शांति वार्ता को तालिबान प्रतिनिधिमंडल दोहा लौटा, बातचीत से तय होगी अफगानिस्तान की भावी तस्वीर
शांति वार्ता अमेरिका और तालिबान के बीच फरवरी में हुए समझौते का दूसरा महत्वपूर्ण चरण है। इसके लिए वाशिंगटन ने अफगानिस्तान में युद्धग्रस्त दोनों पक्षों पर दबाव बना रखा है।
इस्लामाबाद, एपी। अफगानिस्तान सरकार के साथ शांति वार्ता के सिलसिले में तालिबान का उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल कतर लौट आया है। कतर की राजधानी दोहा में ही वार्ता प्रस्तावित है, हालांकि अभी कोई तारीख तय नहीं हुई है। तालिबान के शीर्ष लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर यह जानकारी दी है।
शांति वार्ता अमेरिका और तालिबान के बीच फरवरी में हुए समझौते का दूसरा महत्वपूर्ण चरण है। इसके लिए वाशिंगटन ने अफगानिस्तान में युद्धग्रस्त दोनों पक्षों पर दबाव बना रखा है। दोनों पक्षों को बातचीत से यह तय करना है कि अफगानिस्तान की भावी तस्वीर कैसी होगी। महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा कैसे होगी। हजारों आतंकियों से हथियार कैसे लिए जाएंगे और उन्हें मुख्यधारा में कैसे लाया जाएगा।
इसी संदर्भ में अमेरिका के सुरक्षा सलाहकार राबर्ट ओब्रायन ने पिछले हफ्ते अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी से लंबी बात की थी। अमेरिका ने पाकिस्तान पर भी दबाव बना रखा है कि वह वार्ता शुरू कराने के लिए तालिबान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करे। पाक प्रधानमंत्री इमरान खान भी वार्ता की वकालत करते रहे हैं।
अफगान सरकार ने 200 खूंखार तालिबान लड़ाकों को किया था रिहा
बता दें कि शांति की चाह में अफगानिस्तान सरकार ने हाल ही में 200 खूंखार तालिबान लड़ाकों को जेल से रिहा कर दिया। ये वे तालिबान लड़ाके हैं जो अफगानिस्तान में सनसनीखेज वारदातों को अंजाम देने के लिए जिम्मेदार हैं। ये उन 400 खूंखार तालिबान बंदियों में शामिल थे जिनकी रिहाई की मांग को लेकर तालिबान नेता अफगान सरकार के साथ शांति वार्ता शुरू नहीं कर रहे थे। 200 लड़ाकों की रिहाई के साथ ही सरकार के वार्ताकारों का दल गुरुवार को कतर की राजधानी दोहा जाने को तैयार हो गया है, जहां उसकी तालिबान नेताओं से वार्ता होगी।
गौरतलब है कि इसी साल फरवरी में अमेरिका के साथ हुए समझौते के बाद तालिबान को अफगान सरकार से वार्ता करनी थी। लेकिन इससे पहले ही उसने जेल में बंद अपने लड़ाकों को छोड़े जाने की शर्त रख दी। तमाम लड़ाकों की रिहाई के बाद ये 400 लड़ाके बचे थे जिन पर जघन्य वारदातों के इल्जाम थे। लेकिन देश भर के प्रभावशाली लोगों की सभा में राय बनी कि इन्हें भी रिहा कर शांति की राह पर आगे बढ़ा जाए।