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Climate Change 2022: जलवायु परिवर्तन के चलते 2022 का साल पूरी दुनिया के लिए बन सकता है आफत

मौसम वैज्ञानिको के चेताने के बावजूद लोग अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में पूरी दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग का कहर बढ़ता ही जा रहा है। आए दिन भयंकर बाढ़ और भारी बारिश भारी तबाही मचा रही है।

By Deepak YadavEdited By: Published: Tue, 28 Jun 2022 02:45 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jun 2022 05:08 PM (IST)
Climate Change 2022: जलवायु परिवर्तन के चलते 2022 का साल पूरी दुनिया के लिए बन सकता है आफत
फाइल फोटो: जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया के लिए बनता संकट

लंदन, रायटर्स। मौसम में बढ़ती उथल-पुथल, चिलचिलाती गर्मी और भारी बारिश ने पूरे दुनिया भर में तबाही मचा रखी है। ऐसे में दुनिया भर में हजारों लोगों की जान चली गई तो लाखों को विस्थापित भी होना पड़ा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते, दक्षिण एशिया और यूरोप के कुछ हिस्सों में गर्मी का भीषण आतंक है। वहीं, सूखे ने पूर्वी अफ्रीका को अकाल की स्थिति में ला खड़ा किया है।

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मंगलवार को जलवायु वैज्ञानिकों ने पर्यावरण अनुसंधान जलवायु पत्रिका में एक लेख प्रकाशित किया। इसमें पिछले दो दशकों के अलग-अलग मौसमों की जांच की, जिसमें बेहद गंभीर परिणाम सामने आए। वैज्ञानिकों ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग से हालात बहुत खराब होने वाले हैं।

विक्टोरिया यूनिवर्सिटी आफ वेलिंगटन के एक जलवायु वैज्ञानिक ल्यूक हैरिंगटन ने कहा कि गर्म हवाएं और अधिक वर्षा के चलते प्राकृतिक आपदा तेजी से बढ़ी हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके बावजूद जंगल की आग और सूखे की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता। वहीं, कई निम्न मध्यम आय वाले देशों में तो इन घटनाओं का आकड़ा भी सामने नहीं आता।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक पर्यावरण वैज्ञानिक बेन क्लार्क ने कहा कि दुनिया भर में गर्म हवाओं की बढ़ती तीव्रता ने पर्यावरणीय हालात को खतरे में ला खड़ा किया है। ये गर्म हवाएं दस में से एक की तीव्रता से चलतीं तो राहत की बात थी मगर ये तीन गुना गति से चल रही हैं। वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन के अनुसार भारत और पाकिस्तान का तापमान 50 के उपर जाने वाला है।

एक अध्ययन में पता चला कि पिछले ही हफ्ते चीन में बारिश ने भारी तबाही मचा रखी थी। वहीं, बाग्लादेश में आई बाढ़ ने भी लोगों का जीवन दूभर कर दिया जिसमें सैकड़ो लोग मारे गए और हजारों की संख्या में विस्थापित हुए। वैज्ञानिको का कहना है कि भारी बारिश के पीछे नमी भरी गर्म हवा का संयोग है जिसमें बादल फटते हैं तो भयंकर बारिश होती है, तो कुछ क्षेत्रों में जरा भी बारिश नहीं होती।

सूखे के बारे में वैज्ञानिको का कहना है कि पश्चिमी अमरिका में स्नोपैक तेजी से पिघल रहा है, जिससे वाष्पीकरण बढ़ रहा है। वहीं बसंत ऋतु में बारिश में गिरावट हिंद महासागर के गर्म पानी से संबंधित है। यहां बारिश अपने जरूरी जगह पहुंचने से पहले ही समुद्री इलाकों में ही हो जाती है।

वैज्ञानिको का कहना है कि गर्म हवाएं और सूखे के चलते भी जगल की आग में इजाफा देखा जा रहा है। विशेष तौर पर मेगा फायर है जो 100,000 एकड़ से अधिक में जलती है। यूएस फारेस्ट सर्विस के मुताबिक अप्रैल में ही न्यू मैक्सिको में आग लग गई जिसमें 341,000 एकड़ का नुकसान हो गया।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की आवृत्ति में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है मगर ये चक्रवात अब मध्य प्रशांत और उत्तरी अटलांटिक में आम हो गए हैं। अध्ययन में कहा गया है कि उष्णकटिबंधीय तूफान अधिक तीव्र होते जा रहे हैं जो एक ही जगह पर अधिक वर्षा के जिम्मेदार भी हैं। इससे फरवरी में बत्सिराई चक्रवात के बनने की संभावन और बढ़ गई होगी, तब यह मेडागास्कर से टकराकर 120,000 घरों को बर्बाद करने में सक्षम था।


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