर रद कर दिया। उन्‍हें आयरलैंड की राजधानी डबलिन में वहाँ के प्रधानमंत्री लियो वराडकर से मिलना था।
निचले सदन में टेरीज़ा के जीत के मायने
संसद के निचले सदन (हाउस ऑफ कॉमंस) में टेरीज़ा ने भारी मतों से जीत हासिल की है। इस जीत से यह साफ हो गया कि टेरीजा को अपनी पार्टी और सदन में भारी समर्थन हासिल है। इसका मतलब यह है कि पार्टी के अंदर अगले एक साल तक टेरीज़ा मे के नेतृत्व को चुनौती नहीं दी जा सकेगी। इस जीत के बाद टेरीजा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बनीं रहेंगी। बता दें कि भारत की तरह ब्रिटेन में भी संसदीय व्‍यवस्‍था है। इस व्‍यवस्‍था में सत्‍ता प्रधानमंत्री के इर्दगिर्द घूमती है। प्रधानमंत्री तब तक अपनी कुर्सी पर रहता है जब तक उसे अपने दल का समर्थन और निचले सदन में बहुमत हासिल होता है।
पार्टी में विश्‍वास खोने का मतलब
ब्रेक्जिट मुद्दे पर टेरीज़ा यदि पार्टी के सांसदों का विश्वास मत हार जाती हैं, तो उनको प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ सकता था। ऐसे में उनको कंज़र्वेटिव पार्टी के नेता के रूप में भी इस्तीफा देना पड़ता। कंज़र्वेटिव पार्टी के उपनेता डेविड लिडिंगटन को इसकी जिम्‍मेदारी मिल सकती थी। या पार्टी में नए नेता का चुनाव कराना पड़ता। इसमें वह उम्मीदवार नहीं हो सकतीं थीं। बता दें कि ब्रेक्जिट नीति से नाराज़ उनकी पार्टी के 48 सांसदों ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। इन सांसदों का कहना था कि 2016 में हुए जनमत संग्रह के पक्ष में मतदान करने वाले लोगों की उम्मीदों पर टेरीज़ा में खरी नहीं उतरीं। लेकिन इस अ‍विश्‍वास से यह तय हो गया कि पार्टी में उनकी स्थिति कहीं न कहीं कमजोर हुई है।
पार्टी ने टेरीजा पर जताया विश्‍वास
टेरीजा मे की कंजरवेटिव पार्टी के हाउस ऑफ कॉमंस के सदस्यों की प्रभावशाली संस्था 1922 कमेटी के सामने पार्टी के 48 सांसदों ने मे के नेतृत्व में अविश्वास जताते हुए पत्र लिखा है। 48 सांसदों द्वारा इस तरह का पत्र देने के बाद नेतृत्व के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। बता दें कि संसद के निचले सदन में कंजरवेटिव पार्टी के 315 सदस्य हैं, अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ जीत के लिए टेरीज़ा को कम से कम 158 सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी। 48 सांसदों द्वारा इस तरह का पत्र देने के बाद नेतृत्व के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है। यानी इस प्रसताव के लिए 48 सांसदों के हस्‍ताक्षर युक्‍त पत्र की जरूरत होती है। इस पर सदन में वोटिंग होती है।
ब्रेक्जिट  मुद्दे पर 23 जून, 2016 को हुआ जनमत संग्रह
बता दें कि ब्रिटेन में ब्रेक्जिट  मुद्दे पर 23 जून, 2016 को जनमत संग्रह हुआ था, जिसमें ब्रिटेन के मतदाताओं ने यूरोपीय यूनियन से अलग होने के पक्ष में मतदान किया था। टेरीज़ा मे इस जनमत संग्रह के कुछ ही समय बाद प्रधानमंत्री बनी थीं और 29 मार्च, 2017 को उन्होंने ब्रेक्जिट की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। टेरिजा की ब्रेक्जिट योजना की उनकी पार्टी के भीतर ही आलोचना हो रही है। यूरोपीय यूनियन के क़ानून के तहत ब्रिटेन को ठीक दो साल बाद यानी 29 मार्च 2019 को यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाना पड़ेगा।
क्‍या है ब्रेक्जिट
ब्रेक्जिट  (Brexit), ब्रिटेन (Britain) और एक्ज़िट (exit) शब्द से मिलकर बना एक शब्द है, जिसका इस्तेमाल ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाने के लिए किया जाता है। यह बिल्कुल उसी तरह जैसे पहले ग्रीस के यूरोपीय संघ छोड़ने की बात उठी तो ग्रिक्सिट शब्द बना था। ब्रिटेन में 23 जून 2016 को इस सवाल पर जनमत संग्रह करवाया गया था, जिसमें फ़ैसला यूरोपीय संघ से अलग होने का आया। 51.9 फीसद मतदाताओं ने संघ से अलग होने के पक्ष में मत डाला. 48.1 फीसद लोगों ने विरोध किया था। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी चाहते हैं कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ में ही रहे। ईयू देश जैसे फ्रांस और जर्मनी भी ऐसा ही चाहते हैं।
क्‍या है ईयू और ब्रिटेन के विरोध की वजह

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  •  यूरोपीय संघ ब्रिटेन को पीछे खींच रहा है। उनके मुताबिक ईयू व्यापार के लिए बहुत सारी शर्तें थोपता है और कई बिलियन पाउंड सालाना मेंबरशिप शुल्क वसूलता है, लेकिन बदले में ज्यादा फायदा नहीं होता।
  •  ब्रिटेन के लोग चाहते हैं कि ब्रिटेन पूरी तरह से दोबारा अपनी सीमाओं पर नियंत्रण पा लें और उनके देश में काम या रहने के लिए आने वाले लोगों की संख्या घटा दें।
  •  ईयू सदस्यता का एक प्रमुख सिद्धांत है मुक्त आवाजाही, जिसका मतलब है कि किसी दूसरे ईयू देश में जाने या रहने के लिए वीज़ा की ज़रूरत नहीं पड़ती।
  •  कंजर्वेटिव पार्टी ने इस प्रचार में निष्पक्ष रहने की शपथ ली थी। उधर, ब्रिटेन की लेबर पार्टी, एसएनपी, प्लाएड कमरी और लिबरल डेमोक्रेट्स सभी ईयू में रहने के पक्ष में हैं।

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