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'बैड तालिबान और गुड तालिबान' के बीच में भारत, रूस-चीन-पाकिस्‍तान की काट के लिए आखिर क्‍या होगी भारत की नीति

अफगानिस्‍तान में तालिबान सरकार को लेकर रूस चीन और पाकिस्‍तान ने अपनी नीति साफ कर दी है। आखिर तालिबान शासन को लेकर रूस चीन और पाकिस्‍तान का क्‍या स्‍टैंड है तालिबान के समक्ष क्‍या नई चुनौती है। अफगानिस्‍तान पर नई नीति को लेकर आखिर भारत क्‍यों मौन है।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 20 Aug 2021 12:04 PM (IST)Updated: Fri, 20 Aug 2021 12:07 PM (IST)
'बैड तालिबान और गुड तालिबान' के बीच में भारत, रूस-चीन-पाकिस्‍तान की काट के लिए आखिर क्‍या होगी भारत की नीति
रूस-चीन-पाकिस्‍तान की काट के लिए आखिर क्‍या होगी भारत की नीति। फाइल फोटो।

नई दिल्‍ली, ऑनलाइन डेस्‍क। अफगानिस्‍तान में तालिबान सरकार को लेकर रूस, चीन और पाकिस्‍तान ने अपनी नीति साफ कर दी है। तीनों देशों ने प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से तालिबान शासन को जायज ठहराया है। हालांकि, भारत अभी तक इस पूरे मामले में मौन है। अफगानिस्‍तान मामले में भारत बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है। भारत, अफगानिस्‍तान में नई स्थिति का गइराई से व‍िश्‍लेषण कर रहा है। भारत यह जानता है कि तालिबान के समक्ष भी अभी कई तरह की चुनौतियां हैं। तालिबान को अफगानिस्‍तान के अंदर ही कई तरह की बाधाओं को पार करना होगा। आखिर तालिबान शासन को लेकर रूस, चीन और पाकिस्‍तान का क्‍या स्‍टैंड है, तालिबान के समक्ष क्‍या नई चुनौती है। अफगानिस्‍तान पर नई नीति को लेकर आखिर भारत क्‍यों मौन है।

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भारत की दोहरी चुनौती

प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि अफगानिस्‍तान में भारत एक तरह से दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है। भारत को एक तरफ जहां जम्‍मू-कश्‍मीर में फ‍िर से आतंकवाद पनपने का भय है, वहीं दूसरी और तालिबान के मसले पर चीन और पाकिस्‍तान की ओर से उसे एक नई तरह की कूटनीतिक चुनौतियां भी मिल रही है। अब इस धड़े में रूस भी शामिल हो गया है। इस तरह यह चुनौतियां दो मोर्चे पर है। खासकर यह चुनौती तब और भी बड़ी हो जाती है, जब भारत ने अफगानिस्‍तान में विकास योजनाओं पर लंबा निवेश किया है। ऐसे में भारत अफगानिस्‍तान की समस्‍या से पूरी तरह मुंह भी नहीं मोड़ सकता है।

चीन, रूस और पाकिस्‍तान का स्‍टैंड का क्‍या है जवाब

  • उधर, 2001 में तालिबान को खदड़ने वाला अमेरिका खुद अफगानिस्‍तान से खिसक चुका है। चीन, रूस और पाकिस्‍तान समेत कई देश तालिबान को नई अफगान सरकार मानने को तैयार बैठे हैं। ऐसे हालात में भारत ने अब तक तालिबानी निजाम को लेकर कुछ नहीं कहा है। सरकार ने न काबुल में तालिबान के विरोध में कोई बयान दिया और न ही ऐसी कोई बात कही है जिससे जाहिर हो कि भारत भी रूस या चीन की तरह काबुल में तालिबान को कबूल कर लेगा।
  • उन्‍होंने कहा कि भारत अफगानिस्तान में न केवल एक तालिबान सरकार के सच का सामना कर रहा है, बल्कि इसके दो सबसे बड़े प्रतिद्वंदी पाकिस्तान और चीन भी वहां अपनी मौजूदगी को मजबूत कर रहे हैं। दुनिया के कई बड़े देश तालिबान को कबूल करने को राजी हैं।
  • चीन ने कहा है कि हम अफगानी जनता की पसंद का सम्मान करते हैं। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने एक बयान में कहा कि हम अफगानिस्तान की जनता की पसंद का सम्मान करते हैं। चीन अफगानिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ने का इच्छुक है।
  • पाकिस्तान ने कहा है कि अफगानियों ने गुलामी की बेड़ियां तोड़ दिया है। काबुल पर तालिबानी कब्जे के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक स्कूल के कार्यक्रम में कहा क‍ि अफगानियों ने गुलामी की बेड़ियां तोड़ दी हैं।रूस ने कहा कि काबुल के हालात गनी सरकार के दौर से बेहतर हैं।
  • रूस में तालिबान आतंकी संगठनों की सूची में है, लेकिन काबुल में रूस के राजदूत तालिबान से मिलने जा रहे हैं। काबुल में रूसी राजदूत दिमित्री जिरनोव ने कहा है कि तालिबान के राज में काबुल की हालत बहुत बेहतर है, अशरफ गनी की सरकार से भी बेहतर।

