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30 वर्षों के दौरान जानें- कहां गायब हो गई 28 ट्रिलियन टन बर्फ, इस बारे में पढ़ें- विशेषज्ञों की राय

धरती के बढ़ते तापमान की वजह से इस ग्रह पर मौजूद बर्फ की बड़ी बड़ी चट्टानें पिघल रही हैं। आलम ये है कि धरती से बीते 30 वर्षों के दौरान 28 ट्रिलियन बर्फ पिघल चुकी है। इसकी वजह से समुद्र का जलस्‍तर काफी बढ़ गया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 27 Jan 2021 10:58 AM (IST)Updated: Wed, 27 Jan 2021 06:50 PM (IST)
30 वर्षों के दौरान जानें- कहां गायब हो गई 28 ट्रिलियन टन बर्फ, इस बारे में पढ़ें- विशेषज्ञों की राय
30 वर्षों में 28 ट्रिलियन बर्फ पिघल गई।

लंदन (रॉयटर्स)। बीते 30 वर्षों में धरती के बढ़ते तापमान का अंदाजा यहां पर टनों पिघल चुकी बर्फ से लगाया जा सकता है। लीड्स यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में पता चला है कि इन तीन दशकों के दौरान धरती से 28 ट्रिलियन बर्फ पिघल चुकी है। इतनी बर्फ से पूरे ब्रिटेन को 300 फीट मोटी चादर से ढका जा सकता था। यूनिवर्सिटी की टीम ने इस दौरान हुए बर्फ को हुए नुकसान का पता लगाने के लिए सर्वे किया है। इस दौरान इस टीम ने सेटेलाइट से मिली तस्‍वीरों का भी गहन अध्‍ययन किया।

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इस टीम ने अपनी रिसर्च में पाया है कि बर्फ के पिघलने की वार्षिक दर वर्ष 1994 के बाद 65 फीसद तक बढ़ गई है। अध्‍ययन में पाया गया कि इन तीन दशकों के दौरान उत्‍तरी और दक्षिण ध्रुव से पिघली बर्फ ने इस नुकसान को काफी हद तक बढ़ा दिया है। सेटेलाइट से मिली तस्‍वीरों में इस बात की जानकारी काफी हद तक स्‍पष्‍ट हुई है कि इस अवधि के दौरान 28 ट्रिलियन बर्फ हम खो चुके हैं। इसकी वजह से समुद्र का जलस्‍तर तो बढ़ा ही है लेकिन साथ ही इंसानी बस्तियों के इसकी चपेट में आने से नुकसान भ्‍ज्ञी कुछ कम नहीं हुआ है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह से बर्फ का पिघलने और समुद्र के जलस्‍तर के बढ़ने से वन्‍यजीवों के लिए भी खतरा बढ़ गया है।

विशेषज्ञों के मुताबिक ये दुनिया में हुआ पहला ऐसा सर्वे है जिसमें सेटेलाइट से मिली तस्‍वीरों का अध्‍ययन कर और इससे मिले आंकड़ों का प्रयोग बर्फ के नुकसान का आकलन लगाने के लिए किया गया है। इस रिसर्च टीम के हैड और वैज्ञानिक थॉमस स्‍लेटर की मानें तो इस दौरान धरती के हर क्षेत्र में में हुए बर्फ के नुकसान का पता लगाया गया। इस दौरान विशेषज्ञों ने पाया कि ग्रीनलैंड, आर्कटिक में बर्फ की चट्टानें तेजी से पानी में समा गई हैं।

विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि इस तरह की घटना और बर्फ का पिघलना साफतौर पर ग्‍लो‍बल वार्मिंग से होने वाले नुकसान की तरफ इशारा कर रही हैं। इनके मुताबिक इस तरह की घटनाएं भविष्‍य में समुद्रीय जलस्‍तर के बढ़ने और तटीय इलाकों पर गहरा दुष्‍परिणाम डालेंगी। इस अध्‍ययन से न सिर्फ ग्‍लोबल वार्मिंग के बुरे प्रभावों के बारे में जानने का करीब से मौका मिला है बल्कि धरती पर जमी बर्फ की प्रणाली में हुए बदलाव को समझने का भी अवसर मिला है। इस दौरान की गई रिसर्च में सेटेलाइट के माध्‍यम से धरती के ध्रुवों पर टूटी बर्फ की मोटी चादरों पर भी निगाह रखने में मदद मिली है।

इस टीम का कहना है कि धरती से खत्‍म हो रही बर्फ का अध्‍ययन करने वाला ये अपने आप में पहला शोध है। इसके लिए विशेषज्ञों ने सीधेतौर पर वायुमंडल और महासागरों के बढ़ने तापमान को एक बड़ी वजह माना है। इनका कहना है कि 1980 के बाद से ये .5 फारेनहाइट से लेकर .2 फारेनहाइट तक बढ़ गया है। इस दौरान धरती पर मौजूद 215000 पर्वतीय ग्‍लेशियरों की जानकारी एकत्रित कर इनका अध्‍ययन किया गया।


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