Move to Jagran APP

जानें, 'रंगों' के जादू ने कई शासकों को सत्‍ता से कैसे किया बेदखल, जानें क्‍या है ह‍कीकत

आज हम बताते हैं दुनिया के उन चुनिंदा आंदोलन के बारे में जिसमें एक खास रंग के कपड़ों या एक खास रंगाें का इस्‍तेमाल किया गया।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sat, 08 Dec 2018 11:14 AM (IST)Updated: Sat, 08 Dec 2018 03:07 PM (IST)
जानें, 'रंगों' के जादू ने कई शासकों को सत्‍ता से कैसे किया बेदखल, जानें क्‍या है ह‍कीकत
जानें, 'रंगों' के जादू ने कई शासकों को सत्‍ता से कैसे किया बेदखल, जानें क्‍या है ह‍कीकत
पेरिस [ जागरण स्‍पेशल ]। फ्रांस में सरकार की न‍ीतियों के खिलाफ उमड़ा सैलाब पेरिस की सड़कों पर है। इस आंदोलन की खास बात यह है कि प्रदर्शनकारी एक खास किस्‍म का परिधान पहनकर अपना विरोध जता रहे हैं। ऐसे में एक स्‍वाभाविक जिज्ञासा यह है कि आखिर प्रदर्शनकारियों ने यलो वेस्‍ट यानी पीले रंग की बनियान क्‍यों पहन रखा है। आज हम आपको बताते हैं दुनिया के उन चुनिंदा आंदोलनों के बारे में जिसमें एक खास रंग के कपड़ों या एक खास रंगाें का इस्‍तेमाल किया गया।
जर्जिया में भ्रष्‍टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ 'रोज रिवोल्यूशन'
वर्ष 2003 में जर्जिया में संसदीय चुनाव के बाद यहां केे 'रोज रिवोल्यूशन' ने पूरी दुनिया की निगाह अपनी ओर आ‍कर्षित किया था। एक समय जॉर्जिया पूर्व सोबियत संघ का एक समृद्ध क्षेत्र रहा है। वह 'फ़्रूट बास्केट' यानी फलों के बाज़ार के रूप में मशहूर था। लेकिन स्वतंत्रता के बाद जातीय समस्याओं, 1992 के गृह युद्ध और भ्रष्टाचार के कारण उसकी अर्थव्यवस्था बिगड़ गई थी। एडुअर्ड शेवर्दनाद्ज़े आजाद जॉर्जिया के राष्ट्रपति बने। वह अपने देश में काफी लोकप्रिय थे। उनकी छवि पश्चिम समर्थक और लोकतांत्रिक मुल्‍यों के हिमायती के रूप में थी, लेकिन वह जॉर्जिया को आर्थिक बदहाली के दौर से बाहर निकल पाने में विफल रहे। देश में भ्रष्टाचार और बेराेजगारी की समस्‍या दिन पर दिन बढ़ती गई। उन पर भी देश के अभिजात वर्ग के समर्थन‍ का अरोप लगा था।
इन दो कारणों से वह अलोकप्रिय हो गए। इसके चलते 2 नवंबर, 2003  को राजधानी तिब्लिसी की सड़कों पर हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारी 75 वर्षीय शेवर्दनाद्ज़े के इस्तीफ़े की माँग में उतरे थे। जार्जिया का यह आंदोलन इतिहास में 'रोज रिवोल्यूशन' के नाम से जाना जाता है। अंतत: राष्ट्रपति शेवार्डनाज को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा। बता दें कि सोवियत संघ के विघटन के बाद जॉर्जिया को गृह युद्ध और अस्थिरता के ख़तरे से निकालने का श्रेय शेवर्दनाद्ज़े को ही दिया जाता है।
राजनीतिक भ्रष्‍टाचार को रोकने के लिए यूक्रेन में 'ऑरेंज क्रांति'
