Move to Jagran APP

रूसी राष्ट्रपति पुतिन का मंत्र- लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मारो

पुतिन के सामने चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं। उन्हें अपना घर भी संभालना है और बाहरी मोर्चे पर भी संयम दिखाना है...

By Digpal SinghEdited By: Published: Fri, 30 Mar 2018 09:12 AM (IST)Updated: Fri, 30 Mar 2018 09:45 AM (IST)
रूसी राष्ट्रपति पुतिन का मंत्र- लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मारो
रूसी राष्ट्रपति पुतिन का मंत्र- लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मारो

सुशील कुमार सिंह। इस वर्ष के मार्च महीने में दुनिया की राजनीति में दो बड़ी बातें हुई हैं। एक चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी चिनफिंग का ताउम्र राष्ट्रपति बने रहने का रास्ता साफ होना तो दूसरा व्लादिमीर पुतिन का चौथी बार रूस का राष्ट्रपति चुना जाना। भारत और चीन के बीच संबंध समतल नहीं हैं, जबकि रूस के साथ रिश्ते सरपट दौड़ रहे हैं। फिलहाल जिन हालातों में पुतिन रूस के राष्ट्रपति चुने गए हैं उससे तो आम रूसियों को यही लगता है कि उन्होंने दुनिया में रूस की नाक फिर ऊंची कर दी है।

loksabha election banner

रूस में पुतिन का दबदबा कायम
हालांकि उनकी इस बार की जीत रूस की आर्थिक मजबूती की दिशा और दशा का चित्रण भी करती है। इसीलिए उनके लोग उन्हें मैन ऑफ एक्शन कहते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि पहले राष्ट्रपति फिर प्रधानमंत्री और फिर राष्ट्रपति, उसमें भी जीत को दोहराना वाकई पुतिन की शख्सियत का ही कमाल है। फिलहाल दुनिया के सबसे बड़े क्षेत्रफल वाले रूस में पुतिन का दबदबा कायम है। कहा तो यह भी जाता है कि चुनाव में जो लोग उनके खिलाफ खड़े होते हैं वे केवल दिखावे के लिए होते हैं। इस बार के परिणाम के बाद भी ऐसी चर्चा आम थी। हालांकि चुनाव में तमाम अनियमितताओं और गलत तौर-तरीकों के आरोप भी उन पर लगे हैं। फिलहाल इन सबसे बेपरवाह पुतिन रूस के एक ऐसे लौह नेता बन चुके हैं जिनके इर्द-गिर्द शायद कोई नहीं है।

लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मारो
पुतिन किन वजहों से रूस की सत्ता पर बीते 18 सालों से काबिज हैं यह भी रोचक है। देखा जाय तो 65 वर्ष की आयु वाले पुतिन ने दुनिया को रूस की ताकत दिखलाने से कभी परहेज नहीं किया और न ही दुनिया से अपनी छाप छुपाई। गौरतलब है कि वर्षों तक अमेरिका और नाटो रूस को नजरअंदाज करते रहे और एक समय ऐसा भी आया जब अमेरिका में 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में रूस पर दखल देने का आरोप लगा। पुतिन की एक खासियत यह भी है कि वे जूडो में ब्लैक बेल्ट हैं और उसकी आक्रामकता उनके तेवर में भी झलकती है। अक्टूबर 2015 में पुतिन ने कहा था कि 50 साल पहले लेनिनग्राद की सड़कों ने मुझे एक नियम सिखाया था कि अगर लड़ाई होनी तय है तो पहला पंच मारो। 1997 में पुतिन रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की सरकार में शामिल हुए, जबकि 1999 में वे स्वयं रूस के राष्ट्रपति बने। साथ ही 2004 में वे दोबारा भी राष्ट्रपति चुने गए। गौरतलब है कि रूस के संविधान में तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने का प्रावधान नहीं था ऐसे में वे वहां के प्रधानमंत्री बने। फिर रूसी संविधान में संशोधन और कई बार राष्ट्रपति बनने का रास्ता भी साफ किया। यही वजह थी कि 2012 में तीसरी बार राष्ट्रपति और अब चौथी बार इसी पद पर काबिज हुए हैं।

