भ्रष्टाचार सूचकांक में पहले स्थान पर डेनमार्क और न्यूजीलैंड, जानिए किस स्थान पर है भारत
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक में जारी सीपीआइ की रिपोर्ट में 180 देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग उनके यहां सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के आधार पर तय
दावोस, प्रेट्र। दुनिया के 180 देशों में भ्रष्टाचार के मामले में भारत का स्थान 80वां है। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक (सीपीआइ) में ये नतीजे सामने आए हैं। विशेषज्ञों और बिजनेस के क्षेत्र से जुड़े लोगों के मुताबिक वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक में जारी सीपीआइ की रिपोर्ट में 180 देशों और क्षेत्रों की रैंकिंग उनके यहां सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के आधार पर तय की गई है।
डेनमार्क और न्यूजीलैंड संयुक्त रूप से शीष पर
इस सूची में डेनमार्क और न्यूजीलैंड संयुक्त रूप से शीष पर बने हुई हैं। उसके बाद फिनलैंड, सिंगापुर, स्वीडन और स्विटजरलैंड का स्थान है। सातवें स्थान पर नॉर्वे, आठवें पर नीदरलैंड और नौवें स्थान पर जर्मनी और लग्जमबर्ग हैं।
भारत दो स्थान फिसला
भारत 41 अंकों के साथ 80वें स्थान पर है। भारत के साथ ही इस स्थान पर चीन, बेनिन, घाना और मोरक्को भी बने हुए हैं। पड़ोसी पाकिस्तान 120वें स्थान पर है। अपने पड़ोसी देशों की तुलना में भारत की स्थिति ठीक तो है, लेकिन पिछले साल के मुकाबले वह दो पायदान नीचे फिसल गया है। पिछले साल भारत 78वें स्थान पर था।
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना कठिन
ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल ने कहा कि जिन देशों में चुनाव में बड़े पैमाने पर पैसे का इस्तेमाल होता है और जहां सरकारें अमीर व रसूखदार लोगों की ही सुनती है, वहां भ्रष्टाचार ज्यादा है। गैर सरकारी एजेंसी ने कहा है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे लोकतांत्रिक देशों में बड़े कॉरपोरेट समूह राजनीतिक दलों को अनुचित और अपारदर्शी तरीके से पैसे देकर नियमों को प्रभावित करते हैं, जिसके चलते भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना कठिन हो जाता है।
उद्देश्य व कसौटियां
रिपोर्ट का उद्देश्य राजनीतिक शक्ति पर जांच व संतुलन बनाए रखने वाली संस्थाओं को मजबूत रखना, भ्रष्टाचार विरोधी कानून को मजबूती देना, नागरिकों को भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज सशक्त करना व समाज को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। इसमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के लिए काम की आजादी जैसी कसौटियां भी अपनाई जाती हैं। जिन देशों में स्कोर गिर रहा है, वहां लोकतांत्रिक संस्थानों के प्रशासन में गिरावट, समाज, नागरिकों के अधिकार और स्वतंत्र मीडिया के लिए सिकुड़ते दायरे को देखा जा सकता है।