आखिर किसने और क्यों बनाए धरती पर विशाल मोनोलिथ, ईस्टर द्वीप पर एक नया शोध आया सामने
धरती पर कई जगहों पर मोनोलिथ बने हुए हैं। यह मोनोलिथ हमेशा से ही वैज्ञानिकों के लिए रिसर्च का विषय रहे हैं।
लास एंजिलिस [प्रेट्र]। 1250 और 1500 के बीच पूर्वी पोलीनेशिया में ईस्टर द्वीप पर रेपा नुई में नक्काशी कर विशाल मानव आकृतियों के बनाने के वजह के बारे में पहली बार वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर पता लगाया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विशाल मूर्तियों के बनने के पीछे की वजह यह है कि उस समय के लोग यह सोचते थे कि इन मोनोलिथ (मूर्तियों) से मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी, जिससे फसलों आदि की पैदावार अच्छी होगी। यूनेस्को ने ईस्टर द्वीप को 1995 में विश्व धरोहर का दर्जा दिया था।
मिट्टी की उर्वरता को बनाए गए मोनोलिथ
इस द्वीप के अधिकतर संरक्षित क्षेत्र रेपा नुई नेशनल पार्क में हैं। अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ द कैलिफोर्निया लासएंजिलिस (यूसीएलए) के शोधकर्ताओं के अनुसार यह पहला अध्ययन है जो मिट्टी की उर्वरता, कृषि, उत्खनन आदि के बारे में बताता है। इसमें उस साइट की मिट्टी का अध्ययन किया गया है, जहां के पत्थरों से इन मोनोलिथ का निर्माण हुआ। ‘आर्कियोलॉजिकल साइंस’ नामक जर्नल में अध्ययन को प्रकाशित किया गया है।
पोलीनेशियन आइलैंड का रैनो रराकू
इन मोनोलिथ की खोज पोलीनेशियन आइलैंड के पूर्व में रैनो रराकू नामक जगह पर हुई थी। विश्लेषण करने वाले शोधकर्ताओं ने बताया कि रैनो रराकू आदमकद प्रतिमाओं के अलावा कृषि उत्पादकता के क्षेत्र में भी अग्रणी है। इस अध्ययन के सह लेखक जो ऐनी वैन टिलबर्ग ने कहा कि हमारा अध्ययन मोनोलिथ के बारे में हमारी समझ को और व्यापक करता है।
मिट्टी में अहम खनिज मौजूद
शोधकर्ताओं ने कहा कि रैनो रराकू की मिट्टी के रासायनिक परीक्षण से पता चलता है कि संभवत: इस मिट्टी पर लंबे समय तक सबसे अमीर खनिज मौजूद रहे हैं। अध्ययन के अनुसार बताया गया कि इन लंबी आदमकद प्रतिमाओं को तराशने के दौरान चट्टानों का चूरा फैला उससे वहां की जगह उपजाऊ हो गई। शोधकर्ताओं ने बताया कि यहां की मिट्टी में बड़ी उच्च मात्र में कैल्शियम और फॉस्फोरस पाया गया। मृदा रसायन में उच्च स्तर में वह तत्व पाए गए जो पौधों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण हैं।
बेहद होशियार थे प्राचीन लोग
शोधकर्ताओं ने बताया कि द्वीप पर हर जगह मिट्टी खराब हो रही है, पौधों की बढ़ोतरी में काम आने वाले तत्वों का क्षरण हो रहा है, लेकिन साइट में प्राकृतिक उर्वरक और पोषक तत्वों की एक सही प्रतिक्रिया प्रणाली थी। अध्ययन से यह भी पता चलता है कि रापा नुई के प्राचीन लोग कृषि करने में बहुत होशियार थे।
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