पाकिस्तान की इस टॉप महिला खिलाड़ी के बारे में क्या कहेंगे शाहिद अफरीदी, हैं दो अलग सोच
एक तरफ पाकिस्तान की स्पिनर सना मीर है तो दूसरी तरफ आलराउंडर शाहिद अफरीदी। यह दोनों ही पाकिस्तान में पनप रही दो सोच को दिखाते हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ‘नया पाकिस्तान!’ क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान ने इसी नारे के साथ देश की सत्ता हासिल की थी। उनका कहना था कि नया पाकिस्तान बनाएंगे जो विकास की राह पर आगे बढ़ेगा, जहां गरीबी-अमीरी की खाई कम होगी। लेकिन इस नए पाकिस्तान में वह लोगों का दकियानूसी सोच को बदलने के लिए भी काम करेंगे उन्होंने न तो ऐसा कुछ कहा और न ही ऐसा कुछ हो रहा है।
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि बीते सोमवार को पाकिस्तान की दो खबरें लगभग एक की समय पर सामने आईं। यह दोनों ही खबरें किक्रेट जगत से जुड़ी हुई थीं। लेकिन इन दोनों खबरों के बाद जो नए पाकिस्तान की सोच सामने आई वह वही दकियानूसी थी जिसे किसी भी सूरत से सभ्य समाज का हिस्सा नहीं माना जा सकता है।
आपको बता दें कि एक दिन पहले पाकिस्तान क्रिकेट टीम की स्पिनर सना मीर की खबर सामने आई थी, जिसमें उन्हें दुनिया की सबसे बेहतरीन महिला स्पिनर बताया गया था। इसको पाकिस्तान की मीडिया पूरी तरजीह भी दी थी और सुर्खियों से प्रकाशित भी किया था। ये होना भी चाहिए था।
आपको यहां पर ये भी बता दें कि सना पाकिस्तान की पहली ऐसी क्रिकेटर है जिन्होंने सौ से अधिक वन डे खेल चुकी हैं। किसी भी देश के लिए यह गौरव की बात हो सकती है। इसके साथ आने वाली दूसरी खबर शाहिद अफरीदी की तरफ से आई थी। इसमें उन्होंने कहा था कि वह अपनी बच्चियों को केवल इनडोर गेम्स खेलने की तो इजाजत दे सकते हैं, लेकिन उन्हें आउट डोर गेम्स खेलने की इजाजत कतई नहीं दी जाएगी।
ये दोनों ही खबरें दो अलग-अलग सोच को दिखाती हैं। इत्तफाक की बात ही है कि दोनों खबरें क्रिकेट से जुड़ी हैं। दोनों ही खबरों में पाकिस्तान के जाने-पहचाने चेहरे सामने थे। एक तरफ सना तो दूसरी तरफ अफरीदी। इसके साथ ही पाकिस्तान की सत्ता पर भी एक पूर्व क्रिकेटर ही विराजमान हैं।
आपको बता दें कि अफरीदी के फैन जैसे पाकिस्तान में हैं वैसे ही भारत में भी हैं। जब कभी भारत और पाकिस्तान के बीच मैच हुआ तो पाकिस्तान की टीम के कुछ खिलाड़ी हमेशा ही सुर्खियां बटोरते थे जिसमें अफरीदी भी एक हुआ करते थे। अफरीदी खुद न सिर्फ एक अच्छे आलराउंडर हैं बल्कि उन्हें एक बेहतर इंसान भी कहा जाता है। लेकिन अपनी बच्चियों के प्रति सोच ने उनपर सवाल खड़े कर दिए हैं।
हालांकि अफरीदी ने बाद में अपनी सोच पर सफाई देते हुए कहा है कि उनकी यह सोच सोशल मीडिया और उनके इस्लाम की तरफ झुकाव की वजह से बनी है।
सवाल उठ रहे हैं कि आखिर खेल की वजह से ही सना की आज पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। वहीं दूसरी तरफ जाने-माने क्रिकेटर हैं जो अपनी बच्चियों को घर की चाहरदिवारी में ही कैद रखना चाहते हैं। उन्हें बाहर खेलने तक की इजाजत नहीं देना चाहते हैं। अफरीदी भले ही अपनी सोच की वजह कुछ भी कहें लेकिन इसको मानसिक पिछड़ापन कहना गलत नहीं होगा।
पाकिस्तान में भले ही कट्टरवाद हो लेकिन इसके बाद भी वहां पर आज महिलाएं फाइटर पायलट भी हैं और खिलाड़ी भी हैं। सना की तरह ही कई दूसरी महिलाएं भी हैं जो खेल की दुनिया में काफी नाम कमा रही हैं और देश का नाम ऊंचा कर रही हैं। सना को हासिल उपलब्धि के बाद उन्हें सोशल मीडिया पर ढेरों बधाई मिल रही हैं।
अफरीदी ने ट्विटर पर लिखा है कि उनके लिए उनकी बेटियां सब कुछ हैं। उनकी जिंदगी इन्हीं के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं। उनके मन में भी कई सारी अभिलाषाएं होंगी जिन्हें पूरा करने के लिए वह हर अच्छे पिता की तरह उनकी मदद करेंगे। उन्होंने इसके साथ ही अपनी और पूरी दुनिया की महिलाओं की बेहतरी के लिए दुआ भी मांगी है। यह ट्वीट उनकी दूसरी सोच को बयां करती है। उनके इस ट्वीट से उनके एक अच्छे पिता होने का पता चलता है। शाहिद उन खिलाडि़यों में से एक हैं जो भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों की बेहतरी के लिए क्रिकेट को एक अच्छा जरिया भी मानते हैं।
इन सभी के बीच अपने बच्चों को आउट डोर गेम्स न खेलने की इजाजत देने वाली सोच लोगों के गले नहीं उतर रही है। जिस तरह से अफरीदी को बचपन से ही क्रिकेट का शौक था, ठीक वैसे ही उनकी दो बेटियों को भी क्रिकेट का शौक है। लेकिन, अफरीदी इसकी इजाजत नहीं देंगे। उन्होंने इसका जिक्र गेमचेंजर नाम से आई किताब में बड़ी निडरता से किया है।
आपको बता दें अफरीदी खैबर पख्तून्ख्वां से ताल्लुक रखते हैं। इसे नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस भी कहते हैं। यह इलाका अफगानिस्तान की सीमा से लगता है और यहां पर छोटे-छोटे कबीले हैं। जिनमें से एक से अफरीदी का भी संबंध है। यहां पर तालिबान की मौजूदगी आज भी है। तालिबान का जिक्र यहां पर इसलिए किया गया है क्योंकि उसकी हुकूमत में अफगानिस्तान में महिलाओं को पढ़ने और और खेलकूद की इजाजत नहीं थी। सीमा से सटे होने की वजह से तालिबानी कल्चर खैबर पख्तून्ख्वां में भी दिखाई देता है। मलाला यूसुफजई इसका जीता जागता उदाहरण है।
लिहाजा यहां पर ये सवाल उठना लाजमी है कि कहीं अफरीदी की कहीं तालिबानी सोच तो नहीं है जो बच्चों पर इस तरह का प्रतिबंध लगाने में विश्वास रखती है। ऐसे में सना समेत पाकिस्तान की उन महिलाओं के माता-पिता वास्तव में तारीफ के काबिल हैं जिन्होंने अपने ऊपर कट्टरवाद हावी नहीं होने दिया और अपनी बच्चियों के सपनों को पंख लगाने में पूरी मदद की है।
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