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ग्‍लोबल वार्मिंग पर ज्वालामुखीय विस्फोट का इफेक्‍ट, वैज्ञानिक करेंगे इसकी खोज

हालांक‍ि, एक धारणा यह स्‍थापित है कि पिछले 20 वर्षों में छोटे ज्वालामुखीय विस्फोट पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग से बचा रहे हैं।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 09:39 AM (IST)Updated: Mon, 03 Dec 2018 11:26 AM (IST)
ग्‍लोबल वार्मिंग पर ज्वालामुखीय विस्फोट का इफेक्‍ट, वैज्ञानिक करेंगे इसकी खोज
ग्‍लोबल वार्मिंग पर ज्वालामुखीय विस्फोट का इफेक्‍ट, वैज्ञानिक करेंगे इसकी खोज

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ] । वैज्ञानिक अब इस बात की नए सिरे से खोज करेंगे कि क्‍या छोटे ज्वालामुखीय विस्फोटों से निकलने वाले एयरोसोल स्‍प्रे का ग्‍लोबल वार्मिंग में कोई रोल है। इसका जलवायु परिवर्तन में क्‍या इफेक्‍ट है। अगर धरती पर ऐसा ज्वालामुखी आ जाए कि सूर्य की रोशनी धरती तक पहुंच ही न पाए। ऐसा हुआ तो क्या होगा। इसका ग्लोबल वार्मिंग पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ऐसे ही तमाम सवालों का जवाब ढूंढने के लिए वैज्ञनिक एक प्रयोग करने जा रहे हैं। यह टीम धरती से 12 मील दूर एयरोसोल का ग्‍लोबल वार्मिंग के इफेक्‍ट का पता करेगी। बहरहाल, अभी तक वैज्ञानिकों ने ग्‍लेाबल वार्मिंग में छोटे ज्वालामुखीय विस्फोटों से निकलने वाले एयरोसोल की भूमिका को नजरअंदाज किया है।
माइक्रोसॉफ्ट के मुखिया बिल गेट्स की दिलचस्‍पी
इस नई खोज के लिए माइक्रोसॉफ्ट के मुखिया बिल गेट्स ने अपनी दिलचस्‍पी दिखाई है। यह परियोजना बिल गेट्स के सहयोग से चलाई जा रही है, जिसमें 23 लाख पाउंड का निवेश होगा। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अंतरिक्ष शोध से जुड़े वैज्ञानिकों का दल इस पर काम करेगा। दरअसल, ज्‍वालामुखी विस्‍फोट से निकलने वाला एयरोसाेल वायुमंडल के समताप मंडल और उष्णकटिबंधीय के बीच जमा होता है। बादलों की अस्पष्टता के चलते वैज्ञानिकों के लिए वातावरण की इस परत अध्ययन करना मुश्किल होता है। इसलिए वैज्ञानिकों ने छोटे विस्फोटों से एयरोसोल की भूमिका को नजरअंदाज कर दिया।
ग्लोबल वार्मिंग बनाम ज्वालामुखीय विस्फोट
हालांक‍ि, एक धारणा यह स्‍थापित है कि पिछले 20 वर्षों में छोटे ज्वालामुखीय विस्फोट पृथ्वी को ग्लोबल वार्मिंग से बचा रहे हैं। वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि ज्वालामुखी द्वारा ऊपरी वायुमंडल में फैले सल्फर एयरोसोल की बूंदें पृथ्वी से सूर्य की रोशनी को दूर कर रही हैं। इस शोध में यह दावा किया गया है कि इससे पिछले 15 वर्षों में वैश्विक तापमान में 0.05 डिग्री सेल्सियस से 0.12 डिग्री सेल्सियस के बीच में कमी आई है। हाल ही में वै‍ज्ञानिकों ने इस पर विचार किया कि क्‍या बड़े विस्फोटों पर जलवायु परिवर्तन पर विशेष प्रभाव पड़ेगा। 

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जलवायु परिवर्तन के लिए कंप्यूटर मॉडल भविष्यवाणी हुई फेल
1990 के दशक के दौरान यह देखा गया वैश्विक तापमान में तेजी से वृद्धि ने जलवायु परिवर्तन के लिए कंप्यूटर मॉडल भविष्यवाणियों से मेल खाने में असफल रहा है। 1998 में सबसे गर्म वर्ष रहा। इसके लिए कमजोर सौर गतिविधियों को जिम्‍मेदार ठहराया गया। यह निष्‍कर्ष निकाला गया कि महासागरों की गर्मी में वृद्धि हुई है। पिछले साल जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल ने निष्कर्ष निकाला था कि गहरे महासागर गर्मी की बढ़ती मात्रा को अवशोषित करने के लिए जिम्मेदार थे, लेकिन चेतावनी दी कि यह अनिश्चित काल तक जारी नहीं रह सकता है।
ज्वालामुखीय विस्फोट ग्‍लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार
हालांकि, पिछले साल नवंबर में प्रकाशित एक पेपर में, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वायुमंडलीय वैज्ञानिकों ने पाया कि 21वीं शताब्दी की शुरुआत में छोटे ज्वालामुखीय विस्फोट, जिन्हें बड़े पैमाने पर अनदेखा किया गया था, वार्मिंग में अंतराल के एक तिहाई तक जिम्मेदार थे। अब कैलिफोर्निया में लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी के शोधकर्ताओं ने 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से और 21 वीं शताब्दी की शुरुआत में वायुमंडलीय तापमान, नमी और वायुमंडल से दिखाई देने वाली सूर्यप्रकाश की मात्रा में विस्फोटों के प्रभावों के संकेत पाए हैं।


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