म्यांमार के सैन्य शासन को कोई राहत देने के मूड में नहीं है यूरोपीय संघ, प्रतिबंधों का खाका तैयार
म्यांमार का सैन्य शासन हर देश की आंखों में खटक रहा है। अमेरिका समेत कुछ देशों द्वारा म्यांमार के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के बाद यूरोपीय संघ ने भी इसका खाका तैयार कर लिया है। इस पर अब केवल मुहर लगनी है।
ब्रसेल्स (रॉयटर्स)। म्यांमार में खराब होते हालात पर पूरी दुनिया की नजरें लगी हुई हैं। अमेरिका समेत कुछ देश म्यांमार की सैन्य सरकार से जुड़े लोगों और कंपनियों पर कई तरह के प्रतिबंध पहले ही लगा चुके हैं। इसी सूची में अब यूरोपीय संघ की बारी है। दरअसल, यूरोपीय संघ ने म्यांमार के 11 हाई प्रोफाइल लोगों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला ले लिया है। ये सभी लोग सैन्य शासन से जुड़े हैं और देश की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार को हटाने में इनकी अहम भूमिका भी रही है।
ब्रसेल्स में ईयू के विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले इसकी जानकारी देते हुए यूरोपीय संघ के विदेश नीति के प्रमुख जोसेब्प बोरेल ने कहा है कि म्यांमार में हालात लगातार बेकाबू होते जा रहे हैं। ऐसे में प्रतिबंध लगाना ही एकमात्र उपाय बचता है। हालांकि उन्होंने अभी उन लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किए हैं जो इन 11 लोगों की सूची में शामिल हैं। उन्होंने कहा है कि ये नाम तब ही सार्वजनिक किए जाएंगे ईयू के सभी सदस्य देश इन पर अंतिम और औपचारिक फैसला ले लेंगे।
रॉयटर्स ने संघ के राजदूतों के हवाले से कहा है कि म्यांमार में सैन्य शासन लगातार लोगों और विरोधियों पर अपना शिकंजा कस रहा है। अब तक सैन्य प्रशासन के खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शनों को रोकने के नाम पर 250 लोगों की मौत हो चुकी है। सैन्य शासन हर वर्ग के लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है। लोगों को बड़ी संख्या में हिरासत में लिया गया है और उन्हें जेलों में टॉर्चर तक किया जा रहा है। खबर में कहा गया है कि संघ अब म्यांमार को लेकर किसी भी तरह की राहत देने के मूंड में नहीं लगा रहा है इसलिए कड़े कदमों के लागू किए जाने की प्रबल संभावना है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स को राजदूतों ने बताया कि है कि संघ की तरफ से सेना के अंतर्गत आने वाली कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। इनमें म्यांमार इकोनॉमिक होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड और म्यांमार इकोनॉमिक कॉर्पोरेशन का नाम शामिल है, जिनका कारोबार पूरे देश में फैला है। इसके अलावा यूरोपीय संघ को भी म्यांमार की किसी कंपनी से व्यापारिक संबंध बनाने पर भी रोक लगाई जा सकती है।
जिन कंपनियों पर प्रतिबंध की तलवार लटकी हुई है वे मुख्य रूप से खनन, उत्पादन और खाने-पीने की चीजों से लेकर होटलों, टेलीकॉम और बैंकिंग क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देती हैं। ये कंपनियां देश के बड़े करदाताओं के रूप में पहचानी जानी जाती हैं। इन कंपनियों ने पूर्व में व्यापार को फैलाने के लिए अन्य विदेशी कंपनियों के साथ साझेदारी करने की भी कोशिश की थी। इन कंपनियों पर यूं तो पहले से ही अंतरराष्ट्रीय संगठनों की निगाह रही है।
वर्ष 2019 में यूएन मिशन ने भी इन कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी। इसमें कहा गया था कि ये कंपनियां सेना को पैसे के अलावा भी कई चीजें मुहैया करवाती हैं जिनका इस्तेमाल सेना मानवाधिकार उल्लंघन के तौर पर करती है। आपको बता दें कि ईयू ने पहले ही म्यांमार के खिलाफ हथियारों के व्यापार पर रोक लगा रखी है। इसके अलावा ईयू ने वर्ष 2018 में भी सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ प्रतिबंध लगाए थे।
जहां तक म्यांमार के सैन्य शासकों और उससे जुड़े अधिकारियों पर प्रतिबंध का सवाल है तो जर्मनी का कहना है कि उनके निशाने पर वो देश हैं जो सैन्य शासन के खिलाफ सड़कों पर उतरे मासूम लोगों की आवाज दबाने में जिम्मेदार रहे हैं। इन प्रतिबंधों से आम लोगों का कोई वास्ता नहीं है। जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास का कहना है कि सैन्य शासन में की जा रही हत्याओं की संख्या अब बर्दाश्त के बाहर हो चुकी है। ऐसे में प्रतिबंध लगने से नहीं रुकेगा।
ये भी पढ़ें:-
जानिए- आखिर बाइडन के किस बयान पर भड़का हुआ है तुर्की, कहा- राष्ट्रपति के लायक नहीं वो
एक्सपर्ट की जुबानी जानिए किस ओर जाएगा रूस और अमेरिका के बीच उभरा तनाव
धरती के बेहद करीब से गुजर गया एक विशाल एस्ट्रॉयड, स्पीड के बारे में जानकर रह जाएंगे हैरान