50 वर्षों के इतिहास में बांग्लादेश आज पहली बार मना रहा है राष्ट्रीय चाय दिवस, जानें- क्यों
आजादी के बाद बांग्लादेश आज पहली बार राष्ट्रीय चाय दिवस का आयोजन कर रहा है। ये आयोजन बंगबंधु और राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्ररहमान के चाय के क्षेत्र में दिए योगदान को देखते हुए किया गया है। इसलिए ये दिन बेहद खास है।
ढाका (एजेंसी)। बांग्लादेश अपने 50 वर्षों के इतिहास में पहली बार 4 जून को राष्ट्रीय चाय दिवस के रूप में मना रहा है। ये फैसला फादर ऑफ नेशन बंगबंधु शेख मुजीबुर्ररहमान का चाय की इंडस्ट्री को दिए उनके योगदान को देखते हुए लिया गया है। देश के वाणिज्य मंत्री टीपू मुंशी के मुताबिक बांग्लादेश वर्ष 2021 को उनकी जयंती के रूप में मना रहा है। इसी दिन बंगबंधु टी-बोर्ड के पहले बंगााली चेयरमेन बने थे। वो 4 जून 1957 से 23 जून 1958 तक इस पद पर रहे थे। इसलिए ही इस दिन को 4 जून को मनाने का फैसला लिया गया है।
इसकी शुरुआत उसमानी मेमोरियल ऑडिटोरियम में सुबह दस बजे से होगी जहां एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है। इसके बाद श्रीमंगल स्थित टी-म्यूजियम के बंगबंधु पेवेलियन में एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया है। मुंशी के मुताबिक देश की आर्थिक प्रगति में चाय क्षेत्र के योगदान को भी सराहा जाएगा। उन्होंने ये भी बताया कि पहले बांग्लादेश चाय का निर्यात भी करता था लेकिन अब देश में बढ़ती मांग को देखते हुए ये संभव नहीं हो रहा है। इसके लिए देश में प्रोडेक्शन को बढ़ाना होगा।
आपको बता दें कि शेख मुजीबुर्ररहमान बांग्लादेश के संस्थापक नेता और देश के पहले राष्ट्रपति थे। उन्हें बंगलादेश का जनक या राष्ट्रपति भी कहा जाता है। मुजीबुर्ररहमान अवामी लीग के अध्यक्ष थे। उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ न सिर्फ सशस्त्र संग्राम में नायक की भूमिका निभाई और देश को पाकिस्तान के सैन्य शासन से मुक्त करवाया। इसके बाद वो देश के पहले राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने। 'शेख मुजीब' के नाम से भी प्रसिद्ध मुजीबुर्ररहमान को बाद में 'बंगबंधु की पदवी से भी सम्मानित किया गया था।
हालांकि बांग्लादेश के पाकिस्तान के आजाद होने के तीन वर्ष बाद उनकी सरकार का तख्ता पलट कर बड़ी ही बेरहमी से उनके पूरे परिवार की हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में केवल उनकी दो बेटियां ही बच सकी थीं, क्योंकि वो दोनों ही उस वक्त वहां पर नहीं थीं। उनकी एक शेख हसीना तख्तापलट के बाद जर्मनी से दिल्ली आ गई थीं बाद में उन्होंने बांग्लादेश जाकर अपने पिता की राजनीतिक विरासत को संभाला था।