इमरान सरकार के दो वर्षों की उपलब्धि में शामिल है कर्ज में गले तक डूबा पाकिस्तान, जानें एक्सपर्ट व्यू
इमरान खान की सरकार ने पाकिस्तान में दो साल पूरे कर लिए हैं। इस दौरान देश पर कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ता ही चला गया है।
नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। पाकिस्तान की इमरान सरकार ने आज दो वर्ष पूरे कर लिए हैं। नया पाकिस्तान का नारा देकर सत्ता की गद्दी पाने वाले इमरान खान इन दो वर्षों में जो कर सके हैं वो वहां के सरकारी आंकड़ों में दर्ज हो चुका है। इन दो वर्षों वहां की आवाम ने कर्ज के बोझ तले झुका एक नया पाकिस्तान हासिल किया है। पाकिस्तान के वित्त मंत्रालय के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2018 के अंत तक देश के ऊपर कुल कर्ज और देनदारी करीब 30 खरब रुपये की थी जो सितंबर 2019 में बढ़कर करीब 42 खरब हो गई थी। इसके मुताबिक 15 माह के दौरान हीदेश पर कर्ज का भार करीब 39 फीसद तक बढ़ गया है।
इमरान सरकार के दावे और वादों की ही यदि बात करें तो वहां की स्थानीय मीडिया और प्रतिष्ठित अखबार द डॉन के मुताबिक इन दो वर्षों में इमरान खान ने अपने केवल एक वादे को पूरा किया है। जबकि पांच कमोबेश पूरा होने की कगार पर हैं और 37 चल रहे हैं। आठ ऐसे हैं जिनपर अब तक काम भी शुरू नहीं हुआ है। आपको बता दें कि जिस एक वादे को इमरान खान ने इन दो वर्षों में पूरा किया है वो है भ्रष्टाचार को रोकने के लिए बनाई स्पेशल टास्क फोर्स का।
इसके अलावा लोगों को सस्ते घर देने का वादा, विदेशों में बसे पाकिस्तानियों को वोट डालने के अधिकार और सेवा उपलब्ध करवाने का वादा, अल्पसंख्यकों के अधिकारों का वादा, पुलिस सुधार का वादा और अपराध को कम करने का वादा सरकार के मुताबिक काफी हद तक पूरा किया जा चुका है। इसके अलावा मदरसा स्कीम को लागू करने का वादा, शरीरिक रूप से विकलांग लोगों के लिए घर देने का वादा, स्थानीय सरकारों में और पब्लिक बॉडीज में महिलाओं की सहभागिता का वादा, कराची में पानी माफिया को खत्म करने का वादा, महिलाओं के लिए जेल, जुवेनाइल डिटेंशन सेंटर के गठन के वादे की अभी शुरुआत भी नहीं हुई है।
पाकिस्तान की सरकार इमरान खान के इस रिपोर्ट कार्ड पर अपनी पीठ थपथपा रही है। रॉयटर्स की खबर के मुताबिक पाकिस्तान के वित्त मंत्री हाफिज शेख का कहना है कि दुनिया के तटस्थ देश और ऑब्जरवर इस बात को मानते हैं कि वैश्विक कोविड-19 महामारी के बाद भी पाकिस्तान अर्थव्यस्था ने इन दो वर्षों के दौरान तरक्की की है। सरकार के अपने आंकड़े बता रहे हैं कि उसका विदेशी मुद्रा भंडार 12 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। हालांकि ये अलग बात है कि इसका ज्यादा हिस्सा कर्ज का ही है। पिछले माह पाकिस्तान के एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने अपनी खबर में कहा था कि पाकिस्तान एक बार फिर से 1.1 लाख करोड़ (15 अरब डॉलर) का कर्ज लेने पर विचार कर रहा है। इससे 10 अरब डॉलर का इस्तेमाल पुराने परिपक्व हो रहे कर्ज के भुगतान में किया जायेगा। शेष राशि देश के बाहरी सार्वजनिक कर्ज का हिस्सा बन जाएगी, जो कि इस साल मार्च अंत तक बढ़कर 6.5 लाख करोड़ (86.4 अरब डॉलर) तक पहुंच चुकी है।
पाकिस्तान की आर्थिक तरक्की का दावा कितना सही है इस बात का खुलासा इससे भी हो जाता है कि उसने सऊदी अरब से लिए 3 बिलियन डॉलर कर्ज के बदले दिए गए 1 बिलियन डॉलर की राशि भी चीन से कर्ज के रूप में ली है। इसका अर्थ ये भी है कि पाकिस्तान कर्ज चुकाने के लिए कर्ज लेने को ही जरिया बना रहा है। वहीं अब जबकि सुदी अरब उससे खफा है तो ऐसे में उसके सामने भविष्य को लेकर चुनौतियां बढ़ने की आशंका है। विदेश मामलों के जानकार कमर आगा मानते हैं कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सऊदी अरब एक बड़ी भूमिका अदा करता है। ऐसे में उसकी नाराजगी का असर पाकिस्तान पर व्यापक तौर पर दिखाई देगा।
उनका ये भी मानना है कि ये असर न केवल पाकिस्तान की वित्तीय हालत पर बल्कि वहां की राजनीति और खुद इमरान खान पर भी पड़ेगा। आपको बता दें कि अक्टूबर 2018 में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 3 साल के लिए 6.2 बिलियन डॉलर का वित्तीय पैकेज देने का एलान किया था। इसमें 3 बिलियन डॉलर की नकद सहायता शामिल थी, जबकि बाकी के पैसों के एवज में पाकिस्तान को तेल और गैस की सप्लाई की जानी थी। लेकिन हालिया घटनाक्रम से नाराज होने के बाद सऊदी ने पाकिस्तान से अपने वित्तीय समर्थन को वापस भी ले लिया है।
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