जम्‍मू कश्‍मीर में आतंकवाद का हो सकता है उदय

  • प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि अफगानिस्‍तान में तालिबान के उदय से जैश-ए-मोहम्‍मद और लश्‍कर-ए-तैयबा जैसे खुंखार आतंकवादी संगठनों में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है। दोनों आतंकी संगठन भारत के लिए खतरनाक हैं। इन संगठनों के लिए अफगानिस्‍तान एक महफूज जगह हुआ करती है। अफगानिस्‍तान में इनके आतंकी शिविर हुआ करते थे।
  • 1990 के दशक में भारत के जम्‍मू कश्‍मीर में घुसपैठ करने वाले आतंकियों में मुल्‍ला उमर के प्रशिक्षण कैंप में ही ट्रेनिंग मिलती थी। भारत को इस बात की प्रबल आशंका है कि अफगानिस्तान में तालिबान का राज होने पर पाकिस्तान के आतंकियों को एक बार फिर ऐसी घटनाओं को अंजाम देने के लिए सुरक्षित इलाका मिल सकता है।
  • बता दें कि दिसंबर 1999 में इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 814 को हाईजैक करके कंधार ले जाने और तालिबान की रखवाली में आतंकी मसूद अजहर, उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद जरगर को रिहा करवाने का कांड भारत भुला नहीं सकता। इतना ही नहीं मसूद अजहर ने एक साल बाद ही कश्मीर में आतंक फैलाने के लिए जैश-ए-मोहम्मद बनाया। इसी जैश के आतंकियों ने 2001 में संसद पर और 2008 में मुंबई पर खौफनाक आतंकी हमले किए थे।

भारत का स्‍टैंड वेट एडं वाच एकदम सही

उन्‍होंने कहा कि अफगानिस्‍तान में राजनीतिक हालात तेजी से बदल रहे हैं। ऐसे में भारत का स्‍टैंड वेट एडं वाच एकदम सही है। भारत के पास अभी कुछ वक्‍त है। भारत इस नई स्थिति का जब तक विश्‍लेषण करता है तब तक तालिबान के समक्ष कई चुनौतियां है। तालिबान को भी समझना होगा कि देश में शासन को कैसे चलाना है। जातीय रूप से विभक्‍त अफगानिस्‍तान को किस तरह से एकजुट करना है। अफगानिस्‍ता पर भारतीय दृष्टिकोण का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल में विदेश मंत्री एस. जयशंकर तालिबान से बात पर एक सवाल के जवाब में बोले थे कि अभी हम काबुल में बदल रही परिस्थिति पर नजर रखे हुए हैं। तालिबान और उसके नुमाइंदे काबुल पहुंच गए हैं, हमें अब यहां से शुरू करना चाहिए। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बुधवार को कहा कि तालिबान से बातचीत के बारे में बस इतना ही कहना चाहेंगे कि हम सभी स्टेकहोल्डर्स के संपर्क में हैं। इससे ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा।

बैड तालिबान और गुड तालिबान

18 अगस्‍त, 2015 को दुबई के एक क्रिकेट स्‍टेडियम में भारतीयों को संबोधति करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तालिबान को लेकर अपने दृष्टिकोण को साथ किया था। उन्‍होंने कहा था कि गुड तालिबान बैड तालिबान, गुड टेररिज्‍म और बैड टेररिज्‍म, यह अब चलने वाला नहीं है। हर किसी को तय करना पड़ेगा कि फैसला करो कि आप आतंकवाद के साथ हैं या मानवता के साथ हो। उस वक्‍त तालिबान को लेकर भारत की यह नीति रही है। इस भाषण के ठीक छह वर्ष बाद अफगानिस्‍तान में राजनीतिक हालत तेजी से बदले हैं। अब तालिबान दुनिया के समक्ष अपनी एक बेहतर छवि पेश कर रहा है। वह महिलाओं की आजादी समेत तमाम हकों को देने की बात कर रहा है।


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