जानिए आखिर PM इमरान खान को पाकिस्तान संसद में विपक्ष क्यों बुलाता है नियाजी?
पाकिस्तान संसद में विपक्ष के सांसद प्रधानमंत्री इमरान खान को नियाजी कहकर बुलाते हैं। दरअसल 1971 की लड़ाई में नियाजियों के समर्पण कर दिया था इस वजह से उनको गद्दार कहा जाता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद बौखलाए पाकिस्तानी पीएम इमरान खान को न अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिल रहा है और न ही घर में उन्हें विपक्ष कोई घास डाल रहा है। यहां तक कि इस मौके को भुनाते हुए पाकिस्तान के विपक्षी नेता फिर गद्दार नियाजी गो बैक के नारे लगा रहे हैं। बता दें कि जब भी विपक्ष को इमरान खान पर हमला करने का मौका मिलता है वह उन्हें उनके नाम से नहीं बल्कि उनको नियाजी के नाम से ही बुलाता है।
इसकी वजह यह है कि पाकिस्तानी नियाजी शब्द से घृणा करते हैं। इसकी वजह यह है कि 1971 की लड़ाई में भारत से बुरी तरह मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान के जनरल नियाजी को भारतीय सेना के समक्ष अपने 90 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण करना पड़ा था। उसके बाद से ही नियाजी शब्द पाकिस्तान की राजनीति में अछूत हो चुका है।
इसी हफ्ते पाकिस्तान की नेशनल असेंबली और सीनेट के संयुक्त अधिवेशन में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ पाकिस्तान के विपक्षी सांसद भारत के खिलाफ जहर उगल रहे थे लेकिन साथ ही साथ अपने प्रधानमंत्री इमरान खान को बेइज्जत करने से भी बाज नहीं आ रहे थे। मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता और पूर्व पीएम नवाज शरीफ के भाई शाहबाज शरीफ ने जब एक बार फिर अपने पीएम को नियाजी उपनाम से संबोधित किया तो जवाब देने खड़े हुए इमरान खान ने उनसे आग्रह किया कि अगर उन्हें पूरा नाम लेना ही है तो इमरान अहमद खान नियाजी बोलें। लेकिन विपक्ष के नेताओं ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और शाहबाज शरीफ के बाद आए वक्ता भी उन्हें नियाजी कहते रहे।
जनरल नियाजी ने सन 1971 में डाले थे हथियार
सन् 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में 'पूर्वी पाकिस्तान' में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण करने वाले पाकिस्तानी लेफ़्टिनेंट जनरल का नाम अमीर अब्दुल्ला ख़ाँ नियाज़ी था। इस आत्मसमर्पण के बाद 'पूर्वी पाकिस्तान' का हिस्सा पाकिस्तान से आज़ाद हो गया था और आज इसे ही बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है। उस समय भारतीय सेना के कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा थे।
जनरल नियाज़ी एक बहादुर फौजी थे लेकिन भारतीय सेना ने उनको हराया। उन्होंने कहा कि वो जनरल नियाज़ी को काफ़ी पहले से जानते थे और शुरू में नियाज़ी ने उनके सामने ही समर्पण किया था लेकिन औपचारिक समर्पण जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने ही होना था। जनरल नियाज़ी ने आत्मसमर्पण के समय जो पिस्तौल ले रखी थी, उसके दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय से चोरी हो जाने की ख़बरों से पिछले साल कुछ विवाद खड़ा हो गया था।
नियाज़ी 1932 में ब्रितानी सेना में बतौर सिपाही भर्ती हुए थे और 1942 में उन्हें सेना में कमीशन अधिकारी बनाया गया था। भारत विभाजन से पहले उन्होंने ब्रितानी सेना के लिए अनेक साहसिक कारनामे अंजाम दिए जिनके लिए उन्हें बहादुरी के कई सम्मान मिले। उन सम्मानों में मिलिटरी क्रॉस भी शामिल है। नियाज़ी ने ब्रितानी सेना में जापान में भी सेवा की और उस दौरान उन्हें टाइगर नियाज़ी का ख़िताब दिया गया।
जनरल नियाज़ी ने भारत के साथ 1965 के युद्ध में भी बहादुरी दिखाई थी लेकिन 1971 के युद्ध में उन्होंने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए थे। नियाज़ी के साथ क़रीब 90 हज़ार पाकिस्तानी सैनिकों ने भी हथियार डाले थे। जानकारों का कहना है कि भारतीय सेना और बंगाली लोगों के हाथों पाकिस्तानी सेना की शिकस्त और जनरल नियाज़ी का हथियार डाल देना पाकिस्तानी इतिहास में एक काला अध्याय है। उसी के बाद से नियाजियों को गद्दार कहा जाने लगा। इमरान खान उसी से ताल्लुक रखते हैं इस वजह से उनको नियाजी कहकर गद्दार के रूप में पुकारा जाता है।
जनरल नियाज़ी आख़िरी समय तक अपनी स्थिति को सही बताते रहे और मौत के सामने हथियार डालने से कुछ ही हफ़्ते पहले उन्होंने एक टेलीविज़न रिपोर्ट में कहा था कि वह फ़ौज की बड़ी व्यवस्था का एक छोटा सा हिस्सा थे इसलिए उन्होंने हथियार डालने की प्रक्रिया पर सिर्फ़ अमल किया था। हालांकि उनका निजी ख़याल ये था कि वह लड़ाई जारी रख सकते थे और भारतीय सेना को एक लंबे समय तक उलझाए रख सकते थे। "असलिययत यही थी कि पाकिस्तानी सेना हार चुकी थी, बाद में कोई कुछ भी कहता रहे."जनरल नागरा ने जनरल नियाज़ी के परिवार के साथ सांत्वना व्यक्त की.
