बाल उत्पीड़न के शिकार लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति ज्यादा
जिन बच्चों को बचपन में शारीरिक, मानसिक या यौन उत्पीड़न सहना पड़ता है, उनमें बड़े होने पर आत्महत्या करने की प्रवृत्ति अधिक रहती है।
लंदन, प्रेट्र। आत्महत्या की बढ़ती प्रवृति वैज्ञानिकों के लिए हमेशा से चुनौती रही है। इस संबंध में कई अध्ययनों को अंजाम दिया गया है। इसी कड़ी में एक नया शोध सामने आया है, जो यह बताता है कि जिन बच्चों को बचपन में शारीरिक, मानसिक या यौन उत्पीड़न सहना पड़ता है, उनमें बड़े होने पर आत्महत्या करने की प्रवृत्ति अधिक रहती है।
ब्रिटेन की साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 68 अध्ययनों का विश्लेषण करने के बाद पाया कि बचपन में उत्पीड़न का शिकार हुए लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति सामान्य की तुलना में औसतन तीन गुना अधिक रहती है। इन अध्ययनों में 18 वर्ष से अधिक उम्र के 2.62 लाख लोगों से उनके साथ हुए यौन दुर्व्यवहार या बुरे बर्ताव के बारे में बात की गई थी। शोध में शामिल मैनेचेस्टर यूनिवर्सिटी की मारिया पैनागियोती ने बताया कि प्रत्येक तीन में से एक युवक ने बचपन में कभी ना कभी उत्पीड़न का सामना किया था। उम्र बढ़ने के साथ उनमें इसके दुष्प्रभाव देखने को मिलते हैं।
साइकोलॉजिकल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक बचपन में बार-बार शारीरिक, मानसिक व यौन प्रताड़ना सहने वालों में आत्महत्या करने की आशंका पांच गुना अधिक होती है। यदि पीडि़त मनोरोग विशेषज्ञों के संपर्क में ना हो तो उनमें आत्महत्या करने की प्रवृत्ति सबसे अधिक होती है।
उत्पीड़न के कारण लग जाती है धूमपान की लत
बचपन में मानसिक या शारीरिक रूप से उत्पीड़ित हुए लोगों को आगे चलकर धूमपान की लत लगने की आशंका दो गुना बढ़ जाती है। उनमें बार-बार जरूरत से ज्यादा खाने की आदत (बिंज इटिंग) पड़ने की आशंका भी सामान्य लोगों से तीन गुना अधिक रहती है। करीब तीन हजार लोगों पर किए अध्ययन में यह भी सामने आया कि डिप्रेशन की दवाओं पर ऐसे लोगों की निर्भरता चार गुना ज्यादा रहती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड के शोधकर्ता डेविड गोंजालेज चिका का कहना है, 'यदि डॉक्टर किसी ऐसे मरीज के संपर्क में आते हैं जो डिप्रेशन में हो और उसे बिंज इटिंग के साथ ही धूमपान की लत लगी हो, तो डॉक्टर को मरीज के साथ हुए बुरे बर्ताव या यौन उत्पीड़न के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने के बाद ही वह उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर सकेंगे।'