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पाक की नापाक हरकत, आखिर अफगान क्‍यों गए ISI प्रमुख, भारत के लिए खतरे की घंटी

अफगानिस्‍तान में सरकार के गठन को लेकर तालिबान और अन्‍य गुठों में जबरदस्त मतभेद उभर कर सामने आए हैं। ऐसे में आइएसआइ प्रमुख के तालिबान दौरे के क्‍या निहितार्थ हैं ? पाकिस्‍तान का तालिबान मोह के पीछे की सच्‍चाई क्‍या है। इस दौरे से भारत पर क्‍या असर होगा ?

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 05 Sep 2021 11:29 AM (IST)Updated: Sun, 05 Sep 2021 03:33 PM (IST)
पाक की नापाक हरकत, आखिर अफगान क्‍यों गए ISI प्रमुख, भारत के लिए खतरे की घंटी
पाक की ना-पाक हरकत, आखिर अफगान क्‍यों गए ISI प्रमुख, क्‍या यह भारत के लिए खतरे की घंटी।

नई दिल्‍ली, ऑनलाइन डेस्‍क। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी (आइएसआइ) के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद काबुल में हैं। उनके नेतृत्व में एक पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल भी अफगानिस्‍तान में है। खास बात यह है कि आइएसआइ प्रमुख का यह काबुल दौरा ऐसे समय हो रहा है, जब पंजशीर घाटी में प्रभुत्‍व के लिए तालिबान और पंजशीर लड़कों के बीच जंग चल रही है। दूसरे, अफगानिस्‍तान में सरकार के गठन को लेकर तालिबान और अन्‍य गुठों में जबरदस्त मतभेद उभर कर सामने आए हैं। ऐसे में पाक आइएसआइ प्रमुख के तालिबान दौरे के क्‍या निहितार्थ हैं ? पाकिस्‍तान का तालिबान मोह के पीछे की सच्‍चाई क्‍या है। इस दौरे से भारत पर क्‍या असर होगा ? 

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आइएसआइ प्रमुख के तालिबान दौरे के निह‍ितार्थ

  • प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि पाकिस्‍तान तालिबान सरकार के गठन में अपनी अहम भूमिका चाहता है। पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान में एक ऐसी सरकार के गठन का इच्‍छुक है, जो उसके इशारे पर काम करे। उन्‍होंने कहा कि हालांकि, पाकिस्‍तान सरकार अंतरराष्‍ट्रीय बिरादरी को यह दिखाना चाहती है कि आइएसआइ प्रमुख की यह यात्रा तालिबान के निमंत्रण पर है। पाकिस्‍तान कहता है कि तालिबान के कब्‍जे के बाद उसके देश में अफगान शरणार्थियों का संकट खड़ा हुआ है। अफगान शरणार्थियों की आड़ में वह अपने हितों को साधने में जुटा है।
  • उन्‍होंने कहा कि पाकिस्‍तान तालिबान पर पूरा नियंत्रण चाहता है। पाकिस्‍तान इसके जरिए दुनिया को यह दिखाना चाहता है कि वह तालिबान से जो चाहे वह करवा सकता है। ऐसा करके वह अन्‍य मुल्‍कों को भी एक संदेश देना चाहता है कि अफगानिस्‍तान में तालिबान से संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्‍तान की अग्रणी भूमिका होगी। यानी कोई देश पाकिस्‍तान के जरिए ही तालिबान से रिश्‍ते कायम कर सकते हैं। 
  • अफगानिस्‍तान में अपनी पंसद की सरकार बनवाने के पीछे उसका एक और मकसद भी है। इसके जरिए वह पाकिस्‍तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन तहरीक ए तालिबान पर भी काबू पाना चाहता है। उसका मकसद है कि वह तालिबान के उस समूह को बढ़ावा दे जो उसके हितों के अनुरूप हैं। वह तालिबान की नई हुकूमत से तहरीक ए तालिबान पर नियंत्रण की गारंटी जरूर चाहेगा।
  • पंजशीर घाटी में तालिबान को सैन्‍य समर्थन देकर भी वह दिखाना चाहता है कि पूरी दुनिया में वह अकेला मुल्‍क है जो उसके हर फैसले के पीछे खड़ा है। ऐसा करके वह तालिबान का और खास बनना चाहता है। उन्‍होंने कहा ऐसी खबरे आ रही हैं कि पंजशीर घाटी में पाकिस्‍तान के सेना के जवान भी तालिबान का साथ दे रहे हैं। इस जंग में कुछ पाक सेना के जवान मारे गए हैं।
  • उन्‍होंन कहा कि पाकिस्‍तान तालिबान के जरिए न केवल चीन और रूस के और निकट जाना चाहता है, बल्कि वह भविष्‍य में अमेरिका पर भी दबाव बनाने की भूमिका चाहता है। वह यह संदेश देना चाहता है कि तालिबान से कुछ करवाने के लिए पाकिस्‍तान को अग्रणी भूमिका में रखना होगा।

भारत विरोधी है अफगानिस्‍तान में पाकिस्‍तान की सक्रियता

प्रो. पंत ने कहा कि अगर अफगानिस्‍तान में पाकिस्‍तान के पसंद वाली तालीबानी सरकार आती है तो इसका भारत पर सीधा और बड़ा असर होगा। खासकर कश्‍मीर घाटी में सक्रिय आतंकवाद को लेकर। पाकिस्‍तान तालिबान पर कश्‍मीर में चरमपंथियों की सक्रियता को लेकर जबरदस्‍त दबाव बना सकता है। उन्‍होंने कहा कि इससे शांत कश्‍मीर घाटी में चरमपंथ सक्रिय हो सकता है। उन्‍होंने कहा कि तालिबान-1 में पाकिस्‍तान इस योजना में सफल रहा है, अब वह तालिबान-2 से भी यही उम्‍मीद करता है। हालांकि, तालिबान-2 यह कह चुका है कि वह किसी अन्‍य देश के आंतरिक मामलों में हस्‍तक्षेप नहीं करेगा। वह पूर्व में यह भी कह चुका है कि अनुच्‍छेद 370 भारत का आंतरिक मामला है, लेकिन पाकिस्‍तान अब इस फ‍िराक में है कि तालिबान अपनी रणनीति में बदलाव करे।

तालिबान के समर्थन की बात कबूल चुका पाकिस्तान

पाकिस्तान भी कई मौकों पर तालिबान के समर्थन की बात कबूल चुका है। पाकिस्‍तान के गृह मंत्री शेख राशिद ने हाल ही में खुद इस बात को स्वीकार किया था कि उनका देश लंबे समय से तालिबान का संरक्षक रहा है। उन्‍होंने कहा था कि हमने तालिबान को आश्रय देकर उसे मजबूत करने का काम किया है। इसका परिणाम आज दिख रहा है कि 20 साल बाद यह समूह एक बार फिर अफगानिस्तान पर शासन करेगा। इसके पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी कह चुके हैं कि इस्लामाबाद अफगानिस्तान को समर्थन देने के लिए रचनात्मक भूमिका निभाता रहेगा। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री इमरान खान भी दबे-छिपे शब्दों में अफगानिस्तान से अमेरिका के जाने और तालिबान राज आने पर खुशी जता चुके हैं।


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