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ओलंपिक एवं लोकतंत्र के बहाने चीन-अमेरिका के बीच कूटनीतिक जंग तेज, क्‍या नए शीत युद्ध की है आहट? क्‍या है भारत का स्‍टैंड

अमेरिका के वैश्विक लोकतंत्र और चीन में 2022 में होने वाले ओ‍लंप‍िक्‍स को लेकर दोनों देशों ने एक दूसरे के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चा खोल दिया है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्‍या अमेरिका और चीन क्‍या यह जंग एक नए शीत युद्ध की दस्‍तक की आहट है ?

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sat, 11 Dec 2021 12:10 PM (IST)Updated: Sat, 11 Dec 2021 05:51 PM (IST)
ओलंपिक एवं लोकतंत्र के बहाने चीन-अमेरिका के बीच कूटनीतिक जंग तेज, क्‍या नए शीत युद्ध की है आहट? क्‍या है भारत का स्‍टैंड
ओलंपिक एवं लोकतंत्र के बहाने चीन-अमेरिका के बीच कूटनीतिक जंग तेज।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुआ वाक युद्ध अब धीरे-धीरे शीत युद्ध की ओर अग्रसर है। अमेरिका के वैश्विक लोकतंत्र और चीन में 2022 में होने वाले शीतकालीन ओ‍लंप‍िक्‍स को लेकर दोनों देशों ने एक दूसरे के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चा खोल दिया है। दोनों देशों की इस कूटनीतिक जंग की आंच दुनिया के अन्‍य मुल्‍कों पर भी पड़ना शुरू हो गई है। खासकर इसका असर एशियाई मुल्‍कों पर तेजी से देखा जा रहा है। आखिर अमेरिका और चीन की भूमिका में भारत का क्‍या स्‍टैंड है ? क्‍या यह कूटनीतिक जंग एक नए शीत युद्ध की दस्‍तक की आहट है ? क्‍या चीन का मकसद दो ध्रुवीय व्‍यवस्‍था कायम करने की ओर संकेत है ? क्‍या है अमेरिका का वैश्विक लोकतंत्र सम्‍मेलन ? इस सम्‍मेलन से चीन और रूस क्‍यों खफा है ? शीतकालीन ओलंपिक्‍स पर क्‍या है अमेरिका का स्‍टैंड ? इन तमाम मसलों पर जानेंगे व‍िशषज्ञ प्रोफेसर हर्ष वी पंत की राय।

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अमेरिका की वैश्विक लोकतंत्र सम्‍मेलन के कूटनीतिक मायने

1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि अमेरिका की वैश्विक लोकतंत्र सम्‍मेलन एक सोची समझी रणनीति का ह‍िस्‍सा है। ऐसा करके अमेरिका ने दुनिया को यह साफ संदेश दिया है कि दुनिया का विभाजन लोकतांत्रिक और गैर लोकतांत्रिक देशों के बीच है। बाइडन प्रशासन का यह कदम ऐसे वक्‍त उठाया गया है, जब अमेरिका और चीन के बीच तनाव चरम दौर से गुजर रहा है। बाइडन प्रशासन ने इस सम्‍मेलन में चीन को निमंत्रण नहीं भेजकर इस विभाजन की रेखा को और गहरी कर दिया है। बाइडन की नजर दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई मुल्‍कों पर टिकी है। आकस और क्‍वाड का गठन इस क्रम में देखा जा सकता है। बाइडन चीन को दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया में अलग-थलग करना चाहते हैं।

2- बाइडन से उम्‍मीद की जा रही थी कि वह सत्‍ता में आने के बाद चीन के साथ रिश्‍तों में सुधार करेंगे, लेकिन बाइडन और चीन की अब तक कोई बैठक नहीं हुई। हालांकि, दोनों नेताओं की बीच वर्चुअल बैठक हुई, लेकिन वह बेनतीजा रही। चीन ताइवान और दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपनी योजना से टस से मस नहीं हो रहा है। दरअसल, चिनफ‍िंग और बाइडन के बीच हुई वर्चुअल बैठक बेनतीजा रहने के बाद बाइडन प्रशासन ने शायद यह तय कर लिया है कि चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर शिकस्‍त देना है। चीन को दुनिया के अन्‍य मुल्‍कों से अलग-थलग करना है। लोकतंत्र पर चीन के बह‍िष्‍कार को इसी कड़ी के रूप में देखना चाहिए।

3- विदेशी मोर्चे पर बाइडन प्रशासन की असफलताओं और उनकी लोकप्रियता के गिरते ग्राफ के बीच वैश्विक लोकतंत्र सम्‍मेलन के जरिए वह चीन के समक्ष अपनी महाशक्ति होने का प्रदर्शन कर रहे हैं। सौ से अधिक देशों को इस सम्‍मेलन में आमंत्रित करके अमेरिका चीन को यह संदेश देना चाह रहा है कि दुनिया में अभी भी लोकतांत्र‍िक देश उसके साथ हैं। इसके साथ वह एक संदेश देने के फ‍िराक में होगा कि अमेरिका लोकतांत्रिक देशों के साथ हैं। खासकर उन देशों के लिए यह संदेश है कि जिनका चीन के साथ सीमा टकराव चल रहा है।

