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नेपाल के नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा बोले- भारत से दोस्ती को करेंगे मजबूत

13 जुलाई को नेपाल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले शेर बहादुर देउबा ने संसद के निचले सदन में विश्वास मत हासिल कर लिया है। उन्हें 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 165 वोट हासिल हुए हैं। उन्होंने भारत से संबंधों पर बयान दिया है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Mon, 19 Jul 2021 11:04 AM (IST)Updated: Mon, 19 Jul 2021 11:04 AM (IST)
नेपाल के नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा बोले- भारत से दोस्ती को करेंगे मजबूत
नेपाल के नए प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और पीएम मोदी।(फोटो: एजेंसियां)

काठमांडू, प्रेट्र। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने सदन में विश्वास मत हासिल करने के बाद सबसे पहली प्राथमिकता भारत के साथ संबंधों को मजबूत बनाने की जताई है। उन्होंने कहा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर दोनों देशों के संबंधों को और अधिक मजबूत बनाने की ओर तेजी से कदम बढ़ाए जाएंगे। भारत ने भी नेपाल की तरफ गर्मजोशी से हाथ बढ़ाया है। नेपाली प्रधानमंत्री देउबा के विश्वास मत हासिल करने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्विटर पर बधाई दी। नेपाल के प्रधानमंत्री देउबा ने मोदी की बधाई स्वीकार करते हुए जवाब में कहा, 'मैं आपके साथ काम करके दोनों देशों और जनता के बीच मजबूत संबंध स्थापित करना चाहता हूं।

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'उल्लेखनीय है कि निचले सदन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल करने के बाद नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेरबहादुर देउबा ने अन्य दलों के सहयोग से आसानी से विश्वास मत हासिल कर लिया है। इस तरह से नेपाल में कोरोना महामारी के बीच देश चुनाव में जाने से बच गया है। अब देश में छह महीने में ही चुनाव के बजाय सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। देउबा पांचवी बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं। ज्ञात हो कि इससे पहले नेपाल की कमान नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के केपी शर्मा ओली के हाथों में थी, इन पर चीन का प्रभाव रहता है। इसी कारण कुछ मुद्दों पर भारत से टकराव की भी स्थिति रही।

गौरतलब है कि शेर बहादुर देउबा ने 13 जुलाई को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। इससे एक दिन पहले ही नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को बहाल करने का आदेश दिया था, जिसे 5 महीने में दूसरी बार 22 मई को तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (K.P Sharma Oli) की अनुशंसा पर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने भंग कर दिया था। अदालत ने फैसले को असंवैधानिक करार दिया था।


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