ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक प्रभाव के नजदीक दुनिया, 'मनुष्य' दोषी, पढ़ें- जलवायु परिवर्तन पर UN की नई रिपोर्ट में ये 5 बड़ी बातें
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान की एक रिपोर्ट में सोमवार को कहा गया है कि अत्यधिक हीट वेव जो पहले हर 50 साल में केवल एक बार आती थीं अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर दशक में एक बार आने लगी है
जिनेवा, एपी/रायटर। जलवायु परिवर्तन के विज्ञान पर सोमवार को जारी संयुक्त राष्ट्र जलवायु पैनल की रिपोर्ट में भविष्य के लिए पांच संभावित परिदृश्यों का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट गंभीर समस्या के खड़े होने के दावे कर रही है और कहा गया कि यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि मनुष्य कितनी जल्दी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकता है। बताया गया कि समस्या से निपटने के लिए जनसंख्या, शहरी घनत्व, शिक्षा, भूमि उपयोग और धन जैसे क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों को भी काबू करना है।
उदाहरण के तौर पर जनसंख्या में वृद्धि यानी जीवाश्म ईंधन और पानी की मांग बढ़ जाना। शिक्षा प्रौद्योगिकी विकास की दर को प्रभावित कर सकती है। जब भूमि को वन से कृषि भूमि में परिवर्तित किया जाता है तो उत्सर्जन में वृद्धि होती है। कहा गया कि प्रत्येक परिदृश्य को संबंधित गणित में उपयोग किए जाने वाले उत्सर्जन स्तर और साझा सामाजिक आर्थिक मार्ग या एसएसपी दोनों की पहचान करने के लिए जोड़ा गया है।
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान की एक रिपोर्ट में सोमवार को कहा गया है कि अत्यधिक हीट वेव जो पहले हर 50 साल में केवल एक बार आती थीं, अब ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर दशक में एक बार आने लगी है, जबकि बारिश ज्यादा होने लगी है और सूखा भी अधिक पड़ने लगा है।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त अंतर सरकारी पैनल द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में पांच महत्वपूर्ण पाइंट है, जो आपको पढ़ने चाहिए...
इंसानों को दोष
रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व-औद्योगिक काल से होने वाली लगभग सभी वार्मिंग कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी हीट-ट्रैपिंग वाली गैसों के निकलने के कारण हुई थी। इसमें से अधिकांश मानव द्वारा जीवाश्म ईंधन - कोयला, तेल, लकड़ी और प्राकृतिक गैस जलाने का परिणाम है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 19वीं शताब्दी के बाद से दर्ज तापमान वृद्धि का केवल एक पार्ट ही प्राकृतिक दवाब से आया हो सकता है।
पेरिस गोल्स
लगभग सभी देशों ने 2015 के पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से नीचे रखना है।...और पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक आदर्श रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 एफ) से अधिक न हो इसपर जोर दिया गया है। (वर्ष 2100 तक, 19वीं सदी की तुलना में)
रिपोर्ट के 200 से अधिक लेखकों ने पांच परिदृश्यों को देखा और निष्कर्ष निकाला कि सभी 2030 के दशक तक दुनिया को 1.5-डिग्री की सीमा को पार करते हुए देखा जा सकता है।(पिछली भविष्यवाणियों की तुलना में जल्दी) इनमें से तीन परिदृश्यों में तापमान पूर्व-औद्योगिक औसत से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ जाएगा।
गंभीर परिणाम
3,000 से अधिक पृष्ठ की रिपोर्ट का निष्कर्ष निकला है बर्फ पिघल रही है और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। मौसम की गंभीर होती घटनाएं- तूफान से लेकर हीट वेव तक - सब बढ़ रहे हैं और अधिक खतरनाक हो रहे हैं। वैज्ञानिक साफ तौर पर बार-बार कह रहे हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य शायद अब पहुंच से बाहर है क्योंकि 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक की गर्मी पहले ही पड़ चुकी है और तापमान में और वृद्धि वातावरण में पहले से ही उत्सर्जन के कारण 'लॉक' हो जाती है।
कुछ आशा
जबकि रिपोर्ट की कई भविष्यवाणियां ग्रह पर मनुष्यों के प्रभाव और आगे आने वाले परिणामों की एक गंभीर तस्वीर पेश करती हैं, वहीं, आईपीसीसी ने यह भी पाया कि टिपिंग पॉइंट, जैसे कि विनाशकारी बर्फ की चादर ढह जाती है और समुद्र की धाराओं का अचानक धीमा हो जाना, 'कम संभावना' हैं, हालांकि उनपर काम करते हए आशा जगाई जा सकती है।
IPCC
बता दें कि पैनल जलवायु परिवर्तन पर उच्च संभावित वैज्ञानिक सहमति प्रदान करने के लिए सरकारों और संगठनों द्वारा सामने रखे गए स्वतंत्र विशेषज्ञों से बना है। करोड़ों वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग के कई पहलुओं पर नियमित रिपोर्ट प्रदान करते हैं, जो सरकारें इस बात पर चर्चा करती हैं कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूल होने के लिए कौन से देश योगदान कर सकते हैं।