अफगानिस्तान में ड्रैगन की गहरी चाल, तालिबान पर ऐसे बनाएगा दबाव, दक्षिण एशियाई देशों में चीन अपना चुका है यह नीति, भारत चिंतित
तालिबान के नेता ने बीजिंग के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि वह फंड्स के लिए चीन पर निर्भर है। तालिबान का यह बयान चीन के बीच हुई वार्ता के बाद आया है। तालिबान के इस बयान को इस कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है।
काबुल, एजेंसी। अफगानिस्तान पर कब्जा कर चुके तालिबान ने कहा कि चीन उनका सबसे भरोसेमंद सहयोगी है। हाल ही में तालिबान के नंबर-2 नेता मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने चीन का दौरा किया था। तालिबानी नेता बरादर की चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच वार्ता हुई थी। हालांकि, दोनों नेताओं के बीच क्या वार्ता हुई इसकी जानकारी मीडिया तक नहीं आ सकी। गुरुवार को तालिबान के नेता ने बीजिंग के साथ अपने संबंधों का जिक्र करते हुए कहा कि वह फंड्स के लिए चीन पर निर्भर है। तालिबानी नेता का यह बयान चीन के विदेश मंत्री के बीच हुई वार्ता के बाद आया है। इस बयान को इस कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। चीन जिस तरह से तालिबान शासन में घुस रहा है उससे भारत को चिंतित होना लाजमी है।
तालिबान को कर्जदार बनाने की रणनीति में जुटा चीन
- प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि चीन की नजर अब तालिबान पर टिकी है। वह तालिबान को फंड देकर अपना कर्जदार बनाना चाहता है। इसके लिए उसने कवायद भी शुरू कर दी है। दक्षिण एशियाई मुल्कों पर चीन इस तरह का प्रयोग कर चुका है। श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल उसके बड़े कर्जदार है। कर्जदार बनाने के बाद वह इन मुल्कों को अपने हितों को लेकर दबाव बनाता है।
- दअरसल, चीन आर्थिक संबंधों की आड़ में अपने सामरिक हितों की पूर्ति करने का इच्छुक है। हाल में कई कर्जदार मुल्कों ने चीन की इस रणनीति का विरोध किया है। अफगानिस्तान में चीन के कई हित छिपे हैं। अफगानिस्तान में चीन की यह कोशिश है कि यहां अमेरिका का प्रभुत्व समाप्त हो।
- इसके अलावा वह एक तीर से दो निशाना साधने की कोशिश में है। पहले वह अफगानिस्तान में अमेरिकी प्रभुत्व को समाप्त करना चाहता है। दूसरे वह भारत को अलग-थलग करना चाहता है। इसके अलावा चीन की नजर अफगानिस्तान में प्रचुर मात्रा में मौजूद संसाधनों पर टिकी है। अफगानिस्तान को सहयोग के जरिए वह तालिबान को अपने जाल में फंसाना चाहता है।
- अफगानिस्तान में करीब 200 लाख करोड़ रुपये की खनिज संपदा है, जिस पर दुनिया की फैक्ट्री के तौर पर स्थापित हो चुके चीन की नजर है। चीन बहुत चतुराई से इस खनिज संपदा पर अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है।
- अफगानिस्तान में चीन का दखल भारत के लिए खतरनाक संकेत हैं। अगर चीन अपनी योजना में सफल होता है तो यह भारत के लिए एक खतरे की घंटी होगी। तालिबान के पास कुछ भी नहीं है। ऐसे में चीन तालिबान को आर्थिक मदद करके अपने चंगुल में करना चाहेगा।
तालिबान और चीन के करीबी रिश्तों का खुलासा किया
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने इटली के अखबार ‘ला रिपब्लिका’ में दिए अपने एक साक्षात्कार में तालिबान और चीन के करीबी रिश्तों का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान की आर्थिक हालत बेहद खस्ता है। उन्होंने कहा कि हमें अपने मुल्क के विकास और देश को चलाने के लिए फंड्स की जरूरत है। उन्होंने कहा कि शुरुआती तौर पर हम चीन की मदद से आर्थिक हालात सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि चीन हमारा सबसे भरोसेमंद सहयोगी है। मुजाहिद ने कहा कि चीन हमारे लिए बुनियादी और बेहतरीन अवसर प्रदान करेगा।
अफगानिस्तान में निवेश करके इसे नए सिरे से तैयार करेगा चीन
उन्होंने कहा कि चीन ने वादा किया है कि वह अफगानिस्तान में निवेश करके इसे नए सिरे से तैयार करेगा। सिल्क रूट के जरिए चीन दुनिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। इसके जरिए हम भी दुनिया तक अपनी पहुंच बना सकते हैं। मुजाहिद ने कहा कि हमारे देश में तांबे की खदानें हैं। चीन इन्हें आधुनिक तरीके से फिर शुरू करेगा। हम दुनिया को तांबा बेच सकेंगे। तालिबान राज में महिलाओं की स्थिति के सवाल पर उन्होंने कहा कि महिलाओं के हक के लिए हम वादा कर चुके हैं। उन्हें तालीम का अधिकार मिलेगा। महिलाओं को इन सेवाओं में काम करने की इजाजत होगी। वह नर्स, पुलिस या मंत्रालयों में काम कर सकेंगी। उन्होंने जोर देकर कहा कि महिलाओं को मंत्री नहीं बनाया जाएगा।
झिंजियांग प्रांत में आतंकवादी घटनाओं को रोकने पर हुई चर्चा
चीन ने के मुताबिक, वह तालिबान से दोस्ती चाहता है, ताकि झिंजियांग प्रांत में आतंकी ग्रुप्स की एक्टिविटी को रोक सके। चीन के विदेश मंत्री की बरादर से मीटिंग के दौरान भी उइगर आतंकियों का मसला भी उठा था। चीन के विदेश मंत्री ने तो कहा भी था कि तालिबान को ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (इटीआइएम) से सभी संबंध तोड़ने होंगे। यह संगठन चीन की राष्ट्रीय सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ सीधे-सीधे खतरा है। दरअसल, तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (टीआइएम) को ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट भी कहा जाता है। यह पश्चिमी चीन में उइगर इस्लामिक चरमपंथी संगठन है। यह संगठन चीन के झिंजियांग को ईस्ट तुर्किस्तान के तौर पर स्वतंत्र करने की मांग करता है।