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Beirut Blast: भीषण विस्फोट के बाद सदमे में हैं बेरुत के बच्चे, बदल गईं आदतें, जूझ रहे हैं आघात से

After Beirut Blast बकौल हिबा आबिद को अब लाल रंग से नफरत हो गई है। वह अपने लाल जूते पहनने के लिए तैयार नहीं है। जरा-सी आहट पर भी अब चौंक उठता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 06:15 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 06:15 AM (IST)
Beirut Blast: भीषण विस्फोट के बाद सदमे में हैं बेरुत के बच्चे, बदल गईं आदतें, जूझ रहे हैं आघात से
Beirut Blast: भीषण विस्फोट के बाद सदमे में हैं बेरुत के बच्चे, बदल गईं आदतें, जूझ रहे हैं आघात से

बेरुत, एपी। After Beirut Blast: वो चार अगस्त की तारीख थी, जब बेरुत में भीषण धमाका हुआ। उस वक्त तीन साल का आबिद आची घर के अंदर खेल रहा था। धमाके से शीशे का दरवाजा चकनाचूर हो गया और आबिद लहूलुहान। उसके हाथ-पांव जख्मी हो गए। सिर में भी चोट आई। आबिद को आपात कक्ष में ले जाया गया, जहां उसे खून से लथपथ अन्य लोगों के बीच बैठा दिया गया। आबिद अब पहले जैसा नहीं रह गया। वह लेबनान के उन हजारों लोगों में से एक है, जो इस आघात से जूझ रहे हैं।

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अपना घर छूट जाने से हजारों बच्चों को लगा है आघात

आबिद की मां हिबा आची ने बताया, 'जब मैं अस्पताल गई तो देखा कि वह आपात कक्ष के एक कोने में गुमसुम बैठा है। वह बुरी तरह जख्मी लोगों से घिरा हुआ था। फर्श पर हर जगह खून टपक रहा था।' विस्फोट के वक्त हिबा काम पर गई थीं और बच्चे को दादी की निगरानी में छोड़ गई थीं।

बकौल हिबा, 'आबिद को अब लाल रंग से नफरत हो गई है। वह अपने लाल जूते पहनने के लिए तैयार नहीं है। जरा-सी आहट पर भी अब चौंक उठता है। ठीक से खाता-पीता भी नहीं। वह एक खुशमिजाज, मिलनसार बच्चा था, लेकिन अब किसी से बात तक नहीं करता।' हिबा ने अपने बेटे के साथ लेबनान छोड़ने का फैसला कर लिया है। वह दुबई जाने की तैयारी कर रही हैं, जहां उनके पति काम करते हैं। कुछ ऐसी ही सोच बहुत सारे लोगों की है।

विस्फोट में तीन बच्चे भी मारे गए

बेरुत बंदरगाह पर लापरवाही से रखे गए 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट में हुए भीषण धमाके ने 170 लोगों की जान ले ली और 6,000 लोगों को अस्पताल पहुंचा दिया। संयुक्त राष्ट्र की बाल संस्था यूनिसेफ के मुताबिक, इस विस्फोट में तीन बच्चे भी मारे गए। कम से कम 31 बच्चों को गंभीर रूप से घायल होने के कारण अस्पताल ले जाना पड़ा। इसके अलावा लगभग एक लाख बच्चों को अपना घर छोड़ कर जाना पड़ा। इसके चलते काफी बच्चे सदमे में हैं।

कई बच्चों का इलाज कर रहीं मनोवैज्ञानिक माहा गजाला के मुताबिक कुछ बच्चे बार-बार यह पूछ रहे हैं कि अगर ऐसा फिर हुआ तो? कई बच्चे वापस घर जाने से इन्कार कर रहे हैं। वे शीशे के खिड़की-दरवाजे से भी दूर रहने लगे हैं। ऐसे बच्चों की चिकित्सकीय देखभाल नहीं हुई तो आगे चलकर व्यग्रता और नकारात्मकता उनके स्वभाव का स्थायी भाव बन सकती है।


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