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बोरि‍स जॉनसन की पार्टी ने भारतीय मूल स्वर्ण सिंह को सौंपी बड़ी जिम्‍मेदारी, मुस्लिमों के करेंगे काम

ब्रिटेन में सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी ने भारतीय मूल के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह को मुस्लिमों से भेदभाव के मसलों पर सुझाव देने के लिए गठित स्वतंत्र समीक्षा की समिति का प्रमुख बनाया है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Wed, 18 Dec 2019 04:05 PM (IST)Updated: Wed, 18 Dec 2019 05:19 PM (IST)
बोरि‍स जॉनसन की पार्टी ने भारतीय मूल स्वर्ण सिंह को सौंपी बड़ी जिम्‍मेदारी, मुस्लिमों के करेंगे काम
बोरि‍स जॉनसन की पार्टी ने भारतीय मूल स्वर्ण सिंह को सौंपी बड़ी जिम्‍मेदारी, मुस्लिमों के करेंगे काम

लंदन, एएनआइ। ब्रिटेन में सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी ने भारतीय मूल के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह को अहम जिम्मेदारी सौंपी है। उन्हें इस्लामोफोबिया समेत सामाजिक और धार्मिक मसलों पर सुझाव देने के लिए गठित स्वतंत्र समीक्षा समिति का प्रमुख नियुक्त किया गया है। यह समिति भेदभाव और पक्षपात से जुड़ी शिकायतों के बेहतर निपटारे के लिए गठित की गई है। कंजरवेटिव पार्टी ने प्रोफेसर सिंह की नियुक्ति का साहसिक कदम उन खबरों के बीच उठाया है, जिनमें कहा जा रहा है कि इस पार्टी की सरकार में मुस्लिम असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

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मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन (एमसीबी) ने नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से आग्रह किया है कि वह ब्रिटिश मुस्लिमों को आश्वस्त करें। वारविक यूनिवर्सिटी में सामाजिक और सामुदायिक मनोचिकित्सा के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह इस बात की जांच-पड़ताल करेंगे कि कंजरवेटिव पार्टी इस तरह के मामलों के निपटारे की प्रक्रिया को कैसे बेहतर कर सकती है? कंजरवेटिव पार्टी के अध्यक्ष जेम्स क्लेवर्ली ने कहा, 'मुझे पार्टी में भेदभाव और पक्षपात की स्वतंत्र समीक्षा के लिए प्रोफेसर स्वर्ण सिंह को अध्यक्ष बनाने का एलान करते हुए खुशी हो रही है। कंजरवेटिव पार्टी हमेशा आरोपों पर तुरंत कार्रवाई करती है।' स्वर्ण सिंह समानता और मानवाधिकार आयोग के आयुक्त भी हैं। प्रोफेसर सिंह यह जिम्मेदारी 2013 से संभाल रहे हैं।

इससे इतर पीटीआइ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लंदन के हाई कोर्ट ने 2021 में ब्रिटेन में होने वाली जनगणना के पर्चे में निशान लगाने के लिए संबंधित पृथक सिख बॉक्स का मामला खारिज कर दिया है। एक ब्रिटिश सिख संगठन ने इस संबंध में न्यायिक समीक्षा अर्जी दाखिल की थी। जस्टिस बेवेर्ली लैंग ने व्यवस्था दी कि आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह जल्दबाजी पूर्ण कदम है और सत्ता के विभाजन पर संसदीय विशेषाधिकार एवं संवैधानिक परंपराओं के विपरीत है। उन्होंने नवंबर में सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 


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