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अब रिसर्च में वैज्ञानिकों ने टिड्डियों के झुंड बनने वाले रसायन का लगाया पता, बच सकेंगी फसलें

किसानों को टिड्डी दल से फसल को बचाने का अचूक इलाज नहीं मिल पाया है अब एक शोध में वैज्ञानिकों ने एक रसायन का पता लगाया है जिससे उनके झुंड बनने की बात पता चलती है।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Mon, 17 Aug 2020 03:45 PM (IST)Updated: Mon, 17 Aug 2020 03:45 PM (IST)
अब रिसर्च में वैज्ञानिकों ने टिड्डियों के झुंड बनने वाले रसायन का लगाया पता, बच सकेंगी फसलें
अब रिसर्च में वैज्ञानिकों ने टिड्डियों के झुंड बनने वाले रसायन का लगाया पता, बच सकेंगी फसलें

नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क/रॉयटर्स। दुनिया के कई देश टिड्डी दल के हमलों से परेशान हैं, इस वजह से वो उनसे बचने के लिए बर्तन बजाने तक के तमाम जुगाड़ अपनाते हैं लेकिन फिर भी किसानों को टिड्डी दल से फसल को बचाने के लिए अचूक इलाज नहीं मिल पाया है।

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अब वैज्ञानिकों ने टिड्डियों द्वारा छोड़े जाने वाले एक ऐसे केमिकल कंपाउंड (रसायनिक यौगिक) की पहचान की है जो उनके झुंड बनने के कारण बनता है। अब ऐसा माना जा रहा है कि इन कीटों को रोकने के लिए संभव है कि नए तरीकों की खोज के दरवाजे खोले जा सकते हैं। यदि वैज्ञानिकों को इनमें कामयाबी मिल गई तो वो इंसानों के सामने पैदा होने वाले खाद्य संकट को कम कर पाएंगे।

शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने फीरोमोन नाम के रसायन की पहचान की है। जानवरों द्वारा उत्पादित रसायन अपनी प्रजातियों के दूसरे सदस्यों के व्यवहार को प्रभावित करता है। यह दुनिया की सबसे व्यापक टिड्डियों की प्रजातियों, प्रवासी टिड्डी या फिर मौसम बदलने पर एक जगह से दूसरी जगह जाने वाली टिड्डियों में पाया जाता है। शोधकर्ताओं ने इस रसायन का नाम 4-वाइनेलेनसोन (4वीए) रखा है, यह मुख्य तौर पर पिछले पैर से निकलता है और अन्य टिड्डियां अपने एंटेना से इसका पता लगा लेती हैं और गंध की पहचान करने वाले रिसेप्टर्स इसको महसूस कर लेते हैं। 

टिड्डियों को रोकने के लिए एक आम तरीका तेज आवाज का इस्तेमाल है लेकिन जरूरी नहीं कि इससे टिड्डी आगे ना बढ़ें। कई बार तेज आवाज से टिड्डी दल तेजी से आगे बढ़ते हैं। दूसरा तरीका इन्हें खाने का है। दुनिया के कई इलाकों में इन्हें खाया भी जाता है लेकिन उससे इनकी संख्या पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। यूएन ने टिड्डी मारक कीटनाशकों के छिड़काव के लिए 10 मिलियन डॉलर दिए हैं लेकिन अभी भी 70 मिलियन डॉलर की जरूरत है।

संयुक्त राष्ट्र के संगठन फूड एंड एग्रिकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक एक वर्ग किलोमीटर इलाके में 8 करोड़ टिड्डी हो सकते हैं। एक साथ चलने वाला टिड्डियों का एक झुंड एक वर्ग किलोमीटर से लेकर कई हजार वर्ग किलोमीटर तक फैला हो सकता है। एक टिड्डी पांच महीने तक जी सकता है। इनके अंडों से दो सप्ताह में बच्चे निकल सकते हैं। दो से चार महीनों का समय इनकी जवानी का समय होता है।

एक बात और है। टिड्डी चुनकर खाना नहीं खाते। वे अपने रास्ते में आने वाली हर खाने वाली चीज को खा सकते हैं। टिड्डों का एक औसत झुंड एक दिन में 19.2 करोड़ किलोग्राम पौधों और फसलों को चट कर सकता है। केन्या, इथियोपिया और सोमालिया में तो टिड्डी दल इतने घने झुंड में चलते हैं कि उनके पार कुछ नहीं दिखता है।

जर्नल नेचर पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक 4वीए उम्र या लिंग की परवाह किए बिना शक्तिशाली रूप से टिड्डियों को आकर्षित करता है। यह रसायन तब पैदा होता है जब एकांत में रहने वाली चार या पांच टिड्डियां एक साथ आ जाती हैं। रिसर्च टीम के प्रमुख ले कांग के मुताबिक मानव इतिहास में टिड्डी का हमला, सूखा और बाढ़ तीन प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं के रूप में मानी जाती है जो कि दुनिया भर में कृषि और आर्थिक नुकसान के लिए गंभीर कारण बनती हैं। 

कांग आगे कहते हैं कि सबसे व्यापक रूप से फैली और सबसे खतरनाक टिड्डी प्रजातियां दुनिया भर में कृषि के लिए गंभीर खतरा है। टिड्डी के दल में लाखों टिड्डियां शामिल होतीं हैं जो कुछ ही मिनटों में सैकड़ों एकड़ की फसल चट कर जाती हैं। एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में प्रवासी टिड्डी का दल अहम फसल जैसे कि गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा और चारे की फसल पर हमला करती है।

कांग का कहना है कि 4वीए पर और अधिक शोध की जरूरत है यह जानने के लिए कि क्या वह अन्य प्रजातियों में भी मौजूद रहता है। मौजूदा समय में रसायनिक कीटनाशक टिड्डियों को खत्म करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल मानव स्वास्थ्य और सुरक्षा के बारे में चिंताओं को और अधिक बढ़ाता है। 4वीए की पहचान नए तरीकों के विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकती है। एक रसायन का विकास किया जा सकता है जो कि 4वीए को रोकने के लिए हो सकता है। इसके जरिए टिड्डियों को दल बनाने से रोका जा सकता है। 


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