लाकडाउन से अवसाद तीन गुना बढ़ने का खतरा, महिलाओं और युवाओं में पाया गया ज्यादा जोखिम
शोधकर्ताओं का कहना है कि हम यह जानते हैं कि दो सप्ताह की भी शारीरिक सुस्ती के बाद फिर से पुराने ढर्रे पर लौटने में कठिनाई होती है। यह समस्या बुजुर्गो में ज्यादा होती है। इस बीच बॉडी फैट परसेंटेज और इंसुलिन की संवेदनशीलता भी बदलाव आ जाता है।
बर्लिन, आइएएनएस। कोरोना संक्रमण के प्रसार की रोकथाम के लिए लाकडाउन दुनियाभर में एक प्रभावी हथियार साबित हो रहा है। इसके सकारात्मक प्रभाव भी दिख रहे हैं। लेकिन इसके कुछ नकारात्मक पहलू परेशान करने वाले हैं। एक हालिया अध्ययन में बताया गया है कि लाकडाउन के कारण लोगों की सक्रियता में 40 फीसदी की कमी आई है, जिससे अवसाद का खतरा तीन गुना तक बढ़ गया है। जर्मन शोधकर्ताओं की अगुआई में 14 देशों के 20 विज्ञानियों ने एक व्यापक अध्ययन में पाया है कि शारीरिक सक्रियता में आई यह कमी महामारी के बीच एक 'गुप्त महामारी' का संकट पैदा कर सकती है।
शोध टीम के प्रमुख फ्रेंकफर्ट स्थित गोएथे यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर स्पोर्ट्स से जुड़े जेन विल्के का कहना है कि सरकारों और स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए जिम्मेदार लोगों को इस निष्कर्ष को गंभीरता से लेना चाहिए
कड़ी मेहनत वाले व्यायाम में आई 42 फीसद की कमी
अध्ययन में 13,500 लोगों ने शारीरिक सक्रियता तथा 15,000 लोगों ने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में पिछले साल अप्रैल-मई के दौरान लगाई गईं पाबंदियों के दौरान और उसके पहले की जानकारी साझा की। खुद से की गई रिपोर्टिग में सहभागियों ने बताया कि तेज गति टहलने, दौड़ने और साइकलिंग जैसे सामान्य व्यायाम में औसतन 41 फीसद की कमी आई है। जबकि कड़ी मेहनत वाले व्यायाम में 42 फीसद की कमी आई। सक्रियता में यह कमी 70 साल से अधिक उम्र में खासतौर पर देखी गई, जो पहले की तुलना में 56-67 फीसद तक कम रही।
शारीरिक सुस्ती के बाद फिर से पुराने ढर्रे पर लौटने में कठिनाई
शोधकर्ताओं का कहना है कि हम यह जानते हैं कि दो सप्ताह की भी शारीरिक सुस्ती के बाद फिर से पुराने ढर्रे पर लौटने में कठिनाई होती है। यह समस्या बुजुर्गो में ज्यादा होती है। इस बीच, बॉडी फैट परसेंटेज और इंसुलिन की संवेदनशीलता भी बदलाव आ जाता है।
वेल बीइंग इंडेक्स 68 फीसद से घटकर औसतन 52 फीसद हो गया
अध्ययन में सहभागी 73 फीसद लोगों ने यह भी माना कि उनकी सेहत में गिरावट आई है। इन गतिविधियों में आई गिरावट के कारण जीवन की गुणवत्ता पर पड़े फर्क को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कल्याण सूचकांक (वेल-बीइंग इंडेक्स) पर परखे जाने पर पाया गया कि महामारी से पहले जो औसतन 68 फीसद था, वह पहले लाकडाउन के बाद घटकर 52 फीसद पर आ गया। उल्लेखनीय यह कि लोगों ने पूरी ऊर्जा के बावजूद सक्रियता में कमी महसूस की, जिससे जीवन में कुछ भी खास दिलचस्प बातों को अनुभव नहीं किया। कल्याण इंडेक्स के आनुपातिक स्कोर में यह गिरावट इस बात का इशारा करता है कि अवसाद का जोखिम 15 फीसद से बढ़कर 45 फीसद तक बढ़ गया।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसका प्रभाव महिलाओं और युवाओं में अधिक दिखा। इसके मद्देनजर महिलाओं पर खास ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल दिया गया है।
एक दिलचस्प बात यह भी सामने आई कि 14 से 20 फीसद सहभागियों ने सेहत में सुधार होने की भी बात कही। लोगों ने इसका कारण परिवार के साथ ज्यादा वक्त बिताना, कामकाज की अधिक स्वतंत्रता, कारोबारी यात्राओं का कम होना या स्वास्थ्य के प्रति बदले नजरिये को बताया।