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जानें- क्या है रूस की भारत के प्रति दिलचस्‍पी की चार बड़ी वजह, रूसी विदेश मंत्री की यात्रा पर US की पैनी नजर

रूसी विदेश मंत्री की यह यात्रा ऐसे समय हो रही है जब भारत अपने सामरिक और रणनीतिक कारणों से अमेरिका के काफी निकट है। रूस और भारत के बीच रिश्‍तों में सब कुछ सामान्‍य नहीं है। हालांक‍ि शीत युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच मधुर संबंध रहे है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Tue, 06 Apr 2021 03:24 PM (IST)Updated: Tue, 06 Apr 2021 10:07 PM (IST)
जानें- क्या है रूस की भारत के प्रति दिलचस्‍पी की चार बड़ी वजह, रूसी विदेश मंत्री की यात्रा पर US की पैनी नजर
4 Point में समझिए रूस की भारत के प्रति दिलचस्‍पी की प्रमुख वजह। फाइल फोटो।

नई दिल्‍ली ऑनलाइन डेस्‍क। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावारोव की भारत यात्रा कई मायने में उपयोगी है। उनकी इस यात्रा के कई निहितार्थ हैं। रूसी विदेश मंत्री की यह यात्रा ऐसे समय हो रही है, जब भारत अपने सामरिक और रणनीतिक कारणों से अमेरिका के काफी निकट है। रूस और भारत के बीच रिश्‍तों में सब कुछ सामान्‍य नहीं है। हालांक‍ि, शीत युद्ध के दौरान दोनों देशों के बीच मधुर संबंध रहे है। शीत युद्ध के दौरान रणनीतिक रूप से रूस, भारत का सहयोगी देश रहा है। उस वक्‍त कई मुश्किलों में रूस ने भारत का साथ दिया है। अब अंतरराष्‍ट्रीय परिस्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी हैं। हाल में रूस और चीन रणनीतिक और सामरिक रूप से साझेदार बने हैं। उधर, सीमा विवाद के चलते चीन से भारत के तनावपूर्ण संबंध हैं। अंतरराष्‍ट्रीय पर‍िदृष्‍य में दुनिया दो ध्रुवों में बंटती दिख रही है। एक खेमे में अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्‍ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन हैं तो दूसरे में चीन, रूस, पाकिस्‍तान, तुर्की एवं ईरान है। क्वाड सम्‍मेलन के बाद अमेरिकी खेमे की नींव मजबूत हुई है। आइए जानते हैं कि लावारोव किस उम्‍मीद से भारत की यात्रा पर आए हैं। उनकी यात्रा के क्‍या निहितार्थ हैं। अमेरिका की इस यात्रा पर क्‍यों नजर होगी।  

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1- क्वाड शिखर सम्‍मेलन के बाद चिंतित हुआ रूस

प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि हाल में क्वाड (QUAD) समूह के प्रतिनिधियों की बैठक और उसकी एकता देखकर रूस चौंकन्‍ना हुआ है। इस समूह के पहले श‍िखर सम्‍मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिस्‍सा लिया था। इस वर्चुअल बैठक में दक्षिण चीन सागर में चीन के दखल पर खुलकर चर्चा रही। क्वाड के प्रमुख चार देशों ने एक सुर में इसकी निंदा की। अमेरिकी राष्‍ट्रपति बाइडन ने चीन की अक्रामकता की निंदा की थी और सहयोगी देशों से एकजुट होने की अपील की थी। क्वाड देशों की एकता चीन को ही नहीं रूस को भी अखरी है। चीन ने क्वाड बैठक के बाद इस पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया भी दी थी। रूस यह जानता है कि दक्षिण एशिया में भारत उसका प्रमुख और भरोसेमंद सहयोगी रहा है। दक्षिण एशिया की राजनीति में भारत का अहम रोल है। उन्‍होंने कहा कि मॉस्‍को यह भलीभांति जानता है कि दक्षिण एशिया की राजनीति में भारत की अनदेखी नहीं की जा सकती है। ऐसे में रूसी विदेश मंत्री इस बात को जरूर टटोलेंगे की भारत की अब नई रणनीति क्‍या है। 