रूस के खिलाफ दुनियाभर में मुहिम
खास यह भी है कि लंबे शासन के बावजूद लोग पुतिन को पसंद कर रहे हैं, जबकि शेष दुनिया में इन दिनों रूस संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। गौरतलब है कि इन दिनों रूस के राजनयिकों को दुनिया के कई देश अपने देश से बाहर निकाल रहे हैं। यह सिलसिला इंग्लैंड ने बीते 17 मार्च को शुरू किया था। अमेरिका ने भी 60 राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दे दिया है। फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, चेक गणराज्य समेत डेनमार्क, स्पेन और इटली आदि ने भी रूसी राजनयिकों को बाहर का रास्ता दिखाया है। जाहिर है दुनिया के तमाम देशों का विश्वास रूस पर से फिलहाल डगमगाया है। वहीं भारत और रूस के संबंध को देखें तो इसमें परंपरागत और नैसर्गिकता का भाव निहित रहा है।

भारत के साथ संबंध हमेशा नैसर्गिक दोस्ती वाले रहे
गौरतलब है कि जब दुनिया दो गुटों में बंटी थी, जिसमें एक संयुक्त राज्य अमेरिका का तो दूसरा सोवियत संघ का था तब भारत ने इन दोनों से अलग गुटनिरपेक्ष की राह अपनाई थी। हालांकि आर्थिक उदारीकरण और बदली दुनिया के मिजाज को देखते हुए आज यह पथ तुलनात्मक रूप से कुछ चिकना हुआ है, पर बदला नहीं है। भारत का दुनिया के तमाम देशों के साथ संबंधों को लेकर उतार-चढ़ाव रहे हैं, परंतु मास्को के साथ दिल्ली का नाता कभी उलझन वाला नहीं रहा। हालांकि वर्ष भर पहले जब रूस ने पाकिस्तान के साथ मिलकर युद्धाभ्यास करने का इरादा जताया था तब यह बात भारत को बहुत खली थी। यह चर्चा आम थी कि नैसर्गिक मित्र रूस ऐसे कैसे कर सकता है। वैसे इस बात में भी दम है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में अमेरिका और भारत के बीच संबंध कहीं अधिक प्रगाढ़ हुए हैं। बराक ओबामा के समय तो यह परवान चढ़ा था जिसे लेकर चीन समेत कुछ हद तक रूस को भी अखरना लाजमी था। फिलहाल मोदी ने कूटनीतिक संतुलन को बरकरार रखते हुए पुरानी दोस्ती को प्रगाढ़ रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

भारत-रूस के प्रगाढ़ संबंध
दरअसल प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू रूस की समाजवादी विचारधारा से बहुत प्रभावित थे। समाजवाद की ही प्रेरणा से भारत की अर्थव्यवस्था मिश्रित है, जिसमें पूंजीवाद के साथ समाजवाद और लोक के साथ निजी का समावेशन है। इतना ही नहीं भारत-रूस के द्विपक्षीय संबंध न केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि आर्थिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से कहीं अधिक उपजाऊ भी रहे हैं। और यह क्रम बना हुआ है। नवनिर्वाचित रूसी राष्ट्रपति पुतिन के सामने चुनौतियां कमोबेश उसी शक्ल-सूरत में अभी भी विद्यमान हैं।

पुतिन से सामने चुनौतियां भी कम नहीं
देखा जाय तो अमेरिका के साथ ठंडा पड़ चुका संघर्ष जब-तब उबाल मारता रहता है। उत्तर कोरिया के मामले में न केवल पुतिन को चीन को साधना है, बल्कि जापान और दक्षिण कोरिया के भी विश्वास पर उन्हें खरा उतरना है। इसके अलावा ब्रिटेन में कथित रूप से रासायनिक हमले को लेकर बढ़ रहा विवाद भी उनके लिए बड़ी चुनौती है। सीरिया गृहयुद्ध और वहां की सरकार को समर्थन देने पर भी वह विवादों के घेरे में हैं। साथ ही रूस की अर्थव्यवस्था भी अभी पटरी पर नहीं आई है। जाहिर है पुतिन को घर भी संभालना है और बाहर भी संयम दिखाना है। इसमें वे कितना सफल होते हैं यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

लेखक वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के निदेशक हैं


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.