नवंबर, 2004 में यूक्रेन में व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार और राजनीतिक बदलाव के लिए हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। यूक्रेन की राजधानी किएफ़ में करीब एक वर्ष तक यह विरोध प्रदर्शन जारी रहा। यूक्रेन के इतिहास में इस 'ऑरेंज क्रांति' के नाम से जाना जाता है। अंतत: यूक्रेन की जनता की जीत हुई। इसके बाद देश में महत्‍वपूर्ण चुनाव सुधार हुए। यूक्रेन में एक नए राजीनतिक जीवन की शुरुआत हुई। देश में एक स्‍वस्‍थ लोकतंत्र की स्‍थापना की पहल हुई। ऑरेंज क्रांति के नेता युशचेन्को ने अपने समर्थकों का धन्यवाद दिया। इस क्रांति के बाद युशचेन्को यूक्रेन के राष्ट्रपति बनें।
फिलीपींस में 'पीली क्रांति' ने मार्कोस को सत्‍ता से बेदखल किया
1986 में राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस के शासन के खिलाफ फिलीपींस की जनता सड़कों पर उतर आई। यह एक सफल अह‍िंसात्‍क आंदोलन था। आंदोलनकारी पीले वस्‍त्र पहनकर सड़क पर उतरे। इसलिए इतिहास में इसे 'पीली क्रांति' के नाम से जाना जाता है। प्रदर्शनकारियों ने बाद में सशस्त्र बलों के साथ शामिल होकर मार्कोस को सत्‍ता से बेदखल कर दिया। फिलीपींस के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में एक्विनो की विधवा कोराज़ोन को बैठाया गया।
इराक में लोकतंत्र के लिए 'बैगनी क्रांति'
2005 में इराक के विधायी चुनाव में 'बैंगनी क्रांति' शब्‍द का इस्‍तेमाल किया गया। 'बैंगनी क्रांति' इराक में सत्‍ता के बदलाव या लोकतंत्र का प्रतीक बन गया। तत्‍कालीन अमेरिकी राष्‍ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने इसकी तुलना जर्जिया के रोज रिवोल्यूशन और यूक्रेन के ऑरेंज रिवोल्यूशन से किया। हालांकि, इस नाम का इस्‍तेमाल इराकी जनता द्वारा नहीं किया गया, लेकिन उस वक्‍त अमेरिका समेत तमाम मुल्‍कों ने इराक में लोकतांत्रिक सरकार और जनता को मतदान में प्रोत्‍साहित करने के लिए 'बैगनी क्रांति' शब्‍द का इस्‍तेमाल किया गया। उस दौरान बुश ने कहा था- हाल के दिनों में, हमने स्वतंत्रता के इतिहास में कई ऐतिहासिक घटनाएं देखी हैं जैसे जॉर्जिया में एक गुलाब क्रांति, यूक्रेन में ऑरेंज क्रांति, और अब इराक में एक बैंगनी क्रांति।
मिस्र में लोटस क्रांति
मिस्र की 'लोटस क्रांति' यानी कमल क्रांति अरब दुनिया में प्रख्‍यात है। मिस्र के विपक्षी नेता साद एडिन इब्राहिम ने इस कमल क्रांति की संज्ञा दी। उस वक्‍त के अखबारों में यह इस शब्‍द का खुब इस्‍तेमाल किया गया। दरअसल, कमल को पुनरुत्थान, जीवन और प्राचीन मिस्र के सूर्य का प्रतिनिधित्व करने वाले फूल के रूप में जाना जाता है। 5 जनवरी, 2011 को मिस्र में तत्कालीन राष्ट्रपति हुस्नी मुबारक के ख़िलाफ़ शुरू हुए जन आंदोलन ने दशकों से चली आ रही उनकी हुकूमत का ख़ात्मा कर दिया था। वाएल ग़ोनिम जनवरी क्रांति के प्रतीक बन गए थे। हालांक‍ि, बाद में गोनिम पर मुक़दमा चला ताकि उनकी राष्ट्रीयता ख़त्म की जा सके। बाद में गोनिम को देश छोड़ना पड़ा। अब्द-अल-फ़तह साल 2011 के विद्रोह के मुख्य धर्मनिरपेक्ष नेता थे। उनकी ख्याति नगारिकों पर सैनिक अदालतों में मुक़दमा चलाने का विरोध करने वाले शख़्स के रूप में थी।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.