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जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती से निपटने का राह दिखाएंगी ये नई नीतियां

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पहले से ही कई नीतियां हैं, लेकिन इस मामले की पर्यावरणीय,सामाजिक और राजनीतिक जटिलताओं से निपटने के लिए नए नजरिये और तरीके की आवश्यकता है। ।

By TaniskEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 12:35 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jan 2019 02:21 PM (IST)
जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती से निपटने का राह दिखाएंगी ये नई नीतियां
जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती से निपटने का राह दिखाएंगी ये नई नीतियां

लंदन, प्रेट्र। सात बिंदुओं वाली एक योजना नीति-नियंताओं को जलवायु परिवर्तन की गंभीर चुनौती से निपटने की राह दिखा सकती है। इस तरह की योजना का सुझाव शोधकर्ताओं-वैज्ञानिकों ने अपनी एक रिपोर्ट में दिया है। उनके मुताबिक सुझाए गए सात बिंदुओं पर फोकस करके नीति-नियंता इस चुनौती का सामना कहीं अधिक कारगर तरीके से कर सकते हैं।

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ब्रिटेन की एक्सटर विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों समेत अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने यह जानने की कोशिश की कि राजनेता और कानून का निर्माण करने वाले जनप्रतिनिधि ग्लोबल वार्मिग जैसी चुनौती के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए किस तरह नए तरीके की तलाश कर सकते हैं।

जर्नल नेचर में प्रकाशित यह रिपोर्ट शीर्ष वैज्ञानिकों की ओर से दी गई इस सलाह के बाद आई है कि दुनिया को ग्लोबल वार्मिग के रूप में प्रकृति पर पड़ रहे असर से निपटने के लिए तत्काल प्रयास करने चाहिए,क्योंकि जलवायु में परिवर्तन ने पहले ही अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है और इसके दुष्प्रभाव बढ़ते ही जाने हैं। वैज्ञानिकों ने दुष्प्रभावों के रूप में वनस्पति और जीव प्रजातियों की व्यापक विलुप्ति से लेकर समुद्रों के तापमान में बढ़ोतरी और मौसम में परिवर्तन को रेखांकित किया है।

रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए हालांकि नीतियां उपलब्ध हैं,लेकिन इस मामले की पर्यावरणीय,सामाजिक और राजनीतिक जटिलताओं से निपटने के लिए नए नजरिये और तरीके की आवश्यकता है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों पर किए गए हाल के शोध में अर्थ सिस्टम के कई खतरों का उल्लेख किया गया है। 

रिपोर्ट में हालांकि यह स्वीकार किया गया है कि इस समस्या का कोई सरल समाधान नहीं है। इसके बावजूद वैज्ञानिकों ने सात बिंदु बताए हैं जिनकी मदद से मानव जनित ग्लोबल वार्मिग की चुनौती का सामना किया जा सकता है। इन बिंदुओं में मौजूदा नीतियों में कारगर तरीकों की छंटनी के साथ ही क्षेत्रीय,राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के भीतर लगातार जरूरी फैसले लेने और उन पर हरसंभव अमल सुनिश्चित करने की बात शामिल है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि कानून बनाने वाले लोगों को अब तक पर्यावरण पर पड़े दुष्प्रभाव को लेकर कहीं अधिक निर्णयात्मक रुख प्रदर्शित करना होगा।

एक्सटर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इयान बेटमैन ने कहा कि हमारा पेपर यह प्रदर्शित करता है कि सीमा संबंधी समस्याओं की एकीकृत प्रकृति को देखते हुए यह जरूरी है कि नीति निर्धारण का काम भी एकीकृत तरीके से किया जाए। शोधकर्ताओं की टीम ने चुनौतियों से निपटने के लिए नीति संबंधी विकल्पों का पहली बार एकीकृत आकलन किया। 

टीम ने एकीकृत वैश्विक समस्याओं जैसे वायु प्रदूषण, जमीन, पेयजल और समुद्र से जुड़े विषयों और पूरी दुनिया में जैविक विभिन्नता के तेजी के साथ क्षरण पर विचार किया। बेटमैन ने कहा कि परंपरागत नीतियां टुकड़ों-टुकड़ों वाली हैं। ये इसीलिए अक्षम साबित हुई हैं। इनमें नाकाम होने का खतरा बहुत है और कभी-कभी तो ये उल्टा नुकसान पहुंचाने वाली साबित हो सकती हैं। ऐसी नीतियां संसाधनों को तो खर्च कराती हैं, लेकिन नतीजे नहीं दे पातीं। इस तरह की नीतियों पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत है।


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