प्रोटीन निर्माण में भूमिका वाले खास जीनों का जीवनकाल पर होता है असर
पूर्व के अध्ययनों में छोटे जीवों के जीवनकाल बढ़ाने वाले जीन की पहचान हुई है। उनसे फ्रूट फ्लाई का जीवनकाल 10 प्रतिशत तक बढ़ाना संभव हो सका है। लेकिन यह पहला मौका है जब विज्ञानियों ने इंसानों में भी ऐसी खोज की है।
लंदन, एएनआइ। जीवनकाल बढ़ाने की लालसा इंसानों में सदैव रहती है। इसके लिए प्रयास भी होते रहे हैं। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रही प्रगति से रोगों की रोकथाम की बदौलत इसमें कुछ सफलताएं भी मिली हैं। अब एक नए शोध में पाया गया है कि जीन का एक ऐसा समूह होता है, जो हमारी कोशिकाओं के अवयवों के निर्माण में जरूरी भूमिका निभाते हैं और जीवनकाल पर भी असर डालते हैं। यह शोध जीनोम रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
पूर्व के अध्ययनों में छोटे जीवों के जीवनकाल बढ़ाने वाले जीन की पहचान हुई है। उनसे फ्रूट फ्लाई का जीवनकाल 10 प्रतिशत तक बढ़ाना संभव हो सका है। लेकिन यह पहला मौका है, जब विज्ञानियों ने इंसानों में भी ऐसी खोज की है।
शोध के सह लेखक यूसीएल इंस्टीट्यूट आफ हेल्दी एजिंग से संबद्ध डाक्टर नजीफ एलिक ने बताया कि पहले के अध्ययनों में हम देख चुके हैं कि यीस्ट, छोटे कीड़े और मक्खियों जैसे जीवों के माडल में प्रोटीन निर्माण में शामिल कुछ खास जीनों की सक्रियता रोक कर जीवनकाल बढ़ाया जा सकता है। लेकिन इंसानों के मामलों में ऐसे जीनों के काम रोकने से बीमारियां पैदा होती हैं, जिससे विकास से जुड़ी विकृतियां होती हैं, जिसे राइबोसोमोपैथिज कहते हैं।
उन्होंने बताया कि हालांकि हमने यह भी पाया कि उन जीनों के कामकाज रोकने से इंसानों का जीवनकाल बढ़ सकता है। ऐसा इसलिए भी हो सकता है कि ये जीन जीवन की शुरुआत में काफी उपयोगी होते हों और फिर बाद में समस्याएं पैदा करते हों।
जीन हमारी कोशिकाओं की प्रोटीन संश्लेषण मशीनरी में संलिप्त होते हैं, जो हमारे जीवन के लिए जरूरी होता है। लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा भी हो सकता है कि बाद के जीवन में हमें उसकी जरूरत नहीं होती हो। ऐसे में जीन एंटागोनिस्टिक पैलियोट्राफी का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं, जिसमें जीन हमारे जीवन को कम देते हैं। इन जीनों को इस प्रयोग के लिए चुना गया कि जब ये शुरुआती जीवन में हमारी मदद करते हैं तो क्या बाद में भी ऐसा हो सकता है।
क्या निकला निष्कर्ष : विज्ञानियों ने यह भी पाया कि जीन अभिव्यक्ति का प्रभाव खास अंगों से जुड़ा था। इनमें पेट की चर्बी, लिवर तथा कंकालीय मांसपेशी जैसे अंग शामिल हैं। लेकिन इसके साथ ही यह भी पाया कि लंबे जीवनकाल का संबंध उम्र से जुड़ी खास बीमारियों से परे था।
इस क्रम में यह निष्कर्ष भी सामने आया कि रैपामाइसिन जैसे ड्रग, जो एक इम्यून रेगुलेटर है और पीओएल 3 के कामकाज को रोकने में मदद करता है, उससे स्वस्थ्य जीवनकाल बढ़ाने में मदद मिल सकती है। यूसीएल जीनेटिक्स इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर कैरोलीन कुचेनबेकर ने बताया कि मक्खियों जैसे माडल जीवों के मामले में एजिंग संबंधी शोध इंसानों के मामले से हमेशा अलग होते हैं। लेकिन मेंडेलियन रैंडोमाइजेशन से दोनों को एकसाथ लाया जा सकता है।
कैसे किया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने 11,262 ऐसे लोगों के जीनेटिक डाटा की समीक्षा की, जिनका जीवनकाल असाधारण रूप से अधिक रहा था। उनमें कुछ विशिष्ट जीनों की गतिविधियां कम थीं। ये जीन दो आरएनए पोलीमरैस एंजाइम (पीओएलएस) से जुड़े थे, जो राइबोसोम की नकल (ट्रांसक्राइब) करने के साथ ही पीओएल 1 और पीओएल 3 नामक आरएनए को स्थानांतरित करते हैं।
जीवनकाल बढ़ाना हो सकेगा संभव।