NATO में रहते हुए भी इस देश ने कई बार किया है अमेरिका का खुला विरोध, पढि़ये कौन है ये सिरदर्द
Turkey Nato का काफी पुराना और मजबूत सहयोगी है। इसके बाद भी कई फैसलों पर तुर्की ने इस संगठन का खुलकर विरोध किया है। इस संगठन के सबसे मजबूत राष्ट्र अमेरिका से भी कई मसलों पर उसका छत्तीस का आंकड़ा रहा है।
नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। रूस और यूक्रेन (Russia Ukraine War) की जंग में नाटो (NATO) ने एक अहम भूमिका निभाई है। इस संगठन के खिलाफ जहां रूस पहले से ही मुखर रहा है वहीं एक और देश भी है जिसने एक नहीं कई बार इस संगठन के फैसलों का विरोध खुलकर किया है। इस देश का नाम है तुर्की।
ये देश नाटो का काफी पुराना सदस्य देश भी है। इसके बावजूद भी इस संगठन के कई फैसलों का तुर्की ने समर्थन नहीं किया है। बता दें कि इस संगठन में शामिल अमेरिका के बाद तुर्की की दूसरी सबसे बड़ी सेना है। एक मजबूत राष्ट्र होने के बाद भी तुर्की नाटो को अपनी सुरक्षा के लिए बेहद खास मानता है। वहीं दूसरी तरफ कई फैसलों में इस संगठन के खिलाफ जाने के बावजूद अमेरिका को इसको सहन करना बड़ी मजबूरी भी बन चुकी है।
- मौजूदा परिस्थिति में भी देखें तो तुर्की ने रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग का विरोध तो किया है लेकिन साथ ही उसने जंग को खत्म करने और बातचीत की राह खोलने के भी कई बार प्रयास किए हैं। तुर्की ने दोनों देशों के बीच एक से अधिक बार बातचीत को लेकर मध्यस्थता की है। हालांकि इसका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल सका। तुर्की की रणनीति को देखा जाए तो वो रूस को न तो नजरअंदाज करना चाहता है और न ही ऐसा कर अपने लिए समस्या खड़ी करना चाहता है। यही वजह है कि रूस को लेकर नाटो के रुख से वो बिल्कुल अलग खड़ा है। इस संबंध में तुर्की का रुख तटस्थ रहा है।
- अमेरिका और रूस के बीच वर्षों तक चले शीत युद्ध के दौरान भी तुर्की का तटस्थ रुख कायम रहा था। उसका ये फैसला अमेरिका के लिए हमेशा से ही परेशानी का सबब बना रहा।
- रूस और तुर्की के बीच मिसाइल सिस्टम एस-400 के सौदे पर भी जब अमेरिका ने नाराजगी प्रकट की थी, तब भी तुर्की ने अपनी सुरक्षा के साथ कोई सौदा नहीं किया था और रूस से इस सौदे को अंतिम रूप देकर ये सिस्टम हासिल किया था। इस मिसाइल प्रणाली को खासतौर पर नाटो से बचने के लिए ही तैया किया गया है।
- तुर्की का रुख नाटो से सीरिया और लीबिया सहित कई मुद्दों पर अलग रहा था। उसने खुल कर नाटो के फैसलों का विरोध किया था। तुर्की इस बात को भी जानता है कि भूगोलिक दृष्टि से तुर्की जहां पर है नाटो और यूरोपीय देशों के लिए उसके रणनीति मायने बेहद खास हैं।
- तुर्की ने वर्ष 2009 में उस वक्त भी नाटो का विरोध किया था जब डेनमार्क के एंडर्स फोग रासमुसेन को नाटो के प्रमुख के रूप में नियुक्त करने का फैसला लिया गया था।
- नाटो में तुर्की दक्षिण-पूर्वी हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। ये हिस्सा रूस और पश्चिमी देशों के बीच एक बफर जोन है।
- हाल ही में जब स्वीडन और फिनलैंड को नाटो की सदस्यता देने की बात हुई थी तब भी तुर्की ने इसका खुलकर विरोध किया था। हालांकि अब ये मसला पूरी तरह से सुलझ चुका है। दोनों ही देश तुर्की की मांग के आगे झुक गए हैं।