वायु प्रदूषण भी बढ़ा देता है अवसाद का खतरा, 10 फीसद बढ़ जाती है रोगी होने की संभावना
शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि महीन कणों के औसत स्तर पर वृद्धि होती है और लोग प्रदूषित हवा के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं तो इस बात की संभावना 10 फीसद बढ़ जाती है।
लंदन, आइएएनएस। वायु प्रदूषण से श्वास संबंधी बीमारियां शरीर को घेर लेती हैं यह तो सभी जानते हैं, लेकिन अब एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि उच्च स्तर के वायु प्रदूषण में लंबे समय तक रहने से लोग डिप्रेशन यानी अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं और ऐसे लोगों के आत्महत्या करने की संभावना भी ज्यादा होती है। वायु प्रदूषण और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बीच संबंध का पता लगाने वाले सबूतों की समीक्षा और मेटाएनालिसिस स्वास्थ्य पत्रिका इनवायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स में प्रकाशित हुई है।
इस अध्ययन में 16 देशों के आंकड़ों की समीक्षा की गई है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ता और इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक जोसेफ हेस ने कहा, ‘हमारे निष्कर्ष इस साल सामने आए अन्य अध्ययनों से मेल खाते हैं, जो युवाओं के मामलों और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों में एक महत्वपूर्ण सुबूत हो सकता है।’ उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि विभिन्न अध्ययनों के निष्कर्षों के बीच समानता महज एक संयोग है, ये इस बात को और पुख्ता कर देते हैं कि वायु प्रदूषण से मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों में कहा गया है कि फाइन पार्टिकुलेट मैटर यानी महीन कणों को 10 माइक्रोग्राम पर मीटर क्यूब्ड से नीचे रखा जाना चाहिए। इसमें हवा में मौजूद छोटे-छोटे धूल के कणों को भी शामिल किया जाता है। इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने महीन कणों के प्रदूषण और वयस्कों में पांच अलग-अलग प्रतिकूल मानसिक स्वास्थ्य परिणामों के बीच संबंध की जांच की थी। इस दौरान उन्होंने 25 ऐसे अध्ययनों की पहचान की, जो उनके मानदंडों में फिट बैठते थे, जिनमें से नौ प्राथमिक विश्लेषणों में भी शामिल थे। लंबे समय तक पार्टिकुलेट मैटर एक्सपोजर को देखते हुए शोधकर्ताओं ने पांच अध्ययनों को एक मेटाएनालिसिस में शामिल किया गया था।
10 फीसद बढ़ जाती है रोगी होने की संभावना
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि महीन कणों के औसत स्तर पर वृद्धि होती है और लोग प्रदूषित हवा के संपर्क में लंबे समय तक रहते हैं तो इस बात की संभावना 10 फीसद बढ़ जाती है कि वे अवसाद से ग्रसित हो जाएं।
तंत्रिका को भी होता है नुकसान
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से जुड़े और इस अध्ययन के मुख्य लेखक इसोबेल ब्रेथवेट ने कहा, ‘हमने लगातार उन परिणामों का अध्ययन किया जिनकी समीक्षा में हमने लंबे समय तक वायु प्रदूषण जोखिम और अवसाद के बीच संबंधों का विश्लेषण किया गया था। उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि प्रदूषित हवा से महीन कण रक्तप्रवाह और नाक दोनों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं और वायु प्रदूषण में न्यूरोइन्फ्लेमेशन में वृद्धि करता है, जिससे तंत्रिका कोशिकाओं को नुकसान और हार्मोन उत्पादन में बदलाव होने की संभावना बढ़ जाती है।