प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र संबोधन, जानें किन मुद्दों पर होगी बात
भारत एक बार फिर मरुस्थलीकरण भूमि क्षरण और सूखे पर आयोजित एक वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते मरुस्थलीकरण भूमि क्षरण और सूखे पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्चस्तरीय वर्चुअल बैठक को संबोधित करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र, पीटीआइ। भारत एक बार फिर मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर आयोजित एक वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी करने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्चस्तरीय वर्चुअल बैठक को संबोधित करेंगे। इस सम्मेलन का मकसद सूखे की समस्या (मरुस्थलीकरण) से निपटना और भूमि के उपजाऊपन या उसकी शक्ति को बढ़ाने के लिए नई योजनाओं पर सहमति बनाना है।
14 जून को संबोधन
महासभा अध्यक्ष के कार्यालय की तरफ से जारी एक मीडिया एडवाइजरी के अनुसार, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन के तहत पक्षों की सभा के 14वें सत्र के अध्यक्ष पीएम मोदी 14 जून की सुबह यूएनसीसीडी के समर्थन से महासभा के 75वें सत्र के अध्यक्ष वोल्कन बोजकिर की तरफ से बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक को संबोधित करेंगे।
ये हस्तियां होंगी शरीक
कॉप-14 सम्मेलन में सदस्य देशों के मंत्री, वैज्ञानिक, सरकारी प्रतिनिधि, गैर-सरकारी संगठन और अलग-अलग सामुदायिक समूह शामिल होंगे। संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मुहम्मद भी इस उच्च स्तरीय सम्मेलन में भाग लेंगी।
मोदी ने किया था 14वें सत्र का उद्घाटन
मोदी ने सितंबर 2019 में नई दिल्ली में मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दलों के उच्च स्तरीय 14वें सत्र का उद्घाटन किया था। मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन के कार्यपालक सचिव इब्राहिम थियू ने वीडियो लिंक के जरिये कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या का सबसे अच्छा तरीका मिट्टी के क्षरण को रोकना है। मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के मकसद से हर साल 17 जून को 'विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस' मनाया जाता है।
दुनिया की 40 फीसद आबादी प्रभावित
संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि विश्व स्तर पर, धरती का पांचवां हिस्सा यानी दो अरब हेक्टेयर से भी ज्यादा भूमि खराब हो चुकी है, जिसमें सभी कृषि भूमि का आधे से ज्यादा हिस्सा शामिल है। इसने करीब 3.2 अरब लोगों की आजीविका को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, जो कि वैश्विक आबादी का 40 प्रतिशत है। अगर हम मिट्टी के प्रबंधन के तरीके को नहीं बदलते, तो 2050 तक 90 प्रतिशत से भी ज्यादा जमीन सूखे की चपेट में आ सकती है।