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...तो इसीलिए मच्छरों पर काम नहीं करते कीटनाशक, बनानी होंगी नई रणनीतियां

अध्ययन में कहा गया है कि मच्छरों की बढ़ती प्रतिरोधकता को रोकने के लिए हमें मच्छरदानियों को बनाने के तरीकों में बदलाव करना होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 28 Dec 2019 09:10 AM (IST)Updated: Sat, 28 Dec 2019 09:28 AM (IST)
...तो इसीलिए मच्छरों पर काम नहीं करते कीटनाशक, बनानी होंगी नई रणनीतियां
...तो इसीलिए मच्छरों पर काम नहीं करते कीटनाशक, बनानी होंगी नई रणनीतियां

लंदन, प्रेट्र। मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के पैरों में मौजूद प्रोटीन उन्हें कीटनाशकों के प्रतिरोध को विकसित करने में मदद करता है। इसी वजह से उन्हें मारने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं असर नहीं करती हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस अध्ययन के आधार पर अब मच्छरों को मारने के लिए नई रणनीतियां बनाने में मदद मिल सकती है। बता दें कि हर साल दुनियाभर में मलेरिया के कारण लगभग चार लाख लोगों की मौत हो जाती है। यह अध्ययन जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है।

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ब्रिटेन के लिवरपूल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन (एलएसटीएम) के शोधकर्ताओं के अनुसार, पश्चिमी अफ्रीका में बेड नेट (मच्छरदानियों) की कखराब गुणवत्ता की वजह से मच्छरों को रोकने के लिए किए जा रहे उपाय  नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं। कई क्षेत्रों में एनाफिलीज गाम्बिया और एनोफिल्स कोलुजी नामक मच्छरों द्वारा दवाओं के प्रति प्रतिरोध क्षमता विकसित कर लेने के कारण मलेरिया अधिक फैल रहा है। अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने बाइंडिंग प्रोटीन (एसएपी2) मच्छरों की आबादी में अत्यधिक मात्रा में पाया। पाइरेथ्रोइड्स के संपर्क में आने पर इसका स्तर और बढ़ जाता है। यह कीटनाशक है, जिसका इस्तेमाल मच्छर दानियों में

किया जाता है।

पाइरेथ्रोइड्स बढ़ा देता प्रतिरोधकता

इस अध्ययन के प्रमुख लेखक विक्टोरिया इंगम ने कहा, ‘मच्छरों के पैरों में मौजूद प्रोटीन जब पाइरेथ्रोइड्स के संपर्क में आता है तो उनकी प्रतिरोधकता और बढ़ जाती है। लेकिन, अब जब हम यह जान गए हैं तो भविष्य में हम मच्छरों को मारने के लिए बेहतर मच्छरदानियों का प्रयोग सुनिश्चित कर सकते हैं। इस अध्ययन में बताया गया है कि जब वैज्ञानिकों ने एसएपी2 प्रोटीन के लिए जिम्मेदार जीन को आंशिक रूप से शांत कर दिया, तो मच्छरों में इसका उत्पादन कम हो गया। तब मच्छरों ने कीटनाशक के प्रति संवेदनशीलता दिखाई। शोधकर्ताओं ने कहा, ‘वहीं दूसरी ओर जब प्रोटीन का स्तर उच्च था, तो पहले अतिसंवेदनशील मच्छर पाइरेथ्रोइड्स के लिए प्रतिरोधी बन गए थे। दूसरे शब्दों में कहें तो मच्छरों पर इसका कोई असर नहीं देखा गया।

सतर्कता भी जरूरी

अध्ययन में कहा गया है कि मच्छरों की बढ़ती प्रतिरोधकता को रोकने के लिए हमें मच्छरदानियों को बनाने के तरीकों में बदलाव करना होगा। क्योंकि मच्छर समय के साथ-साथ खुद को नए प्रतिरोधों के अनुकूल बनाने में जुट जाते हैं। इसलिए समय के साथसाथ सतर्कता बेहद जरूरी है। यदि डेंगू मलेरिया जैसे रोगों ने निजात पानी है तो इसके लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।


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