तापमान में परिवर्तन से विभिन्न प्रजातियों पर पड़ रहा असर, घट रही जीवों की आबादी
ब्रिटेन की लिवरपूल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ जीवों की विभिन्न प्रजातियों की आबादी घट रही है।
लंदन, प्रेट्र। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ जीवों की विभिन्न प्रजातियों की आबादी घट रही है। चिंता जताते हुए बताया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण अनुमान से भी तेज गति से उनकी संख्या में कमी आ रही है। हालात यह है कि अधिकतर प्रजातियां तो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं।
ब्रिटेन की लिवरपूल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रजातियों पर विस्तृत अध्ययन करके बदलते तापमान का उनके ऊपर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया। प्राप्त आंकड़ो से हर जीव की तापमान की नियत निर्धारण सीमा निकाली गई जिसे क्रिटिकल थर्मल लिमिट (सीटीएल) कहते हैं।
ट्रेंड्स इन इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पौधों और जीवों की विभिन्न प्रकार की प्रजातियों पर अध्ययन कर प्राप्त किए गए डाटा को सार्वजनिक किया है। वैज्ञानिकों ने पाया कि बहुत सारे जीव अपनी प्रजनन क्षमता तब खो देते हैं जब तापमान उनके सीटीएल से नीचे होता है। कुछ जीव समूहों को जलवायु परिवर्तन से होने वाली प्रजनन हानि के लिए सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता है। इसमें ठंडे खून की प्रजातियां और जलीय जीव शामिल हैं।
लिवरपूल यूनिवर्सिटी के टॉम प्राइस ने बताया कि यह बहुत घातक है कि हम जलवायु परिवर्तन के दौरान होने वाले इस प्रभाव को नजरअंदाज कर रहे हैं। हम केवल उस तापमान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो जीवों के जीवन पर सीधा खतरा डाल रहा है, बल्कि इस तापमान पर नजर नहीं रख रहे जिससे की जीवों की प्रजनन क्षमता घट रही है। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया कि हमें अत्यधिक तापमान पर भी जीवों की प्रजनन क्षमता में होने वाले बदलाव को देखना चाहिए।
और शोध की जरूरत
टॉम प्राइस ने बताया कि हमें दुनियाभर के ऐसे शोधकर्ताओं की जरूरत है जो मछली से लेकर मूंगा तक, पौधों से लेकर मक्खियों और स्तनधारियों तक में जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों का विस्तृत अध्ययन करें। यह जानने की कोशिश करें कि तापमान प्रजनन क्षमता को किस तरह प्रभावित करता है।
भविष्य की कर रहे तैयारी
वर्तमान में शोधकर्ता इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण अपने नियत स्थान से हटकर अपने अनुकूल तापमान कहां तलाशेंगीं। इस अध्ययन के बाद प्रजातियों को बचाने के लिए शोधकर्ता पहले से ही वह उन जगहों पर उपयुक्त सेंटर बना कर उनका संरक्षण कर सकेंगे।