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शिक्षकों को लेकर भारत छठा सबसे आशावादी देश, रणजीत दिसाले ग्लोबल टीचर प्राइज के फाइनलिस्ट की दौड़ में

2020 के लिए ग्लोबल टीचर प्राइज के फाइनलिस्ट की घोषणा भी की गई है जिसमें महाराष्ट्र के एक गांव के शिक्षक रणजीत दिसाले भी शामिल हैं। रणजीत 10 लाख डॉलर के वार्षिक पुरस्कार की दौड़ में हैं। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 27 Oct 2020 06:15 AM (IST)Updated: Tue, 27 Oct 2020 06:15 AM (IST)
शिक्षकों को लेकर भारत छठा सबसे आशावादी देश, रणजीत दिसाले ग्लोबल टीचर प्राइज के फाइनलिस्ट की दौड़ में
महाराष्ट्र के एक गांव के शिक्षक रणजीत दिसाले।

लंदन, प्रेट्र। शिक्षकों के प्रति सबसे आशावादी देशों में भारत छठे स्थान पर है। 35 देशों के वैश्विक सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में शिक्षण कार्यबल के आधार पर मूल्यांकन किया गया। पिछले सप्ताह 'रीडिंग बिटविन द लाइंस: वाट द व‌र्ल्ड रियली थिंक ऑफ टीचर' को वर्के फाउंडेशन ने जारी किया। देश में शिक्षकों की स्थिति पर लोगों के अंतर्निहित और स्वचालित विचारों को जाना गया। 

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वैश्विक सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट

सर्वे में भारत से पहले पांच स्थानों पर चीन, घाना, सिंगापुर, कनाडा और मलेशिया हैं। वर्के फाउंडेशन के संस्थापक और ग्लोबल टीचर फाउंडेशन के सन्नी वर्के ने कहा कि यह रिपोर्ट साबित करती है कि शिक्षक का सम्मान न केवल महत्वपूर्ण नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि यह देश के शैक्षिक परिणामों के लिए भी आवश्यक है। यह रिपोर्ट ग्लोबल टीचर स्टेटस इंडेक्स (जीटीएसआइ) 2018 के आंकड़ों पर आधारित है। रिपोर्ट में 35 देशों से प्रत्येक एक हजार प्रतिनिधियों को शामिल किया गया। 

जानें कौन हैं रणजीत दिसाले

2020 के लिए ग्लोबल टीचर प्राइज के फाइनलिस्ट की घोषणा भी की गई है, जिसमें महाराष्ट्र के एक गांव के शिक्षक रणजीत दिसाले भी शामिल हैं। रणजीत 10 लाख डॉलर के वार्षिक पुरस्कार की दौड़ में हैं। शिक्षक द्वारा भारत में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने और क्विक रिस्पांस (क्यूआर) कोड पाठ्यपुस्तक को लेकर किये गए उनके प्रयासों को देखते उन्हें इस पुरस्कार के लिए शीर्ष 10 प्रतिभागियों में जगह दी गई है। रंजीत सिंह दिसाले  2009 में जब सोलापुर जिले के परितेवाडी गांव में जिला परिषद प्राथमिक विद्यालय में आए थे, जब यह एक जीर्ण-शीर्ण इमारत थी। उन्होंने वहां बदलाव लाने का फैसला किया और यह सुनिश्चित किया कि छात्रों के लिए पाठ्यपुस्तकें स्थानीय भाषा में उपलब्ध हों। दिसाले ने न केवल पाठ्यपुस्तकों को छात्रों की मातृभाषा में अनुवाद किया बल्कि उनमें क्यूआर कोड भी जोड़ा ताकि छात्रों की पहुंच श्रव्य कविताओं, वीडियो व्याख्यान, कहानियों तक हो।


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