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चीन की नई चाल, नेपाल को दी अपने बंदरगाह और जमीन इस्‍तेमाल करने की इजाजत

2015 में मधेसी आंदोलन हुआ था और उस दौरान नेपाल में रोजमर्रा की चीजों की आपूर्ति भी प्रभावित हुई थी, लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।

By Tilak RajEdited By: Published: Sat, 08 Sep 2018 08:34 AM (IST)Updated: Sat, 08 Sep 2018 08:34 AM (IST)
चीन की नई चाल, नेपाल को दी अपने बंदरगाह और जमीन इस्‍तेमाल करने की इजाजत
चीन की नई चाल, नेपाल को दी अपने बंदरगाह और जमीन इस्‍तेमाल करने की इजाजत

काठमांडू, रायटर। चीन, नेपाल को अपने पाले में लाने और भारत से दूर करने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। नेपाल को बड़ा कर्ज देने के बाद चीन ने अब बंदरगाहों के इस्‍तेमाल की इजाजत भी दे दी है। शुक्रवार को काडमांडू में दोनों देशों के बीच एक व्‍यापार समझौते पर हस्‍ताक्षर हुए। इस समझौते के मुताबिक, चीन ने नेपाल को अपने चार बंदरगाहों और तीन लैंड पोर्टों का इस्‍तेमाल करने की इजाजत दी है।

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जानकारों के मुताबिक, चीन ने नेपाल को अपने पाले में लाने के लिए ये बहुत महत्‍वपूर्ण कदम उठाया है। चीन की इस चाल से अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य के लिए जमीन से घिरे नेपाल की भारत पर निर्भरता कम हो जाएगी। नेपाल अब चीन के शेनजेन, लियानयुगांग, झाजियांग और तियानजिन सीपोर्ट का इस्तेमाल कर सकेगा। तियानजिन बंदरगाह नेपाल की सीमा से सबसे नजदीक बंदरगाह है, जो करीब 3,000 किमी दूर है। इसी प्रकार चीन ने लंझाऊ, ल्हासा और शीगाट्स लैंड पोर्टों (ड्राई पोर्ट्स) के इस्तेमाल करने की भी अनुमति नेपाल को दे दी।

दरअसल, 2015 में मधेसी आंदोलन हुआ था और उस दौरान नेपाल में रोजमर्रा की चीजों की आपूर्ति भी प्रभावित हुई थी, लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। गैस एजेंसियों के बाहर तो कई किलोमीटर लंबी-लंबी लाइन लग गई थीं। इसके बाद से ही नेपाल ने भारत पर निर्भरता कम करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। इसका लाभ उठाते हुए चीन ने नेपाल के साथ अपने संबंध बढ़ा लिए हैं।


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