हमें अपनी कीमत पर नहीं चाहिए शांति, तालिबान से वार्ता पर खौफ में हैं अफ़ग़ानी महिलाएं
मेरा कसूर सिर्फ इतना ही था कि बुर्का पहने रहने के बावजूद मेरे पांव की एड़ी चलते वक्त दिखाई दे रही थी। इसको लेकर तालिबानी मुझे तब तक कोड़े मारते रहे जब तक मैं बेहोश नहीं हो गई।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। अफगानिस्तान में शांति को लेकर तालिबान से बातचीत का जो रास्ता खुला है उसको लेकर अभी से ही अफगानिस्तान की महिलाओं में दहशत साफतौर पर देखी जा रही है। तालिबान ने वर्षों तक इस देश को दीमक की तरह चाटा है। तालिबान के ही काल में अफगानिस्तान के लोगों ने खासतौर पर महिलाओं ने सबसे बुरा दौर जिया है। मौजूदा समय में यह दौर वहां की हर महिला के लिए किसी बुरे सपने को फिर से याद करने वाला है। अमेरिका ने जब से अफगानिस्तान से अपनी सेना को वापस बुलाने का निर्णय लिया है तभी से यहां के हालातों को लेकर उसका रुख पूरी तरह से बदल गया है। कभी तालिबान की कब्र खोदने वाला अमेरिका अब उससे ही बातचीत के रास्ते सुलह का रास्ता तलाश कर रहा है। माना जा रहा है कि अफगानिस्तान से वापसी की जल्दी में वह अब तालिबान का दांव खेल रहा है। लेकिन उसकी इसी खौफनाक राजनीति ने यहां के लोगों को चिंता में डाल दिया है।
दहशत में रहीमा
मौजूदा हालातों में तालिबान का जिक्र का जिक्र आने पर वहां की महिला सांसद रहीमा जमी खुद भी दहशत में आ जाती हैं। वह उन खौफनाक दिनों को अपने दिल और दिमाग से आज तक नहीं निकाल सकी हैं जब यहां पर तालिबानी हुकूमत हुआ करती थी। उस दौर में महिलाओं पर जुल्म आम बात थी। खुद रहीमा ने इन सभी जुल्मों को झेला भी है और करीब से देखा भी है। न्यूयॉर्क टाइम्स को अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने कहा कि 1996 में वह हैड मिस्ट्रेस हुआ करती थीं। उन्हें इस दौरान लगातार नौकरी छोड़ने को लेकर दबाव बनाया जा रहा था, यहां तक की इसके लिए उन्हें धमकी तक दी जा रही थीं। वह घर से एड़ी तक का बुर्का पहनकर ही निकल सकती थीं। उन्होंने बताया कि एक दिन काफी गर्मी थी और वह सड़क से कहीं जा रही थीं। तभी उन्हें तालिबानियों ने घेर लिया। उनका कसूर था कि उनका एड़ी बुर्के से ढकी हुई थी और चलने में वह दिखाई दे रही थी। उनके मुताबिक इस बात पर तालिबानियों ने घोड़े के चाबुक से उन्हें तब तक मारा जब तक वह बेहोश होकर जमीन पर नहीं गिर पड़ीं।
तालिबानी हुकूमत
यह घटना भले ही उनके साथ एक दिन घटी थी लेकिन इस तरह की घटनाएं उन दिनों में आम हुआ करती थीं। महिलाओं को सरेआम गोली मार दी जाती थी। जवान लड़कियों से तालिबानियों का वहशीपन किसी से छिपा नहीं था। वह दौर महिलाओं के लिए बेहद खौफनाक था। लड़कियों के लिए पढ़ना मौत को दावत देना होता था। यह पूरे परिवार के लिए खौफ बन जाता था। महिलाएं न खेल सकती थीं, न बाहर घूम सकती थीं। अपनी मनमर्जी से जीने की बात सिर्फ एक सपना बन चुकी थी। बाद में अमेरिका के दखल के बाद तालिबानी हुकूमत वहां से उखड़ गई। इसके बाद महिलाओं को कुछ आजादी भी मिली। लेकिन वर्तमान में जबकि अफगानिस्तान से तालिबान काफी हद तक साफ हो चुका है ऐसे में वहां की शांति के लिए उनसे बात करना यहां की महिलाओं को काफी खटक रहा है। उन्हें डर है कि इस बातचीत के बाद एक बार फिर से वही खौफनाक दिन वापस आ जाएंगे। यह खौफ सिर्फ रहीमा में ही नहीं है बल्कि उन जैसी कई दूसरी महिलाओं में भी है।
