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Ayodhya Case Verdict 2019: अयोध्या फैसले पर पाकिस्तान की भी लगी थीं निगाहें

Ayodhya verdict अयोध्या मामले पर देश ही नहीं विदेशी मीडिया की भी निगाहें लगी रही। पाकिस्तान में इस मामले पर पल-पल की खबर अपडेट की जाती रही।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 11:02 AM (IST)Updated: Sat, 09 Nov 2019 02:12 PM (IST)
Ayodhya Case Verdict 2019: अयोध्या फैसले पर पाकिस्तान की भी लगी थीं निगाहें
Ayodhya Case Verdict 2019: अयोध्या फैसले पर पाकिस्तान की भी लगी थीं निगाहें

नई दिल्ली, स्पेशल डेस्क। अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट पर देश ही विदेशी मीडिया की भी निगाहें लगी रही। पाकिस्तान में भी इस केस के बारे में सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला सुनाने वाला है इसको लेकर पल-पल की खबरें अपडेट की जाती रही। जैसे-जैसे सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपना फैसला सुनाने की तरफ बढ़ता रहा पाकिस्तानी मीडिया में भी इसको लेकर तमाम तरह की खबरें चलाई जाती रही। 

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इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सुनाया था फैसला 

राम जन्‍मभूमि के मालिकाना हक के मामले में 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो फैसला सुनाया था उस पर मामले से जुड़े कुछ पक्षों ने नाराजगी जाहिर की थी। इसी नाराजगी के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने 9 मई 2011 को दिए एक आदेश में पुरानी स्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया था। अपने फैसले को सुनाने में हाईकोर्ट को करीब 40 मिनट लगे थे। कोर्टरूम लोगों की भीड़ से भरा हुआ था। सभी की नजरें हाईकोर्ट के कमरा नंबर 21 पर टिकी थीं। 

तीन में जमीन बांटने का दिया आदेश 

दोपहर 3:40 बजे फैसले के मूल आदेश को पढ़ना शुरू किया गया। दोपहर 4:20 मिनट पर सभी जज फैसला सुनाकर कोर्ट रूम से बाहर निकलकर अपने चैंबर की तरफ चले गए थे। अपने आदेश में हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच एक समान तीन भांगों में बांटने का आदेश दिया था। इस फैसले को देने वालों में जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस एसयू खान और जस्टिस डीवी शर्मा शामिल थे।

एएसआइ के सर्वेक्षण पर आधारित था फैसला

हाईकोर्ट ने 2010 में जो फैसला सुनाया था वह दरअसल, भारतीय पुरातत्‍व सर्वेक्षण विभाग पर आधारित था। इसका जिक्र अदालत ने भी अपने फैसले में किया था। इससे पहले हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वर्ष 2003 में विवादित ढांचे वाली जगह का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इस सर्वेक्षण के दौरान विवादित स्‍थल के नीचे कई खम्‍भे, चबूतरे और अन्‍य सामान मिला था। वर्ष 2003 से पहले 1975 में भी एक बार इस विवादित स्‍थल का सर्वे किया गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में यहां तक कहा था कि 450 वर्षों से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती है।

इसलिए खारिज हुआ सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा

सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड यह साबित नहीं कर सका कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने बनवाई थी या मीर बाकी ने, जो उसका सेनापति था। कोर्ट ने माना कि मस्जिद का निर्माण मंदिर के अवशेषों पर हुआ था, इसमें इनका इस्‍तेमाल भी किया गया था। कोर्ट ने यह भी माना कि दोनों ही समुदाय के लोग इसका इस्‍तेमाल करते थे। लिहाजा इस जमीन पर अकेले सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा सही नहीं है। कोर्ट ने वक्‍फ बोर्ड के उस दावे को भी खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि विवादित भूमि पर 1949 तक उनका कब्‍जा था और 1949 में जबरन उन्‍हें यहां से हटा दिया गया। कोर्ट ने सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा समय बाधित यानि देरी से दाखिल मानते हुए भी खारिज किया था।

ये था आदेश

अपने इस फैसले में हाईकोर्ट ने जहां रामलला विराजमान हैं, वहीं रहने का आदेश दिया था। इसके अलावा य ये भी कहा गया कि जहां रामलला की पूजा होती है वही राम जन्‍म भूमि भी है। इस जमीन का एक तिहाई हिस्‍सा रामलला को दिया गया था। राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़े को सौंपी गई थी। पूरी जमीन का एक तिहाई भूभाग उन्‍हें सौंपने का आदेश दिया गया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में उन दलीलों को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि जब 1949 में वहां पर मूर्तियां रखी गई तब उन्‍होंने मामला दायर नहीं किया था। लिहाजा कोर्ट ने जमीन के एक तिहाई हिस्‍से पर सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का अधिकार दिया गया था। 

पाकिस्तानी मीडिया 

पाकिस्तान के जियो चैनल पर सुबह से लेकर दोपहर तक इसी मुद्दे पर चर्चा होती रही। बाबरी मस्जिद के लिए अलग जमीन दिए जाने पर भी चर्चा होती रही। कहा गया कि शिया वक्फ बोर्ड को अलग जमीन देकर उन्हें संतुष्ट करने की कोशिश की गई है। 

सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन दिए जाने पर संतुष्टि जताई। ये भी कहा कि कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए एएसआइ की रिपोर्ट को खास तवज्जो दी, उस रिपोर्ट में कहा गया था कि वहां पर पहले मस्जिद नहीं थी बल्कि मंदिर के ही खंभों को तोड़कर उसे ये रूप दिया गया था। 

पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता आसिफ गफूर ने ट्वीट कर कहा कि दुनिया ने एक बार फिर से भारत का चेहरा देख लिया है। वहां से लगातार ऐसी चीजें की जा रही है जो इतिहास में दर्ज हो रही हैं। 5 अगस्त को कश्मीर का भारत ने संवैधानिक दर्जा खत्म किया और आज बाबरी मस्जिद पर फैसला आया।

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि इस फैसले में भेदभाव किया गया है। उन्होंने आज के दिन दिए गए फैसले पर हैरानी जताई, कहा कि आज करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया जा रहा था और अयोध्या विवाद पर ऐसा फैसला सुनाया गया।

भारत के खिलाफ अक्सर विवादित बयान देने वाले पाकिस्तान के विज्ञान और तकनीक मंत्री चौधरी फवाद हुसैन कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट नहीं है उनका कहना है कि ये फैसला एकतरफा है और ठीक नहीं है।

पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हामिद मीर ने भी ट्वीट कर कहा कि कोर्ट ने जिस समय इस विवाद का फैसला सुनाया है उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं। उधर पाकिस्तान करतारपुर कारिडोर खोल रहा है उधर भारत में इस तरह के मुकदमों पर फैसले सुनाए जा रहे हैं। ये उचित नहीं है।

रेलवे मंत्री शेख रशीद ने कहा कि कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को उस जमीन से एकदम बेदखल कर दिया और दूसरी जगह देने का निर्देश दिया है। अब देखना ये होगा कि वो जमीन अयोध्या में मिलती है या किसी दूसरी जगह। जहां के लिए वो लड़ाई लड़ रहे थे वहां पर उनको कुछ भी नहीं दिया गया।  


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