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दुनिया में आतंक की विषबेल फैलाने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान का समाज भी लकवाग्रस्त

पाकिस्तान के संविधान में इतने प्रावधानों के बावजूद वहां जितने भी हिंदू ईसाई सिख और दूसरे अल्पसंख्यक रहते हैं उनका नाम ही गैर से शुरू किया जाता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 10 Sep 2019 09:51 AM (IST)Updated: Tue, 10 Sep 2019 10:47 AM (IST)
दुनिया में आतंक की विषबेल फैलाने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान का समाज भी लकवाग्रस्त
दुनिया में आतंक की विषबेल फैलाने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान का समाज भी लकवाग्रस्त

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। आर्थिक रूप से तंगहाली से जूझ रहे पड़ोसी देश पाकिस्तान का समाज भी लकवाग्रस्त हो रहा है। भले ही कश्मीर में मानवाधिकारों के हनन का यह मुल्क दुनिया में झूठ फैला रहा हो, लेकिन इसके यहां मानवाधिकारों के हनन की दास्तां बहुत पुरानी है। आतंकवाद और कट्टरपंथ से सुलगता पाकिस्तान अब दरक रहा है। वहां का सामाजिक तानाबाना उधड़ने के कगार पर है।

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दुनिया में आतंक की विषबेल फैलाने वाले इस देश में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की घातक प्रवृत्ति में अब तेजी आयी है। कुछ साल पहले वहां के अल्पसंख्यक मंत्री शहबाज भट्टी की हत्या कर दी गई थी। इस घटना से कुछ दिन पहले पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर को चरमपंथियों ने मौत की नींद सुला दिया। उदारवादी छवि वाले इन नेताओं को विवादित अल्पसंख्यक विरोधी ईशनिंदा कानून के चलते चरमपंथियों का निशाना बनना पड़ा।

एक पहलू यह भी...
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन ऑफ पाकिस्तानी माइनॉरिटीज के अनुसार, वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों की पांच फीसद आबादी कहीं ज्यादा हो सकती है। पांच से छह फीसद केवल ईसाई समुदाय के होने का अनुमान है। पाकिस्तान में जनगणना के दौरान जानबूझकर अल्पसंख्यकों की आबादी को कम दिखाया जाता है, जिससे उनकी बड़ी भागीदारी से रोका जा सके।

अल्पसंख्यकों की विविधता
अफगान: 1979 में अफगानिस्तान पर रूसी हमले के बाद से लाखों की संख्या में अफगान शरणार्थी पाकिस्तान में रह रहे हैं। अफगान शरणार्थियों की संख्या करीब 30-40 लाख है।

अहमदी: 1973 के संविधान के अनुसार, इस संप्रदाय को इस्लाम से बहिष्कृत रखा गया है। 20 जून 2001 को परवेज मुशर्रफ के राष्ट्रपति बनने के बाद अहमदिया पंथ के लोगों को सेना और अन्य सरकारी विभागों में तरक्की देनी शुरू की गई।

ईसाई: सबसे बड़ा धार्मिक अल्पसंख्यक समूह कई संप्रदायों में विभक्त है। पाकिस्तानी समाज में हर स्तर पर मौजूद ईसाई समुदाय सरकार, नौकरशाही और कारोबार में उच्च पदों पर तैनात हैं।

हिंदू और सिख: माना जाता है कि भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय हिंदू और सिखों की पाकिस्तान में आबादी आज की तुलना में 10-15 फीसद अधिक थी। आज इन अल्पसंख्यकों की आबादी घटकर दो फीसद से भी कम हो चुकी है।

कलश: यह हिंदूकुश का जातीय समूह नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस में निवास करता है। कलश भाषा बोलने वाले इस समूह की अपनी एक विशिष्ट संस्कृति है जो अन्य जाति समूहों से एकदम अलग है।

चित्राली: खैबर पख्तूनखवा के उत्तरी हिस्से में स्थित चित्राल में रहने वाले अधिकांश लोग खो जातीय समूह से संबंध रखते हैं, लेकिन यहां दस से ज्यादा जातीय समूह और भी मौजूद हैं।

नाम बड़े, लेकिन दर्शन छोटे
पाकिस्तान के झंडे में मौजूद सफेद रंग अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करता है। देश के संविधान में अल्पसंख्यकों को बराबरी का अधिकार हासिल है। उसमें न कोई बड़ा है न छोटा। दर्जा सबका बराबर है। देश के संविधान में इतने प्रावधानों के बावजूद वहां जितने भी हिंदू, ईसाई, सिख और दूसरे अल्पसंख्यक रहते हैं उनका नाम ही गैर से शुरू किया जाता है।

ईशनिंदा यानी मौत को दावत!
मुस्लिम बहुल देश पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के दमन को एक तरह से तर्कसंगत ठहराने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें इस्लामिक मान्यताओं के खिलाफ आवाज उठाने वाले के लिए सजा का प्रावधान है। यहां की आपराधिक दंड संहिता की धारा 295 में कहा गया है कि यदि कोई इस्लामी मान्यताओं, पैगंबर मुहम्मद या कुरान की निंदा करता है तो उसको जुर्माना से लेकर मृत्युदंड की सजा दी जा सकती है।

आतंक की दास्तां: प्रमुख मामले

शहबाज भट्टी हत्याकांड: दो मार्च 2011 को पाकिस्तानी कैबिनेट में शामिल एकमात्र ईसाई शहबाज भट्टी की गोली मारकर हत्या कर दी गई। 42 साल के भट्टी देश के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री थे।

सलमान तासीर हत्याकांड: चार जनवरी 2011 को पंजाब प्रांत के गवर्नर रहे सलमान तासीर पर उनके ही अंगरक्षक ने गोलियां बरसाकर मौत की नींद सुला दिया।

हिंदुओं पर हमले: मानवाधिकार संगठनों के अनुसार 2009 के बाद अल्पसंख्यक हिंदुओं पर होने वाले हमलों में तेजी आई है। इनके मंदिरों और पुजारियों को निशाना बनाया जा रहा है। बड़ी संख्या में वहां के हिंदू भारत में शरण लेने को बाध्य हैं।

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