नहीं चाहिए ऐसी शांति
जहां तक तालिबान से वार्ता की बात है तो बीते शनिवार को ही यह खत्म हुई है। इस बैठक में तय हुआ है कि यह वार्ता आगे फिर होगी। फिलहाल यह करीब छह दिनों तक चली थी। महिलाओं के डर के बीच कई लोगों का यह मानना है कि इस बातचीत के जरिए वर्षों से युद्ध की आग झेल रहे अफगानिस्तान में शांति बहाल हो सकेगी। हालांकि महिलाएं ऐसा नहीं सोच रही हैं। अफगान वूमेन नेटवर्क में लीगल डिपार्टमेंट की हैड रुबिना हमदर्द का साफतौर पर कहना है कि महिलाएं ऐसी शांति नहीं चाहती हैं जिसमें उनका ही जीवन वर्तमान के मुकाबले बदतर हो जाए। आपको यहां पर बता दें कि इस ऑर्गेनाइजेशन को बाहर से फंड मिलता है और यह महिलाओं के हक के लिए काम करती है। उन्होंने यहां तक कहा कि खूनी जंग को रोकने के लिए यह जरूरी नहीं है कि अफगानी महिलाओं को बेच दिया जाए। उन्होंने पूर्व में कई तरह के जख्मों को देखा है। उनके ही सामने तालिबानियों ने उनके मां-बाप की कब्र खोद दी। न मालूम कितनी ही महिलाओं को विधवा बनाने के पीछे तालिबान ही था। अब जबकि तालिबान से बातचीत को सही बताया जा रहा है तो अफगानी महिलाएं पूर्व में उनके द्वारा हुई ज्यादत्तियों को नहीं भूल सकती हैं।
सत्ता में वापसी चाहता है तालिबान
रहीमा खुद इस वार्ता को लेकर काफी भड़की हुई दिखाई देती हैं। उनका कहना है कि अफगानी महिलाएं शांति चाहती हैं लेकिन हर कीमत पर नहीं। वह कहती हैं कि जब कभी उन्हें उनपर किए गए जुल्म याद आते हैं तो वह आज भी सिहर उठती हैं। तालिबान से वार्ता का सीधा मतलब है कि उन्हें सत्ता में जगह दी जाएगी। इसके साथ ही भविष्य में महिलाओं से उनकी आजादी को फिर से छीन लिया जाएगा और उनके ऊपर जुल्मों की कहानी फिर से लिखी जाएगी। उनको इस बात का भी डर है कि तालिबान यह सब कुछ फिर से सत्ता में वापसी के लिए ही कर रहा है। लेकिन यदि ऐसा हुआ तो तालिबान पहले से कहीं अधिक खौफनाक होगा। रहीमा इस तरह का डर रखने वाली अकेली सांसद नहीं हैं। शुक्रिया पायकन ने भी उस दौर को देखा है। उनका कहना है कि तालिबानी हुकूमत में महिलाओं को घर के अंदर रहने के लिए दबाव डाला जाता था। न मानने पर उन्हें सजा दी जाती थी।
वार्ता में कोई महिला सदस्य नहीं
अफगानिस्तान की महिलाओं में व्यापक डर इसलिए भी क्योंकि तालिबान से हो रही वार्ता में कोई भी महिला सदस्य नहीं है। अफगानिस्तान में व्यापार से जुड़ी महिला लैला हैदरी का कहना है कि वह इस शांतिवार्ता के जरिए फिर से पीडि़त नहीं बनना चाहती हैं। हैदरी देश में जड़े पसार रहे नशे के धंधे के खिलाफ जागरुकता फैलाने का भी काम करती हैं। उनका कहना है कि तालिबानी हुकूमत में महिलाओं को काम करने की आजादी नहीं थी। यही वजह थी कि कई महिलाओं ने देश छोड़कर दूसरी जगहों पर शरण लेना ज्यादा बेहतर समझा। मौजूदा वार्ता में भी उन्हें कोई जगह नहीं दी गई जिससे वह अपनी बात रख सकें।
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