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पूर्व राष्‍ट्रपति मुशर्रफ की गैरहाजिरी में सुनवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ : हाइकोर्ट

परवेज मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह से जुड़े मामले में लाहौर हाई कोर्ट ने कहा है कि आरोपित की अनुपस्थिति में मुकदमे की सुनवाई पूरी करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 03:46 PM (IST)Updated: Tue, 28 Jan 2020 03:57 PM (IST)
पूर्व राष्‍ट्रपति मुशर्रफ की गैरहाजिरी में सुनवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ : हाइकोर्ट
पूर्व राष्‍ट्रपति मुशर्रफ की गैरहाजिरी में सुनवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ : हाइकोर्ट

लाहौर, पीटीआइ। Musharraf conviction Pakistan court says trial in absentia पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह से जुड़े मामले में लाहौर हाई कोर्ट का विस्तृत फैसला सामने आया है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि आरोपित की अनुपस्थिति में मुकदमे की सुनवाई पूरी करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। इस्लामाबाद की विशेष अदालत ने इस मामले की छह साल तक सुनवाई करने के बाद गत 17 दिसंबर को मुशर्रफ को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन लाहौर हाई कोर्ट ने 13 जनवरी को दिए अपने संक्षिप्त फैसले में इस सजा को असंवैधानिक करार दिया था।

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डॉन न्यूज के मुताबिक लाहौर हाई कोर्ट के जज सैय्यद मजार अली अकबर नकवी ने अपने विस्तृत फैसले में कहा, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और पांच हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के परामर्श से स्थापित की गई विशेष अदालत संविधान सम्मत नहीं थी। विशेष अदालत का गठन ना केवल गैरकानूनी और अनुचित था बल्कि वह अधिकार क्षेत्र से भी बाहर था। आरोपित की अनुपस्थिति में मुकदमे की सुनवाई ना केवल पवित्र कुरान और सुन्नत में बताए गए इस्लामी न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है बल्कि यह प्राकृतिक न्याय के सुनहरे सिद्धांतों के भी खिलाफ है।

संवैधानिक बाध्यताओं का नहीं रखा ध्यान

हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने अपने फैसले में कहा, केवल गृह सचिव संघीय सरकार की सिफारिश पर उच्चस्तरीय देशद्रोह के मामलों में शिकायत दर्ज करा सकता है। इस मामले में शिकायत दर्ज कराते समय संवैधानिक बाध्यताओं का ध्यान नहीं रखा गया। विशेष अदालत का गठन असंवैधानिक था। पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करते समय नियमों का पालन नहीं किया गया। बता दें कि पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी पूर्व सेना प्रमुख को संविधान के अनुच्छेद-6 के तहत मौत की सजा सुनाई गई थी।


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