वैज्ञानिकों की बड़ी खोज, अब घर बैठे हो सकेगी प्रोस्टेट कैंसर की जांच
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी आसान विधि विकसित की है जिसके जरिये घर बैठे ही मूत्र के नमूनों से इस बीमारी की जांच हो सकेगी।
लंदन, एएनआइ। प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों के लिए यह खबर राहत वाली हो सकती है। पहले प्रोस्टेट कैंसर की जांच के लिए एक जटिल प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। जांच के लिए मरीज को काफी पीड़ा से गुजरना पड़ता था। दूसरे, जब तक प्रोस्टेट कैंसर अपने अंतिम चरण में नहीं आता था इसकी पहचान भी मुश्किल होती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। वैज्ञानिकों ने एक नई विधि का विकसित किया है, जिसके जरिए आसानी से जांच संभव है।
जी हां, प्रोस्टेट कैंसर की जांच के लिए अब कहीं जाने की जरूरत नहीं होगी। शोधकर्ताओं ने एक ऐसी आसान विधि विकसित की है, जिसके जरिये घर बैठे ही मूत्र के नमूनों से इस बीमारी की जांच हो सकेगी। शोधकर्ताओं के अनुसार, पीयूआर टेस्ट (प्रोस्टेट यूरिन रिस्क) को घर में ही मूत्र नमूनों पर आजमाया जा सकता है।
प्रोस्टेट कैंसर का अनुमान लगाने के लिए यह पहला अहम कदम होता है। इससे इस बीमारी के बायोमार्कर के स्तर की पहचान हो सकती है। इंग्लैंड के नॉर्विच मेडिकल स्कूल के प्रमुख शोधकर्ता डॉ जेर्मी क्लार्क ने कहा, 'पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर सबसे आम रोग है।आमतौर पर यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है। प्रोस्टेट कैंसर के लिए सामान्य रूप से रक्त जांच, डिजिटल रेक्टल एक्जामिनेशन (डीआरई), एमआरआइ या बायोप्सी से गुजरना पड़ता है। लेकिन पीयूआर महज मूत्र नमूनों से इस रोग के खतरे को भांप सकता है।'
ब्रेन इंजरी का हो सकेगा इलाज
भारतवंशी समेत शोधकर्ताओं के एक दल ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) आधारित एक ऐसी विधि ईजाद की है, जिससे डॉक्टरों को गंभीर ट्रॉमेटिक ब्रेन इंजरी (टीबीआइ) के इलाज में मदद मिल सकेगी। साइंटिफिक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस विधि के जरिये 85 फीसद तक यह सटीक अनुमान लगाया जा सकता है कि रोगी को बचाने के लिए डॉक्टरों के पास कितने दिन का समय है।
फिनलैंड की हेलसिंकी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता राहुल राज ने कहा, 'इस तरह का डायनेमिक प्रोग्नोस्टिक मॉडल कभी पेश नहीं किया गया। इसके लिए हालांकि अभी कुछ इंतजार करना होगा। कुछ समय बाद हम चिकित्सा क्षेत्र में इसे आजमा सकेंगे।' बढ़ती दुर्घटनाओं के कारण टीबीआइ मौत के प्रमुख कारण के तौर पर उभर रहा है। मस्तिष्क पर चोट लगने के कारण होने वाली इस समस्या का उपचार आइसीयू में होता है, लेकिन हर तीन में एक रोगी की मौत हो जाती है।