Move to Jagran APP

Nepal-India Relation: चीन समर्थक ओली की विदाई के बाद नए PM देउबा के साथ कैसे होंगे भारत-नेपाल संबंध, राजशाही के पक्ष में उठी आवाज

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद नेपाली कांग्रेस के अध्‍यक्ष शेर बहादुर देउबा मंगलवार को आधिकारिक तौर पर पांचवीं बार देश के प्रधानमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री देउबा के कार्यकाल कैसा रहेगा। क्‍या उनके आने से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता दौर खत्‍म हो जाएगा।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 14 Jul 2021 06:39 PM (IST)Updated: Wed, 14 Jul 2021 06:41 PM (IST)
Nepal-India Relation: चीन समर्थक ओली की विदाई के बाद नए PM देउबा के साथ कैसे होंगे भारत-नेपाल संबंध, राजशाही के पक्ष में उठी आवाज
चीन समर्थक ओली की विदाई के बाद नए PM देउबा के साथ कैसे होंगे भारत-नेपाल संबंध। फाइल फोटो।

काठमांडू, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद नेपाली कांग्रेस के अध्‍यक्ष शेर बहादुर देउबा मंगलवार को आधिकारिक तौर पर पांचवीं बार देश के प्रधानमंत्री बन गए। प्रधानमंत्री देउबा का कार्यकाल कैसा रहेगा। क्‍या उनके आने से नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का दौर खत्‍म हो जाएगा। ऐसे में जाहिर है कि नई परिस्थितियों में शेर बहादुर देउबा के सामने जटिल चुनौतियां होंगी। आखिर देउबा के समक्ष क्‍या होगी चुनौती। उनके प्रधानमंत्री बनने से कैसे होंगे नेपाल और भारत के रिश्‍ते।

loksabha election banner

ओली के कार्यकाल में भारत-नेपाल रिश्‍तों में खटास

अगर भारत के साथ रिश्‍तों में देखें तो केपी ओली के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच खटास पैदा हुई थी। दोनों देशों के बीच कई विवादित मुद्दों पर टकराव की स्थिति उत्‍पन्‍न हुई थी। ओली की गिनती चीन के समर्थक के रूप में है, वह भारत के विरोधी रहे हैं। उससे कई बार ये भी साफ हुआ कि वो सीधे-सीधे चीन के इशारों पर काम कर रहे हैं। ओली को बचाने की चीन ने भी अपने स्तर पर कई कोशिशें कीं। पहले प्रचंड और ओली में सुलह कराने की कोशिश, फिर राष्ट्रपति के साथ चीनी प्रतिनिधियों की बैठकें।

आसान नहीं है देउबा का कार्यकाल

उनके समक्ष पक्ष और विपक्ष को साथ लेकर चलने की चुनौती होगी। संसद का आधिकारिक तौर पर भरोसा जीतने की बड़ी चुनौती है। उनके समक्ष माओवादियों के समर्थन की शर्तों को पूरा करने की चुनौती और साथ ही राजशाही समर्थकों को भी अपने साथ जोड़ना होगा। सत्‍ता से बाहर ओली गुट भी उनके लिए एक बड़ी चुनौती खड़ा कर सकता है। साथ ही राष्ट्रपति विद्यादेवी भंडारी का रुख भी अहम मायने रखेगा, जो लगातार ओली को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाती नजर आती रही हैं। पिछली बार भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी उसे न मानने की रणनीतिक और तथाकथित संवैधानिक चालबाजियां और अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के दबाव में देउबा की ताजपोशी की मजबूरी। जाहिर है देउबा की राह आसान नहीं है।

राष्ट्रपति भंडारी और ओली की सांठगांठ पर उठे सवाल

नेपाल की शीर्ष अदालत ने अप्रैल में भी राष्ट्रपति बिद्यादेबी भंडारी की मनमानी के खिलाफ सख्त रुख अपनाया था। नवंबर में जबरन भंग की गई संसद को दोबारा बहाल करवाया था। ओली की तिकड़मों और जिद ने या यूं कहें कि तानाशाही ने उन्हें कुछ दिनों का सत्ता सुख तो दिया, लेकिन आखिरकार उन्हें घुटने टेकने ही पड़े। सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले और ओली को तत्काल कुर्सी छोड़कर शेर बहादुर देउबा को सौंपने के निर्देश के बाद ओली के लिए अब सारे रास्ते बंद हो गए थे। राष्ट्रपति भंडारी के लिए भी अब ओली के इशारों पर चलना नामुमकिन हो गया। उनके फैसलों पर तमाम सवाल उठ रहे थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने इन तमाम असमंजस को फिलहाल खत्म कर दिया और सीधे तौर पर ओली को कुर्सी से बेदखल कर दिया।

राजशाही के पक्ष में उठी आवाज

इस सियासी उलटफेर के बीच एक सवाल प्रमुखता से सामने आया है कि क्या नेपाल में एक बार फिर राजशाही की वापसी का कोई रास्ता खुल सकता है। ये भी गौरतलब है कि जब से कम्युनिस्टों की ये सरकार नेपाल में बनीं और इसके मतभेद सामने आने लगे तब से राजशाही की वापसी के लिए देश भर में आंदोलन भी तेज हुए। ये साबित करने की लगातार कोशिशें की जा रही है कि इससे तो बेहतर राजशाही थी और राजा के रहने से कम से कम सियासत और कुर्सी की इतनी घटिया तस्वीर तो सामने नहीं आती थी। नेपाली जनता को इस तरह नजरअंदाज तो नहीं किया जाता था। इस सोच को आगे बढ़ाते हुए राजशाही समर्थक गुट फिर से मजबूत होने लगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.