4- उधर, चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने बाइडन की मेजबानी में होने जा रहे वैश्विक लोकतंत्र सम्मेलन की कड़ी निंदा की है। उसकी खिल्‍ली उड़ाई है। उसने अमेरिकी व्‍यवस्‍था का उपहास किया है। चीन ने अमेरिकी लोकतंत्र पर सवाल उठाए हैं। ड्रैगन ने सवाल किया है कि एक ध्रुवीकृत देश दूसरों को उपदेश कैसे दे सकता है। कम्‍युनिस्‍ट पार्टी ने कहा कि दूसरों को पश्चिमी लोकतांत्रिक माडल की नकल करने के लिए मजबूर करने के प्रयास बुरी तरह विफल हुए हैं। पार्टी ने कहा कि महामारी ने अमेरिकी व्यवस्था की खामियों को उजागर कर दिया है। उन्होंने अमेरिका में कोरोना महामारी से बड़ी संख्या में लोगों की मौत के लिए राजनीतिक विवादों और ऊपरी से लेकर निचले स्तर तक विभाजित सरकार को जिम्मेदार बताया। इस प्रकार का लोकतंत्र मतदाताओं के लिए खुशियां नहीं, बल्कि तबाही लेकर आता है।

शीतकालीन ओलंपिक्‍स खेलों को लेकर अमेरिकी विरोध तेज

1- चीन अगले वर्ष चार मार्च से 13 मार्च तक शीतकालीन ओलंपिक्‍स और पैरालंपिक्‍स की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है। उधर, इसको लेकर भी अमेरिका और चीन के बीच कूटनीतिक जंग तेज हो गई है। अमेरिका ने इन खेलों का बाहिष्‍कार करने का फैसला लिया है। इससे यह जंग तेज होने के आसार हैं। अमेरिकी राष्‍ट्रपति बाइडन ने हाल में कहा है कि चीन के साथ चल रहे मतभेदों के मद्देनजर उनका देश इन खेल आयोजनों के राजनयिक बहिष्‍कार के बारे में सोच रहा है। बाइडन ने कहा है कि अमेरिका अपने खिलाड़‍ियों को तो चीन भेजेगा, लेक‍िन अधिकारियों के प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजने पर विचार कर रहा है। यह उम्‍मीद की जा रही है कि अमेरिका के इस फैसले के साथ आस्‍ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी भी जा सकते हैं। अमेरिका के इस विरोध के बाद चीन ने भी इसके लिए राजनयिक प्रयास शुरू कर दिए हैं।

2- इधर, भारत ने ओलंपिक्‍स को लेकर अपना स्‍टैंड क्‍लीयर कर दिया है। भारत और चीन सीमा विवाद के बीच भारत ने 2022 में चीन में विंटर ओलंपिक्‍स और पैरालंपिक्‍स खेलों की मेजबानी का समर्थन किया है। इसको लेकर चीन काफी गदगद है। हाल में रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लवरोफ और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ वर्चुअल बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ओलंपिक्‍स और पैरालंपिक्‍स खेलों के आयोजन में चीन की तरफदारी की। इसके बाद रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद साझा बयान जारी कर कहा गया कि चीन में 2022 में विंटर ओलंपिक्‍स और पैरालंपिक्‍स खेलों की मेजबानी के लिए मंत्रियों ने समर्थन किया है।

3- भारत के समर्थन के बाद चीन को अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोलने का बहाना मिल गया है। भारत के इस समर्थन को लेकर चीन कम्‍युनिस्‍ट पार्टी का मुखपत्र माने जाने वाले ग्‍लोबल टाइम्‍स ने अपने लेख में लिखा है कि भारत के समर्थन से पता चलता है कि वह अमेरिका का स्‍वाभाविक सहयोगी नहीं है। चीन ने भारत के इस फैसले की जमकर तारीफ की है।

कई और देश कर सकते हैं बहिष्कार

कनाडा से पहले ब्रिटेन ने भी बहिष्कार का एलान किया था। उन्होंने कहा था कि हमारे देश से कोई भी राजनयिक चीन नहीं जाएंगे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जान्सन ने साथ ही यह भी कहा कि मुझे नहीं लगता कि खेलों का बहिष्कार करना समझदारी है और यह सरकार की नीति है। बीजिंग ओलंपिक खेल का कई और देश बहिष्कार कर सकते हैं। इससे पहले भी कई ओलंपिक खेलों में ऐसा हो चुका है। कई देशों को अन्य देशों का बहिष्कार झेलना पड़ा है। 1956 मेलबर्न, 1964 टोक्यो, 1976 मान्ट्रियल, 1980 मास्को, 1984 लास एंजिल्स और 1988 सियोल में युद्ध, आक्रमण और रंगभेद जैसे कारणों से विभिन्न देशों ने ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया था।


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