2- एंटी मिसाइल सिस्‍टम एस-400 पर होगी नजर

प्रो. पंत ने कहा कि शीत युद्ध के दौरान और उसके बाद भी रूस भारत का भरोसेमंद दोस्‍त था। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत अपने सैन्‍य-साजों समान का एक बड़ा हिस्‍सा रूस से खरीदता था। रूस की यह हिस्‍सेदारी 90 फीसद तक थी। भारत अभी भी 60 फीसद सैन्‍य साजों समान रूस से ही खरीदता है। अमेरिका के विरोध के बावजूद भारत और रूस के बीच एंटी मिसाइल सिस्‍टम एस-400 को लेकर बड़ी डील हुई है। हालांकि, इस रक्षा डील को लेकर अमेरिका ने भारत का जबरदस्‍त विरोध किया है। इसके बावजूद भारत अपने स्‍टैंड पर कायम है। इस बैठक में रूसी विदेश मंत्री भारत के रुख को भांपने की कोशिश करेंगे। दोनों देशों के बीच एस-400 पर वार्ता पर अमेरिका की भी पैनी नजर होगी।

3- अफगान शांति वार्ता और तालिबान बड़ा फैक्‍टर

शीत युद्ध की समाप्ति के बाद रूस की दिलचस्‍पी अफगानिस्‍तान में भले ही कम हो गई हो, लेकिन मध्‍य एशिया में उसके हित अभी भी बरकरार है। इसलिए शांति वार्ता के जरिए वह मध्‍य एशिया में अपने हितों को साधने में जुटा है।  मध्‍य एशिया का इलाका रूस के लिए रणनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा के नजरिए से काफी अहम और उपयोगी है। रूस के लिए मध्‍य एशिया में शांति और स्थिरता के लिए अफगान में शांति बहाली बेहद जरूरी है। भारत उन मुल्‍कों में शामिल है, जो अफगान शांति वार्ता का अहम हिस्‍सा है। हाल में रूस पर यह आरोप लगाए गए थे कि रूस, भारत को इस शांति वार्ता में शामिल करने के लिए राजी नहीं है। हालांकि, बाद में रूस ने इसका खंडन किया था। ऐसे में रूस शांति वार्ता में भारत के दृष्टिकोण को भी समझना चाहेगा। खासकर तब जब रूस तालिबान का सम‍र्थक रहा है और भारत इसका घोर विरोधी। इसलिए वह तालिबान के प्रति भारत के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करेगा। 

4- संबंधों को सामान्‍य करने पर रहेगा जोर

गत वर्ष भारत और रूस के बीच होने वाली सलाना शिखर बैठक का आयोजन नहीं किया गया था। उस वक्‍त दोनों देशों के बीच रिश्‍तों में थोड़ा खिंचाव था। चीन सीमा विवाद पर भी रूस की चुप्‍पी से इन संबंधों में शिथिलता आई थी। उधर, अमेरिका और अन्‍य यूरोपीय देशों ने इस मामले में चीन की निंदा की थी। उस वक्‍त भारत को रूस के समर्थन की जरूरत थी, लेकिन रूस ने अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। हाल के दिनों में रूस का झुकाव चीन की ओर रहा है। इतना ही नहीं रूस भारत की चिंताओं को दरकिनार कर पाकिस्‍तान के साथ सैन्‍य अभ्‍यास करने में लगा है। दोनों देशों के बीच सैन्‍य अभ्‍यास 2020 में हुआ था। अब जबकि अफगानिस्‍तान में पाकिस्‍तान समर्थक तालिबान की सत्‍ता में वापसी की गुंजाइस बन रही है तब रूस, पाकिस्‍तान के साथ करीबी रिश्‍ता बनाने को इच्‍छुक है।


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