प्रजातियों को विलुप्ति से बचाने के लिए नया गणितीय मॉडल
शोधकर्ताओं के मुताबिक, प्रजातियों के विलुप्त होने की कई वजहें हैं, लेकिन इनमें से सबसे प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा वातावरण में परिवर्तन है।
लंदन, प्रेट्र। वैज्ञानिकों ने लुप्तप्राय प्रजातियों के जीवित रहने और प्रजनन की दर आदि का अध्ययन करके एक नया मॉडल बनाया है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस आदर्श मॉडल के माध्यम से लुप्त हो रहीं प्रजातियों जैसे, ब्ल्यू व्हेल, बंगाल टाइगर और हरे कछुए को बचाया जा सकता है। डेनमार्क की सदर्न यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, प्रजातियों के विलुप्त होने की कई वजहें हैं, लेकिन इनमें से सबसे प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा वातावरण में परिवर्तन है।
इकोलॉजी लेटर्स जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ताओं ने बताया कि किसी भी प्रजाति के विलुप्त होने का जोखिम इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें प्रजनन कैसे हो रहा है और प्रत्येक जानवर कितने समय तक जीवित रहता है? जीवित रहने और प्रजनन की दर को समझकर उस प्रजाति के जीवित रहने की संभावनाओं को बेहतर बनाया जा सकता है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि इस दर को समझने के लिए गणितीय और सांख्यिकीय मॉडल उपयुक्त होते हैं। उन्होंने बताया कि इस तरह के गणितीय मॉडल को बनाने के लिए हमारे द्वारा दी गई जानकारी जितनी सही होगी, हम भविष्य में उस प्रजाति के आबादी के बारे में उतनी ही सटीक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
शोधकर्ता विलुप्ति की शिकार प्रजातियों के गणितीय मॉडल बनाने पर काम कर रहे हैं जिसके माध्यम से इन प्रजातियों में होने वाले भविष्य के परिवर्तनों के बारे में पता चलेगा। दो सामान्य अवधारणाएं हैं कि प्रजनन दर जीवित रहने की दर पर निर्भर है। जिन प्रजातियों में जीवित रहने की दर अधिक होती है उनमें प्रजनन अधिक होता है। इस वजह से उनकी आबादी बढ़ती है।
यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर फर्नांडो कोल्चेरो ने अपने शोध में इस धारणा को गलत साबित किया। उन्होंने कहा कि कभी-कभी स्थितियां जीवित रहने के हिसाब से अनुकूल होती हैं, लेकिन प्रजनन के लिए नहीं। उन्होंने 24 प्रजातियों से प्राप्त डाटा के आधार पर बनाए गए गणितीय और सांख्यिकीय मॉडल प्रस्तुत किए।