Locust Attack in India: जानिए भारत में टिड्डियों के हमले के पीछे कौन-कौन सी चीजें हैं जिम्मेदार, अभी और होंगे हमले
Locust Attack in India कोरोना की वजह से मार्च माह में पाकिस्तान टिड्डियों को मारने के लिए दवा नहीं मंगा पाया जिसके कारण इस बार ये इतनी बड़ी संख्या में नुकसान पहुंचा रही हैं।
नई दिल्ली। पाकिस्तान से निकला टिड्डियों का दल भारत के तमाम राज्यों में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है। राजस्थान, यूपी और मध्य प्रदेश के साथ हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों में इन टिड्डियों के किए गए नुकसान को देखा जा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से इन टिड्डियों ने हमला किया है उससे देश में लगभग 8000 करोड़ रूपये के कीमत की मूंग दाल और अन्य फसलों के नुकसान होने का खतरा मंडरा रहा है। टिड्डियों के झुंड अभी राजस्थान, यूपी और मध्यप्रदेश के साथ हरियाणा और पंजाब के कुछ हिस्सों में दिख रहे हैं। इन राज्य सरकारों ने अलर्ट घोषित किया हुआ है और परेशान किसान थाली बजाकर और शोर मचाकर टिड्डियों को भगाने की असफल कोशिश कर रहे हैं। ये़ टिड्डी दल जिस इलाके से गुजर जा रहे हैं वहां के खेतों में फसलें गायब हो जाती हैं।
डीडब्ल्यूए वेबसाइट ने इस बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट कैरी की है। रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्र खाद्य संगठन के अधिकारियों ने बताया है कि मॉनसून के बाद भारत को टिड्डियों के दूसरे बड़े हमले के लिये तैयार रहना चाहिए। इस हमले से खरीफ की फसल को क्षति हुई तो खाद्य सुरक्षा का संकट भी हो सकता है।
टिड्डियों के पीछे कोरोना वायरस का हाथ
बताया गया है कि असल में डेजर्ट लोकस्ट के नाम से पहचानी जाने वाली टिड्डियों की प्रजाति हर साल ईरान और पाकिस्तान से भारत पहुंचती है। जहां भारत में ये टिड्डियां एक बार मॉनसून के वक्त ब्रीडिंग करती हैं वहीं ईरान और पाकिस्तान में ये दो बार अक्टूबर और मार्च के महीनों में ब्रीडिंग होती है।
मार्च में किया जाता है छि़ड़काव, कोरोना की वजह से नहीं मंगा पाए दवा
मार्च में इन दोनों ही देशों में प्रजनन रोकने के लिए दवा का छिड़काव किया जाता है लेकिन इस बार कोरोना संकट से घिरे ईरान और पाकिस्तान में यह छिड़काव नहीं हुआ और भारत में दिख रहे टिड्डियों के हमले के पीछे यह एक बड़ा कारण बताया जा रहा है।
दरअसल अप्रैल के मध्य में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रीजनल बैठक में टिड्डियों के खतरे को लेकर चर्चा भी हुई। स्काइप द्वारा हुई इस मीटिंग में मौजूद सूत्रों ने बताया कि भारत और पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया के कई देशों के प्रतिनिधि इसमें थे।
ब्रीडिंग रोकने के लिए नहीं किया जा सका दवा का छिड़काव
एक पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने मीटिंग में माना कि कोरोना की वजह से इस बार टिड्डियों की ब्रीडिंग रोकने के लिए दवा का छिड़काव नहीं किया जा सका और पाकिस्तान में टिड्डियों का प्रकोप काफी बढ़ गया है। इस अधिकारी ने मीटिंग में कहा कि पाकिस्तान के सामान्य लोग चूंकि अपने घरों के भीतर हैं तो उन्हें इसका अधिक पता नहीं चल रहा लेकिन इन इलाकों में किसान परेशान हैं।
कोविड महामारी के कारण ईरान और पाकिस्तान इस बार टिड्डियों के प्रजनन को रोकने में इस्तेमाल होने वाली दवा नहीं मंगा पाए। एफएओ ने चेतावनी दी है कि इस हमले के बाद जून में बरसात के साथ भारत को टिड्डियों के नए हमले का सामना करना पड़ेगा क्योंकि उस वक्त भारत-पाकिस्तान सीमा पर प्रजनन तेज हो जाएगा।
इस साल बढ़ गया है टिड्डियों का हमला
अमूमन मॉनसून के वक्त भारत में ब्रीडिंग के बाद टिड्डियां अक्टूबर तक गायब हो जाती हैं लेकिन 2019 में देर तक चले मॉनसून के कारण टिड्डियों का आतंक राजस्थान, गुजरात और पंजाब के इलाकों में इस साल जनवरी तक देखा गया। अब फिर टिड्डियों का लौट आना देश की खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिये बड़ा झटका है।
यूपी और मध्य प्रदेश में तो 27 साल बाद दिख रहा टिड्डियों का प्रकोप
यूपी और मध्यप्रदेश में तो टिड्डियों का यह प्रकोप 27 साल बाद दिख रहा है। इस साल फरवरी मार्च में लगातार हुई बारिश ने टिड्डियों के पनपने के लिये माहौल बनाये रखा। एफएओ ने पिछले हफ्ते कहा कि ईरान और पाकिस्तान में अनुकूल नमी वाले मौसम में टिड्डियों की ब्रीडिंग जारी है और जुलाई तक यह झुंड पाकिस्तान सीमा से भारत में आते रहेंगे।
टिड्डियां इंसानों और जानवरों पर हमला नहीं करतीं लेकिन यह फसल की जानी दुश्मन हैं। इन्हें कोमल पत्तियां बेहद पसंद होती हैं। एक वर्ग किलोमीटर में 4 से 8 करोड़ तक वयस्क टिड्डियां हो सकती हैं जो एक दिन में इतनी भोजन चट कर सकती हैं जितना 35,000 लोग खाते हैं।
दुनिया के 60 देशों में फैली समस्या
टिड्डियों का संकट केवल भारत या दक्षिण एशिया का नहीं है बल्कि यह दुनिया के 60 देशों में फैली समस्या है जो मूल रूप से अफ्रीका और एशिया महाद्वीप में हैं। अपने हमले के चरम पर हों तो यह 60 देशों में बिखरे दुनिया के 20% हिस्से पर कब्जा कर लेती हैं। इनसे दुनिया की 10% आबादी की रोजी रोटी बर्बाद हो सकती है।
जलवायु परिवर्तन टिड्डियों के लिये अनुकूल
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन की एक रिपोर्ट बताती है कि अनुकूल जलवायु का फायदा उठाकर टिड्डियां अब अपनी सामान्य क्षमता से 400 गुना तक प्रजनन करने लगी हैं। यह बेहद चिंताजनक है क्योंकि भारत उन देशों में है जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक दिख रहा है। टिड्डियों का भारत में प्रवेश हवा के रुख पर भी निर्भर करता है।
कहा जा रहा है कि पूर्वी तट पर आये विनाशकारी चक्रवाती तूफान अम्फान के कारण भी टिड्डियों के भारत में प्रवेश के लिये स्थितियां बनीं। अब इस साल जून में बरसात के साथ भारत-पाकिस्तान सीमा पर टिड्डियों के प्रजनन का नया दौर शुरू होगा।
उसके बाद के महीनों में होने वाला टिड्डियों का हमला खरीफ की फसल बर्बाद कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो पहले ही कोरोना संकट झेल रहे भारत के लिये यह दोहरी मार होगी क्योंकि इसका असर देश की खाद्य सुरक्षा पर पड़ना तय है।