तालिबान शासन में हजारा समुदाय को सता रही भविष्य की चिंता, शिया होने के कारण इन पर कहर बरपाते रहे हैं आतंकी
तालिबान की नई सरकार की घोषणा के बाद एक बार फिर हजारा समुदाय की चिंताएं बढ़ गई हैं। यह लाजिमी भी है क्योंकि सरकार में उन्हीं लोगों को शामिल किया जा गया है जो हजारा समुदाय पर कहर बरपाते रहे हैं।
काबुल, आइएएनएस। अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान के कब्जे के बाद शुक्रवार को पहली बार हजारा समुदाय के लोग काबुल के बाहरी इलाके में स्थित मस्जिदों में नमाज पढ़ने के लिए इकट्ठा हुए। हजारा समुदाय इस्लाम के शिया वर्ग से आता है और सिर्फ इसी वजह से तालिबान व आइएसआइएस के आतंकी पूर्व में इन पर बेइंतहा जुल्म कर चुके हैं।
तालिबान की नई सरकार की घोषणा के बाद एक बार फिर हजारा समुदाय की चिंताएं बढ़ गई हैं। यह लाजिमी भी है, क्योंकि सरकार में उन्हीं लोगों को शामिल किया जा गया है जो हजारा समुदाय पर कहर बरपाते रहे हैं। इस समुदाय से आने वाले स्थानीय नागरिक हसनजादा कहते हैं, 'तालिबान की सरकार में पश्तून समुदाय का वर्चस्व है। हजारा समुदाय को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है, जो बड़ी चिंता का विषय है।' अफगानिस्तान में हजारा अल्पसंख्यक माने जाते हैं, जबकि तालिबान बहुसंख्यक सुन्नी वर्ग से आते हैं। इससे पहले जब तालिबान सत्ता में था, तब शियाओं पर हमले, हत्या और शुद्धिकरण की आड़ में उत्पीड़न जैसी वारदातें आम थीं।
आत्मघाती हमलावर ने हजारा समुदाय के एक स्कूल में किया था अात्मघाती हमला
इसी साल जून में आतंकी संगठन आइएसआइएस के आत्मघाती हमलावर ने हजारा समुदाय के एक स्कूल में धमाके कर दिए थे। इसमें सैकड़ों की जान चली गई थी। हजारा आज इसलिए भी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, क्योंकि अफगानिस्तान की सड़कों पर तालिबान की चहलकदमी आम हो गई है। एक मस्जिद के इमाम अब्दुल कादिर अलेमी कहते हैं, 'इसमें कोई शक नहीं कि अफगानिस्तान के लोग समावेशी सरकार चाहते हैं, जिसमें सभी समुदायों व मतावलंबियों का प्रतिनिधित्व हो।'
हजारा समुदाय की सबसे बड़ी चिंता रोजगार को लेकर है। समुदाय के लोग पहले सरकारी दफ्तरों में काम करते थे, लेकिन तालिबान के सत्ता में आने के बाद उन्हें बाहर कर दिया गया है। इसकी वजह से उनके सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है।