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लॉकडाउन के चलते कम कांपी धरती, आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से स्थिर हुई पृथ्वी

स्टडी के लेखकों ने कहा कि इस बदलाव से उन्हें पृथ्वी की प्राकृतिक आवाज को स्पष्ट तरीके से सुनने का उन्हें अवसर मिला।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Fri, 24 Jul 2020 07:29 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jul 2020 07:29 PM (IST)
लॉकडाउन के चलते कम कांपी धरती, आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से स्थिर हुई पृथ्वी
लॉकडाउन के चलते कम कांपी धरती, आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियों के बंद होने से स्थिर हुई पृथ्वी

लंदन, आइएएनएस। कोरोना वायरस ने हमारे जीवन जीने के तौर तरीके पर ही असर नहीं डाला है, बल्कि इसका असर प्राकृतिक गतिविधियों पर भी पड़ा है। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जब दुनियाभर में लॉकडाउन लगा तो लोग घरों में कैद हो गए। आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियां बंद थम गईं, शोरगुल कम हो गया, इसका असर यह हुआ कि पृथ्वी का कंपन भी कम हो गया। 117 देशों में किए गए अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।

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विज्ञानियों के मुताबिक इतिहास में पहली बार भूकंपीय शोर में इतनी कमी आई है। भूकंपीय शोर उन सभी कंपन से मिल कर बनता है जो धरातल पर होने वाली गतिविधियों से पैदा होते हैं और सीज्मोमीटर (भूकंपमापी यंत्र) में अवांछनीय संकेतों के तौर पर दर्ज हो जाते हैं। इसमें भूकंप, ज्वालामूखी और बम के फटने से उठने वाली तरंगों के साथ ही वाहनों की आवाजाही और औद्योगिक गतिविधियां भी शामिल हैं।

साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है यह अध्ययन

यह शोध अध्ययन 'साइंस' पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन मार्च से मई के दौरान किया गया। इस दौरान लॉकडाउन के चलते लोग अपने घरों में कैद थे, औद्योगिक गतिविधियां भी ठप थी। इतने बड़े पैमाने पर लोगों के अपनी-अपनी जगहों पर रुके रहने और औद्योगिक गतिविधियों के ठहर जाने से पृथ्वी में होने वाला कंपन भी कम हो गया।

रॉयल ऑब्जर्वेटरी ऑफ बेल्जियम के नेतृत्व में इंपेरियल कॉलेज लंदन (आइसीएल) समेत दुनिया के अन्य पांच संस्थानों द्वारा किए गए अध्ययन में विशिष्ट रूप से देखने को मिला कि सिंगापुर और न्यूयॉर्क जैसे सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भूकंपीय शोर में सबसे ज्यादा कमी आई। स्टडी के सह लेखक आइसीएल के स्टीफन हिक ने कहा कि इससे एक बात और स्पष्ट हो गई है कि मानवीय गतिविधियां भारी भरकम पृथ्वी को किस हद तक प्रभावित करती हैं। उन्होंने कहा कि अध्ययन के दौरान प्राकृतिक और मानव द्वारा पैदा शोर बीच अंतर को भी स्पष्ट रूप से महसूस किया गया।

20 फीसद ज्यादा शोर में दर्ज की गई कमी

घनी आबादी के साथ ही जर्मनी के ब्लैक फॉरेस्ट से लेकर नामिबिया के रुंडु जैसे दूर-दराज के क्षेत्रों में भी भूकंपीय शोर में कम हुआ। यही नहीं, ब्रिटेन और अमेरिका के कॉर्नवेल और बोस्टन जैसे शहरों में विश्वविद्यालयों और स्कूलों के आस पास, छुट्टियों के दिनों से 20 फीसद ज्यादा शांति यानी शोर में कमी दर्ज की गई।

स्टडी के लेखकों ने कहा कि इस बदलाव से उन्हें पृथ्वी की प्राकृतिक आवाज को स्पष्ट तरीके से सुनने का उन्हें अवसर मिला। इसके लिए उन्हें मानव निर्मित आवाज को अलग करने की जरूरत नहीं पड़ी। इससे पहले, अप्रैल में नेचर पत्रिका में प्रकाशित शोध अध्ययन में भी कहा गया था कि बेल्जियम में लॉकडाउन शुरू होने के बाद से मानव निर्मित शोर में 30 फीसद की कमी आई है।


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