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9 माह बाद भी कोविड-19 के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता है डब्‍ल्‍यूएचओ- टेड्रोस घेब्रेयसस

पूरी दुनिया को कोविड-19 से जूझते हुए 9 माह हो चुके हैं। इसके बाद भी विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का कहना है इसके बारे में अब भी कम ही बातें सामने आ पाई हैं। उन्‍होंने ठीक हो चुके मरीजों को हो रही परेशानियों पर भी चिंता जताई है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 13 Oct 2020 02:04 PM (IST)Updated: Wed, 14 Oct 2020 08:09 AM (IST)
9 माह बाद भी कोविड-19 के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता है डब्‍ल्‍यूएचओ- टेड्रोस घेब्रेयसस
कोविड-19 के मामले पूरी दुनिया में नौ माह बाद भी बढ़ रहे हैं।

संयुक्‍त राष्‍ट्र। कोविड-19 से पूरी दुनिया को जूझते हुए 9 माह बीत गए हैं। पूरी दुनिया में इसके अब तक 37,736,965 मामले सामने आ चुके हैं और 1,078,572 मरीजों की मौत भी हो चुकी है। वहीं 26,428,408 मरीज ठीक भी हुए हैं। लेकिन ठीक होने के कई महीनों बाद भी मरीजों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। उनको सांस लेने में दिक्‍कत हो रही है। कुछ मामलों में व्‍यक्ति को अधिक थकान हो रही है और कुछ दूसरी परेशानियां भी हो रही हैं। इस तरह के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इनको लेकर विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने भी चिंता व्‍यक्‍त की है।

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस अधनम घेब्रेयसस का कहना है कि स्वास्थ्य जोखिमों के मद्देनजर कोविड-19 को बेकाबू नहीं होने दिया जा सकता है। संगठन के मुताबिक बीते कुछ दिनों में खासतौर पर यूरोप और अफ्रीका में संक्रमण के मामलों में जबरदस्‍त बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। पिछले चार दिनों में हर दिन अब तक सबसे बड़ी संख्या में मामलों की पुष्टि हुई है। मरीजों को आईसीयू में भर्ती किए जाने के भी मामले इस दौरान तेजी से बढ़े हैं। डब्‍ल्‍यूएचओ का कहना है कि फिलहाल कोविड-19 से लोगों की सेहत पर दीर्घकाल में होने वाले असर को समझने का प्रयास किया जा रहा है।

डब्‍ल्‍यूएचओ महासचिव का कहना है कि हाल के दिनों में इस जानलेवा वायरस पर चर्चा हुई है ताकि सामूहिक रूप से प्रतिरोधक क्षमता हासिल की जा सके। इस सिद्धांत का इस्‍तेमाल वैक्‍सीनेशन के लिये किया जा सकता है। यदि वैक्‍सीनेशन प्रोग्राम को शुरू कर दिया जाता है तो वायरस से काई लोगों की जान बचाई जा सकती है। उनका कहना है कि खसरा के खिलाफ सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता के लिये 95 फीसदी जनसंख्या को वैक्सीन देना जरूरी है। ऐसा करने पर बाकी बचे पांच फीसदी लोग खुद ही प्रोटेक्‍टेड हो जाएंगे। वहीं पोलियो के लिये करीब 80 फीसद को दवा देनी होगी। घेब्रेयसस के मुताबिक हर्ड इम्युनिटी किसी वायरस से लोगों को बचाकर हासिल की जाती है, उन्हें संक्रमित बना कर नहीं। उनका ये भी कहना है कि इतिहास में इस तरह की रणनीति कभी इस्तेमाल नहीं की गई है। कोविड-19 से प्रतिरोधक क्षमता के बारे में अभी ज्‍यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।

उन्‍होंने बताया कि संक्रमित होने के बाद कुछ हफ्तों तक लोगों में प्रतिरोधक क्षमता रहती है। अभी तक के अनुमान व विश्लेषण दर्शाते हैं कि विश्व की दस फीसद से भी कम आबादी अभी कोविड-19 से संक्रमित हुई है। उन्‍होंने स्पष्ट किया है कि इन हालात में वायरस को बेकाबू होकर फैलने देने से अनावश्यक संक्रमण, कष्ट और मौतें होंगी।

उनका ये भी कहना है कि इसकी रोकथाम के लिए डिजिटल तकनीक की भी मदद ली जा रही है। मोबाइल ऐप के जरिये संक्रमितों की जानकारी दी जा रही है जिससे उनकी वजह से दूसरे लोग संक्रमित न हों। जर्मनी में कोरोना-वॉर्न ऐप की शुरुआत के पहले 100 दिनों में 12 लाख टेस्‍ट नतीजे प्रयोगशालाओं से लोगों तक पहुंचाए गए हैं। भारत में आरोग्य सेतु ऐप 15 करोड़ लोगों ने डाउनलोड किया है जिसकी मदद से सार्वजनिक स्वास्थ्य विभागों को उन इलाकों की शिनाख्‍त हो सकी। ब्रिटेन में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (NHS) ने कोविड-19 ऐप का नया संस्करण जारी किया है जिसे पहले सप्ताह में ही एक करोड़ बार डाउनलोड किया गया। इसकी मदद से कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए बुकिंग करने रिपोर्ट लेने, संक्रमितों के संपर्क में आने और उनकी गतिविधियों की जानकारी मिलने में आसानी हो रही है। इस महामारी को रोकने के लिए देशों ने अलग-अलग तरीके से कार्रवाई की है। बीते सप्‍ताह दुनिया भर में पुष्ट मामलों की कुल संख्या का 70 फीसद महज 10 देशों से थी, और कुल मामलों में लगभग आधे संक्रमित लोग केवल तीन देशों से हैं।


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