पाकिस्तान में कौन हैं नियाजी?
इमरान ख़ान नियाजी एक पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेवानिवृत्त पाकिस्तानी क्रिकेटर हैं। उन्होंने पाकिस्तानी आम चुनाव, 2018 में बहुमत जीता। वह 2013 से 2018 तक पाकिस्तान की नेशनल असेंबली के सदस्य थे, जो सीट 2013 के आम चुनावों में जीती थीं। इमरान ने बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध के दो दशकों में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेला और 1990 के दशक के मध्य से राजनीतिज्ञ हो गए।
1987 के विश्व कप के अंत में, क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, उन्हें टीम में शामिल करने के लिए 1988 में दुबारा बुलाया गया। 39 वर्ष की आयु में ख़ान ने पाकिस्तान की प्रथम और एकमात्र विश्व कप जीत में अपनी टीम का नेतृत्व किया। उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 3,807 रन और 362 विकेट का रिकॉर्ड बनाया है, जो उन्हें 'आल राउंडर्स ट्रिपल' हासिल करने वाले छह विश्व क्रिकेटरों की श्रेणी में शामिल करता है।
अप्रैल 1996 में ख़ान ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (न्याय के लिए आंदोलन) नाम की एक छोटी और सीमांत राजनैतिक पार्टी की स्थापना की और उसके अध्यक्ष बने और जिसके वे संसद के लिए निर्वाचित केवल एकमात्र सदस्य हैं। उन्होंने नवंबर 2002 से अक्टूबर 2007 तक नेशनल असेंबली के सदस्य के रूप में मियांवाली का प्रतिनिधित्व किया। इमरान ख़ान ने दुनिया भर से चंदा इकट्ठा कर, 1996 में शौकत ख़ानम मेमोरियल कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र और 2008 में मियांवाली नमल कॉलेज की स्थापना में मदद की।
इमरान ख़ान, शौकत ख़ानम और इकरमुल्लाह खान नियाज़ी की संतान हैं, जो लाहौर में एक सिविल इंजीनियर थे। एक मध्यम वर्गीय परिवार में अपनी चार बहनों के साथ पले-बढे, पंजाब में बसे ख़ान के पिता, मियांवाली के पश्तून नियाज़ी शेरमनखेल जनजाति के वंशज थे। उनकी माता के परिवार में जावेद बुर्की और माजिद ख़ान जैसे सफल क्रिकेटर शामिल हैं। ख़ान ने लाहौर में ऐचीसन कॉलेज, कैथेड्रल स्कूल और इंग्लैंड में रॉयल ग्रामर स्कूल वर्सेस्टर में शिक्षा ग्रहण की, जहां क्रिकेट में उनका प्रदर्शन उत्कृष्ट था।
1972 में, उन्होंने केबल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए दाखिला लिया, जहां उन्होंने राजनीति में दूसरी श्रेणी से और अर्थशास्त्र में तीसरी श्रेणी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 16 मई, 1995 को, ख़ान ने अंग्रेज़ उच्च-वर्गीय, रईस जेमिमा गोल्डस्मिथ के साथ विवाह किया, जिसने पेरिस में दो मिनट के इस्लामी समारोह में अपना धर्म परिवर्तन किया। एक महीने बाद, 21 जून को, उन्होंने फिर से इंग्लैंड में रिचमंड रजिस्टर कार्यालय में एक नागरिक समारोह में शादी की, उसके तुरंत बाद गोल्डस्मिथ के सरी में स्थित घर पर स्वागत समारोह का आयोजन किया गया।
क्रिकेट कॅरियर
ख़ान ने लाहौर में सोलह साल की उम्र में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में एक फीके प्रदर्शन के साथ शुरूआत की। 1970 के दशक के आरंभ से ही उन्होंने अपनी घरेलू टीमों, लाहौर A (1969-70), लाहौर B(1969-70), लाहौर ग्रीन्स (1970-71) और अंततः, लाहौर (1970-71) से खेलना शुरू कर दिया। ख़ान 1973-75 सीज़न के दौरान ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ब्लूज़ क्रिकेट टीम का हिस्सा थे। वोर्सेस्टरशायर में, जहां उन्होंने 1971 से 1976 तक काउंटी क्रिकेट खेला, उनको सिर्फ़ एक औसत मध्यम तेज़ गेंदबाज के रूप में माना जाता था।
छवि और आलोचना
ख़ान को अक्सर एक हल्के राजनीतिक और पाकिस्तान में एक बाहरी सेलिब्रिटी के रूप में खारिज किया जाता है, जहां राष्ट्रीय समाचार पत्र भी उन्हें एक "विघ्नकर्ता राजनेता" के रूप में संबोधित करते हैं। MQM राजनैतिक पार्टी ने कहा है कि ख़ान "एक बीमार व्यक्ति हैं, जो राजनीति में पूरी तरह विफल रहे हैं और सिर्फ़ मीडिया कवरेज के कारण ज़िंदा हैं"। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि जो भीड़ वे बटोरते हैं वह उनके क्रिकेट सेलिब्रिटी होने के कारण आकर्षित होती है और ख़बरों के अनुसार लोग उन्हें एक गंभीर राजनीतिक प्राधिकारी के बजाय एक मनोरंजक व्यक्ति के रूप में देखते हैं।
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